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होलिका दहन 20 मार्च 2019 होली




होलिका दहन 20 मार्च 2019 दिन बुधवार को है। उचित समय पर होलिका दहन करें तो होली के शुभ फल मिलते हैं। इस बार होलिका दहन में समय बदला है। सामान्यत: यह शाम 4 बजे के बाद होता है लेकिन इस बार भद्र मुख के कारण होलिका दहन का कार्यक्रम थोड़ी देर से शुरू होगा। मुंबई और पश्चिम भारत की जनता को होलिका दहन के लिए काफी कम समय मिलेगा। मात्र 10 मिनट। यह 8.57 से शुरू होकर 9.09 तक चलेगा। वहीं दिल्ली और उत्तर भारत में यह 8.57 से शुरू होगा और देर रात 12.28 तक चलेगा। 

शुभ मुहूर्त : 20 मार्च 20 19 

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 10:44 (20 मार्च)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 07:12 (21 मार्च)

होलिका पूजन मुहूर्त- 8 बजकर 2 मिनट से 8 बजकर 57 मिनट तक (होलिका दहन होने तक) 

होलिका दहन मुहूर्त- 20:57 से 00:28
8.57 से शुरू और देर रात 12.28 तक

भद्रा पूंछ- 17:23 से 18:24

भद्रा मुख- 18:24 से 20:07

इसी तरह रंगों वाली होली 21 मार्च, 2019, गुरुवार को है। रंग लगाने का शुभ मुहूर्त सुबह 8 बजे से लेकर शाम 3 बजे तक है। 

रंगवाली होली- 21 मार्च

Mahashivratri 2019


4 मार्च को महाशिवरात्रि, इसी दिन लिंग रूप में प्रकट हुए थे भगवान शिव, ये है इस व्रत से जुड़ी कथा, महत्व और आरती

व्रत विधि
महाशिवरात्रि की सुबह व्रती (व्रत करने वाला) जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद माथे पर भस्म का त्रिपुंड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें। इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा करें। श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-


शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।

यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।


इस प्रकार करें रात्रि पूजा

व्रती दिनभर शिव मंत्र (ऊं नम: शिवाय) का जाप करें तथा पूरा दिन निराहार रहें। (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।) शिवपुराण में रात्रि के चारों प्रहर में शिव पूजा का विधान है। शाम को स्नान करके किसी शिव मंदिर में जाकर अथवा घर पर ही पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके त्रिपुंड एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-

ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये

व्रती को फल, फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप व दीप से रात के चारों प्रहर पूजा करनी चाहिए साथ ही भोग भी लगाना चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-


नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।

अगले दिन (5 मार्च, मंगलवार) सुबह पुन: स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें।



शिवरात्रि पूजा के शुभ मुहूर्त

पहले प्रहर की पूजा - शाम 06:22 से रात 09:28 तक

दूसरे प्रहर की पूजा - रात 09:28 से 12:35 तक

तीसरे प्रहर की पूजा - रात 12:35 से 03:41तक

चौथे प्रहर की पूजा - रात 03:41 से अगले दिन सुबह 06:48 तक


महाशिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है-

किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपना परिवार पालता था। एक बार शिवरात्रि पर वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। यह सोचकर वह पानी का बर्तन भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था।

थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।

थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।

इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई, जिससे शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया




भगवान शिव को प्रिय है ये रात्रि

फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह रात्रि भगवान शिव को अति प्रिय है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शिवरात्रि के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था। उसके अनुसार भगवान शिव अभिषेक, वस्त्र, धूप तथा पुष्प से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि शिवरात्रि के दिन व्रत उपवास रखने से होते हैं-


फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी।
तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका।।
तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति मां ध्रुवम्।
न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत:।।


ईशानसंहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात को आदिदेव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए-



फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवी महानिशि।
शिललिंगतयोद्भुत: कोटिसूर्यसमप्रभ:।।


भगवान शिव की आरती

जय शिव ओंकारा ऊँ जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अद्र्धांगी धारा॥ ऊँ जय शिव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥ ऊँ जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ऊँ जय शिव...॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥ ऊँ जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ऊँ जय शिव...॥

कर के मध्य कमंडलु चक्रत्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ऊँ जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ऊँ जय शिव...॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥ ऊँ जय शिव...॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ऊँ जय शिव...॥

भाई दूज पर्व भाई और बहन के पवित्र रिश्ते और प्यार का प्रतीक है।


भाई दूज पर्व, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते और स्नेह का प्रतीक है। भाई दूज या भैया दूज पर्व को भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों से मनाया जाता है। भाई दूज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाने वाला पर्व है। यह तिथि दीपावली के दूसरे दिन आती है। इस मौके पर बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख समृद्धि की कामना करती है। वहीं भाई शगुन के रूप में बहन को उपहार भेंट करता है। भाई दूज के दिन मृत्यु के देवता यमराज का पूजन भी होता है। मान्यता है कि इसी दिन यम देव अपनी बहन यमुना के बुलावे पर उनके घर भोजन करने आये थे।

