आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की धूम नौ दिनों तक रहेगी। इन दिनों मां भगवती के नौ रूपों का पूजन-अर्चन होगा। आइए जानते हैं घटस्थापना कैसे करें
* घटस्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए।
वर्तमान में मनुष्य ने अपने जीवन को इतनी आवश्यकताओं से घेर लिया है कि वह उनमें ही उलझा रहता है। ऐसे मनुष्यों के लिए समस्याओं को हल करने के लिए सरलतम मंत्र दे रहे हैं। जो नवरात्रि में करने से सफलता मिलती है एवं समस्या से छुटकारा मिलता है।
ऐसे पावन नौ दिनों के लिए दिव्य मंत्र दिए जा रहे हैं, जिनके विधिवत परायण करने से स्वयं के नाना प्रकार के कार्य व सामूहिक रूप से दूसरों के कार्य पूर्ण होते हैं। इन मंत्रों को नौ दिनों में अवश्य जाप करें।
इनसे यश, सुख, समृद्धि, पराक्रम, वैभव, बुद्धि, ज्ञान, सेहत, आयु, विद्या, धन, संपत्ति, ऐश्वर्य सभी की प्राप्ति होती है। विपत्तियों का नाश होगा।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी मां सती पार्वती को ही शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री आदि नामों से जाना जाता है। इसके अलावा भी मां के अनेक नाम हैं जैसे दुर्गा, जगदम्बा, अम्बे, शेरांवाली आदि, लेकिन सबमें सुंदर नाम तो 'मां' ही है।
माता की कथा :
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। यह शक्ति शब्द बिगड़कर 'सती' हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।
आदि सतयुग के राजा दक्ष की पुत्री पार्वती माता को शक्ति कहा जाता है। यह शक्ति शब्द बिगड़कर 'सती' हो गया। पार्वती नाम इसलिए पड़ा की वह पर्वतराज अर्थात् पर्वतों के राजा की पुत्र थी। राजकुमारी थी। लेकिन वह भस्म रमाने वाले योगी शिव के प्रेम में पड़ गई। शिव के कारण ही उनका नाम शक्ति हो गया। पिता की अनिच्छा से उन्होंने हिमालय के इलाके में ही रहने वाले योगी शिव से विवाह कर लिया।
एक यज्ञ में जब दक्ष ने पार्वती (शक्ति) और शिव को न्यौता नहीं दिया, फिर भी पार्वती शिव के मना करने के बावजूद अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई, लेकिन दक्ष ने शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। पार्वती को यह सब बरदाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।
यह खबर सुनते ही शिव ने अपने सेनापति वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर शिव क्रोधित हो धरती पर घूमते रहे। इस दौरान जहां-जहां सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे वहां बाद में शक्तिपीठ निर्मित किए गए। जहां पर जो अंग या आभूषण गिरा उस शक्तिपीठ का नाम वह हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि अनेक माताएं हो गई।
माता पर्वती ने ही शुंभ-निशुंभ, महिषासुर आदि राक्षसों का वध किया था।
माता का रूप :
मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।
मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का फूल है। पितांबर वस्त्र, सिर पर मुकुट, मस्तक पर श्वेत रंग का अर्थचंद्र तिलक और गले में मणियों-मोतियों का हार हैं। शेर हमेशा माता के साथ रहता है।
माता की प्रार्थना :
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।
जो दिल से पुकार निकले वही प्रार्थना। न मंत्र, न तंत्र और न ही पूजा-पाठ। प्रार्थना ही सत्य है। मां की प्रार्थना या स्तुति के पुराणों में कई श्लोक दिए गए है।
माता का तीर्थ :
शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।
शिव का धाम कैलाश पर्वत है वहीं मानसरोवर के समीप माता का धाम है। जहां दक्षायनी माता का मंदिर बना है। वहीं पर मां साक्षात विराजमान है।
1. विपत्ति-नाश के लिए :
2. भय नाश के लिए :
सर्वस्वरूपे सर्वेश सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि, दुर्गे देवि नमोस्तुते।।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि, दुर्गे देवि नमोस्तुते।।
3. पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिए :
नमेभ्य: सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
4. मोक्ष की प्राप्ति के लिए :
त्वं वैष्णवी शक्तिरन्तवीर्या।
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भूवि मुक्ति हेतु:।।
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भूवि मुक्ति हेतु:।।
5. हर प्रकार के कल्याण के लिए :
6. धन, पुत्रादि प्राप्ति के लिए :
सर्वबाधाविनिर्मुक्तो-धनधान्यसुतान्वित:
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।
7. रक्षा पाने के लिए :
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खंडे न चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि: स्वनेन च।।
8. बाधा व शांति के लिए :
सर्वबाधाप्रमशन: त्रैलोक्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्धैरिविनाशनम्।।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्धैरिविनाशनम्।।
9. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए :
9. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए :
पत्नी मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
तारिणी दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
https://santoshpidhauli.blogspot.com/