भाई दूज मनाने की तिथि और नियम

भाई दूज (यम द्वितीया) कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाई जाती है। इसकी गणना निम्न प्रकार से की जा सकती है।

1. शास्त्रों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष में द्वितीया तिथि जब अपराह्न (दिन का चौथा भाग) के समय आये तो उस दिन भाई दूज मनाई जाती है। अगर दोनों दिन अपराह्न के समय द्वितीया तिथि लग जाती है तो भाई दूज अगले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा यदि दोनों दिन अपराह्न के समय द्वितीया तिथि नहीं आती है तो भी भाई दूज अगले दिन मनाई जानी चाहिए। ये तीनों मत अधिक प्रचलित और मान्य है।


2. एक अन्य मत के अनुसार अगर कार्तिक शुक्ल पक्ष में जब मध्याह्न (दिन का तीसरा भाग) के समय प्रतिपदा तिथि शुरू हो तो भाई दूज मनाना चाहिए। हालांकि यह मत तर्क संगत नहीं बताया जाता है।

3. भाई दूज के दिन दोपहर के बाद ही भाई को तिलक व भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा यम पूजन भी दोपहर के बाद किया जाना चाहिए।





भाई दूज पर होने वाले रीति रिवाज़ और विधि


हिंदू धर्म में त्यौहार बिना रीति रिवाजों के अधूरे हैं। हर त्यौहार एक निश्चित पद्धति और रीति-रिवाज से मनाया जाता है।

1. भाई दूज के मौके पर बहनें, भाई के तिलक और आरती के लिए थाल सजाती है। इसमें कुमकुम, सिंदूर, चंदन,फल, फूल, मिठाई और सुपारी आदि सामग्री होनी चाहिए।

2. तिलक करने से पहले चावल के मिश्रण से एक चौक बनायें।

3. चावल के इस चौक पर भाई को बिठाया जाए और शुभ मुहूर्त में बहनें उनका तिलक करें।

4. तिलक करने के बाद फूल, पान, सुपारी, बताशे और काले चने भाई को दें और उनकी आरती उतारें।

5. तिलक और आरती के बाद भाई अपनी बहनों को उपहार भेंट करें और सदैव उनकी रक्षा का वचन दें।



भाई दूज से जुड़ीं पौराणिक कथाएं



हिंदू धर्म में जितने भी पर्व और त्यौहार होते हैं उनसे कहीं ना कहीं पौराणिक मान्यता और कथाएं जुड़ी होती हैं। ठीक इसी तरह भाई दूज से भी कुछ पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ये प्राचीन कथाएं इस पर्व के महत्व को और बढ़ाती है।



यम और यमि की कथा

पुरातन मान्यताओं के अनुसार भाई दूज के दिन ही यमराज अपनी बहन यमुना के घर गए थे, इसके बाद से ही भाई दूज या यम द्वितीया की परंपरा की शुरुआत हुई। सूर्य पुत्र यम और यमी भाई-बहन थे। यमुना के अनेकों बार बुलाने पर एक दिन यमराज यमुना के घर पहुंचे। इस मौके पर यमुना ने यमराज को भोजन कराया और तिलक कर उनके खुशहाल जीवन की कामना की। इसके बाद जब यमराज ने बहन यमुना से वरदान मांगने को कहा, तो यमुना ने कहा कि, आप हर वर्ष इस दिन में मेरे घर आया करो और इस दिन जो भी बहन अपने भाई का तिलक करेगी उसे तुम्हारा भय नहीं होगा। बहन यमुना के वचन सुनकर यमराज अति प्रसन्न हुए और उन्हें आशीष प्रदान किया। इसी दिन से भाई दूज पर्व की शुरुआत हुई। इस दिन यमुना नदी में स्नान का बड़ा महत्व है क्योंकि कहा जाता है कि भाई दूज के मौके पर जो भाई-बहन यमुना नदी में स्नान करते हैं उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है।


भगवान श्री कृष्ण और सुभद्रा की कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भाई दूज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर द्वारिका लौटे थे। इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल,फूल, मिठाई और अनेकों दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना की थी। इस दिन से ही भाई दूज के मौके पर बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और बदले में भाई उन्हें उपहार देते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में भाई दूज पर्व


देश के विभिन्न इलाकों में भाई दूज पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। दरअसल भारत में क्षेत्रीय विविधता और संस्कृति की वजह से त्यौहारों के नाम थोड़े परिवर्तित हो जाते हैं हालांकि भाव और महत्व एक ही होता है।
पश्चिम बंगाल में भाई दूज


पश्चिम बंगाल में भाई दूज को भाई फोटा पर्व के नाम से जाना जाता है। इस दिन बहनें व्रत रखती हैं और भाई का तिलक करने के बाद भोजन करती हैं। तिलक के बाद भाई भेंट स्वरूप बहन को उपहार देता है।




महाराष्ट्र में भाई दूज पर्व
महाराष्ट्र और गोवा में भाई दूज को भाऊ बीज के नाम से मनाया जाता है। मराठी में भाऊ का अर्थ है भाई। इस मौके पर बहनें तिलक लगाकर भाई के खुशहाल जीवन की कामना करती हैं।




उत्तर प्रदेश में भाई दूज पर्व
यूपी में भाई दूज के मौके पर बहनें भाई का तिलक कर उन्हें आब और शक्कर के बताशे देती हैं। उत्तर प्रदेश में भाई दूज पर आब और सूखा नरियल देने की परंपरा है। आब देने की परंपरा हर घर में प्रचलित है।




बिहार में भाई दूज पर्व
बिहार में भाई दूज पर एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है। दरअसल इस दिन बहनें भाइयों को डांटती हैं और उन्हें भला बुरा कहती हैं और फिर उनसे माफी मांगती हैं। दरअसल यह परंपरा भाइयों द्वारा पहले की गई गलतियों के चलते निभाई जाती है। इस रस्म के बाद बहनें भाइयों को तिलक लगाकर उन्हें मिठाई खिलाती हैं।


नेपाल में भाई दूज पर्व
नेपाल में भाई दूज पर्व भाई तिहार के नाम से लोकप्रिय है। तिहार का मतलब तिलक या टीका होता है। इसके अलावा भाई दूज को भाई टीका के नाम से भी मनाया जाता है। नेपाल में इस दिन बहनें भाइयों के माथे पर सात रंग से बना तिलक लगाती हैं और उनकी लंबी आयु व सुख, समृद्धि की कामना करती हैं।


भाई दूज पर्व भाई और बहन के पवित्र रिश्ते और प्यार का प्रतीक है। आइये भाई दूज के अवसर पर हम सब भाई-बहन एक-दूसरे से प्यार बांटे और खुशहाल जीवन की कामना करें। एस्ट्रोसेज की ओर से आप सभी को भाई दूज पर्व की शुभकामनाएं !


छठ पूजा क्या है?


भगवान सूर्य और छत्ती माया (जिसे सूर्य की बहन माना जाता है) को समर्पित एक प्राचीन हिंदू त्यौहार, छठ पूजा बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल देश के लिए अद्वितीय है। यह एकमात्र वैदिक त्यौहार है जो सूर्य भगवान को समर्पित है, जो सभी शक्तियों का स्रोत और छत्ती माया (वैदिक काल से देवी उषा का दूसरा नाम) माना जाता है। मनुष्यों की भलाई, विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए प्रकाश, ऊर्जा और जीवन शक्ति के देवता की पूजा की जाती है। इस त्यौहार के माध्यम से, लोग चार दिनों की अवधि के लिए सूर्य भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहते हैं। इस त्यौहार के दौरान उपवास करने वाले भक्तों को वृत्तिकहा जाता है।
छठ पूजा 2018 तिथियां
परंपरागत रूप से, यह त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है, एक बार गर्मियों में और दूसरी बार सर्दियों के दौरान मनाया जाता है। कार्तिक छठअक्टूबर या नवंबर के महीने के दौरान मनाया जाता है और यह कार्तिका शुक्ला शश्ती पर किया जाता है जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिका के महीने का छठा दिन है। दिवाली के बाद 6 वें दिन मनाया जाता है, एक अन्य प्रमुख हिंदू त्यौहार, यह आम तौर पर अक्टूबर-नवंबर के महीने के दौरान आता है।

यह गर्मियों के दौरान भी मनाया जाता है और इसे आमतौर पर चैती छठ के नाम से जाना जाता है । यह होली के कुछ दिनों बाद मनाया जाता है।

छठ पूजा को इस साल चार दिनों में मनाया जा रहा है, 11 वीं से 14 नवंबर 2018 तक, सूर्य शाश्ती (मुख्य दिन) 13 नवंबर 2018 को गिर रहा था।

दिन दिनांक अनुष्ठान
रविवार 11 नवंबर 2018 नहाए खाए
सोमवार 12 नवंबर 2018 लोहांडा और खरना
मंगलवार 13 नवंबर 2018 संध्या अरग
बुधवार 14 नवंबर 2018 सूर्योदय / उषा अरग और परान

'छठ' नामक त्यौहार क्यों है?

छठ शब्द का अर्थ नेपाली या हिंदी भाषा में छः है और इस उत्सव कार्तिका के महीने के छठे दिन मनाया जाता है, त्योहार का नाम वही है

छठ पूजा क्यों मनाई जाती है?

छठ पूजा की उत्पत्ति की तारीखें कई कहानियां हैं। यह माना जाता है कि प्राचीन काल में, छत्र पूजा को दुरापदी और हस्तीनापुर के पांडवों ने उनकी समस्याओं को हल करने और अपने खोए हुए राज्य को वापस पाने के लिए मनाया था। सूर्य की पूजा करते समय ऋग्वेद ग्रंथों के मंत्रों का जप किया जाता है। जैसा कि कहानी जाती है, इस पूजा को पहली बार सूर्य पुत्र कर्ण ने शुरू किया था, जिन्होंने महाभारत की आयु के दौरान अंग देश (बिहार में भागलपुर) पर शासन किया था। वैज्ञानिक इतिहास या बल्कि योग का इतिहास प्रारंभिक वैदिक काल की तारीख है।किंवदंती का कहना है कि उस युग के ऋषि और ऋषि ने इस विधि का उपयोग भोजन के किसी बाहरी माध्यम से रोकने और सूर्य की किरणों से सीधे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया था।

छठ पूजा के अनुष्ठान

छत्ती माया, जिसे आमतौर पर उषा के नाम से जाना जाता है, सूर्य की छोटी बहन (वेदों में) देवी इस पूजा में पूजा की जाती है। छठ त्यौहार में कई अनुष्ठान शामिल हैं, जो अन्य हिंदू त्यौहारों की तुलना में काफी कठोर हैं। इन्हें आमतौर पर नदियों या जल निकायों में डुबकी लेने, सख्त उपवास (कोई उपवास की पूरी प्रक्रिया में पानी भी नहीं पी सकता), पानी में प्रार्थनाओं को खड़ा करना और लंबी अवधि के लिए सूरज का सामना करना और सूर्य को प्रसाद की पेशकश करना शामिल है सूर्योदय और सूर्यास्त।

नाय खाये


पूजा के पहले दिन, भक्तों को पवित्र नदी में डुबकी लेनी पड़ती है और खुद के लिए उचित भोजन बनाती है। चन्ना दाल के साथ कद्दू भट्ट इस दिन एक आम तैयारी है और इसे मिट्टी या कांस्य के बर्तन और आम लकड़ी को मिट्टी के स्टोव पर इस्तेमाल करके पकाया जाता है। उपवास देख रहे महिलाएं इस दिन केवल एक ही भोजन की अनुमति दे सकती हैं।

लोहांडा और खरना
दूसरे दिन, भक्तों को पूरे दिन उपवास देखना होता है, जो सूर्यास्त के कुछ ही समय बाद वे तोड़ सकते हैं। Parvaitins पूरे प्रसाद खुद को पकाते हैं जिसमें खेर और चपत्ती शामिल हैं और उन्होंने इस प्रसाद के साथ अपना उपवास तोड़ दिया, जिसके बाद उन्हें पानी के बिना 36 घंटे तक उपवास करना पड़ता है।

संध्या अरघ्या
तीसरे दिन घर पर प्रसाद तैयार करके और शाम को, व्रतिन के पूरे घर नदी के किनारे जाते हैं, जहां वे सूरज की स्थापना के लिए प्रसाद करते हैं। मादाएं आमतौर पर हल्की पीले रंग की साड़ी पहनती हैं जबकि वे अपनी प्रसाद बनाते हैं। उत्साही लोक गीतों के साथ शाम को भी बेहतर बना दिया जाता है।

उषा अरघ्या
यहां, अंतिम दिन, सभी भक्त सूर्योदय से पहले उगते सूरज की पेशकश करने के लिए नदी के किनारे जाते हैं। यह त्यौहार तब समाप्त होता है जब व्रेटिन अपने 36 घंटे तेज (परान कहा जाता है) तोड़ते हैं और रिश्तेदार अपने घर पर प्रसाद के हिस्से के लिए आते हैं।

छठ पूजा के दौरान भोजन

छठ प्रसाद परंपरागत रूप से चावल, गेहूं, सूखे फल, ताजे फल, पागल, गुड़, नारियल और बहुत सारे घी के साथ तैयार किया जाता है। छठ के दौरान तैयार भोजन के बारे में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि वे पूरी तरह नमक, प्याज और लहसुन के बिना तैयार होते हैं।

थेकुआ छठ पूजा का एक विशेष हिस्सा है और यह मूल रूप से पूरे गेहूं के आटे से बना एक कुकी है जिसे आप त्यौहार के दौरान जगह पर जाने पर निश्चित रूप से प्रयास करना चाहिए।

SANTOSH PIDHAULI

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