मेरा बचपन देवघर में बीता...देवघर भोले बाबा की नगरी कहलाती है, द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा बैद्यनाथ धाम है...हम कई किम्वदंतियां सुन कर बड़े हुए। देवघर मन्दिर के बारे में कथा है की एक रात में स्वयं विश्वकर्मा ने उसे बनाया है।
आज मैं देवघर शिवलिंग की कहानी आपको सुनाती हूँ जो शिव पुराण में सुनने को मिलती है...रावण भगवान् शिव का बहुत बड़ा भक्त था...उसे बहुत कठिन तपस्या की और एक एक करके अपने मस्तक भगवन शिव को अर्पित कर दिए...उसकी इस तपस्या से शंकर भगवान् बहुत प्रसन्न हुए और उसके दसो मस्तक वापस ठीक कर दिए...यहाँ वैद्य की तरह शंकर भगवन ने उसके सर जोड़े इसलिए उन्हें भगवन वैद्यनाथ कहा गया। रावण ने वरदान माँगा की आप मेरे यहाँ लंका में चलकर रहिये। भगवन शंकर ने कहा तथास्तु, लेकिन तुम यहाँ से मुझे लेकर चलोगे तो जहाँ जमीन पर रखोगे मैं वहीँ स्थापित हो जाऊँगा तुम मुझे फ़िर वहां से कहीं और नहीं ले जा सकोगे। रावण खुशी खुशी शिवलिंग लेकर लंका की ओर चला।
यह समाचार जानते ही देवताओं में खलबली मच गई, अगर भगवन शिव लंका में स्थापित हो जायेंगे तो लंका अभेद्य हो जायेगी और रावण को कोई भी नहीं हरा सकेगा। इन्द्र को अपना आसन डोलता नज़र आया (हमेशा की तरह) तो सब विष्णु भगवान के पास पहुंचे की हे प्रभो अब आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। भोले नाथ तो भोले हैं उन्होंने रावण को वरदान दे दिया है और वो शिवलिंग लेकर लंका की तरफ़ प्रस्थान कर चुका है।
विष्णु भगवान ने देवताओं को चिंतामुक्त होने को कहा और वरुण देव को आदेश दिया की वो रावण के पेट में प्रवेश कर जाएँ । और विष्णु भगवान् एक ब्राह्मण का वेश धारण करके धरती पर चले आए। जैसे ही वरुण देव रावण के पेट में घुसे रावण को बड़ी तीव्र लघुशंका लगी, लघु शंका करने के पहले रावण को शिवलिंग किसी के हाथ में देना था, तभी वहां से ब्राह्मण वेश में विष्णु भगवान गुजरे रावण ने उन्हें थोडी देर शिवलिंग पकड़ने का आग्रह किया और वह ख़ुद लघुशंका करने चला गया...पर उसके पेट में तो वरुण देव घुसे हुए थे...बहुत देर होने से ब्राह्मण ने शिव लिंग को नीचे रख दिया। जैसे ही शिवलिंग नीचे स्थापित हुआ वरुण देव रावण के पेट से निकल आए।
रावण जब ब्राह्मण को देखने आया तो देखा कि शिवलिंग जमीन पर रखा हुआ है और ब्राह्मण जा चुका है...उसने शिवलिंग उठाने की कोशिश की लेकिन वरदान देने वक्त शिव जी ने कहा था की शिवलिंग जहाँ रख दोगे वहीँ स्थापित हो जाऊँगा। आख़िर में गुस्सा होकर रावण ने शिवलिंग पर मुष्टि प्रहार किया जिससे वह जमीन में धंस गया। फ़िर बाद में रावण ने क्षमा मांगी...और कहते हैं वह रोज़ लंका से शिव पूजा के लिए आता था।
जिस जगह ब्राह्मण ने शिवलिंग रखा वहीँ आज शंकर भगवान का मन्दिर है जिसे बैद्यनाथ धाम कहते हैं। मन्दिर के बारे में कई किम्वदंतियां प्रचलित हैं....जैसे की मन्दिर के स्वर्ण कलश को चोरी करने की कोशिश करने वाला अँधा हो जाता है। और मन्दिर के ऊपर में एक मणि लगी है....और मन्दिर के खजाने के बारे में भी कई कहानिया हैं। मन्दिर से थोडी दूर पर शिवगंगा है जिसमें सात अक्षय कुण्ड हैं...कहते हैं कि उनकी गहराई की थाह नहीं है और वो पाताल तक जाते हैं।
बाबा मन्दिर में संध्या पूजा के लिए जो मौर(मुकुट) आता है वो फूलों का होता है और उसे देवघर सेंट्रल जेल के कैदी ही रोज बनाते हैं। आज शिवरात्रि के दिन बहुत भीड़ होती है मन्दिर में और देवघर में बच्चे से लेकर बूढे तक व्रत रखते हैं. शाम में शिवजी की बारात निकलती है जिसमें भूत प्रेतों होते हैं बाराती के रूप में...अलग अलग वेश भूषा में सजे बारातियों और नंदी का नाच देखते ही बनता है.
मुझे आज के दिन मिलने वाली आलू की जलेबी बड़ी याद आ रही है :) सिंघाडा का हलवा भी कई जगह मिलता है...आप समझ सकते हैं की बच्चे ये मिठाइयां खाने के लिए ही व्रत रखते हैं. कुंवारी लड़कियां अच्छा पति पाने के लिए व्रत रखती हैं...ताकि उन्हें भी शिव जी जैसा पति मिले जैसे कि माँ पार्वती को मिला था.
आज के लिए इतना ही।
ॐ नमः शिवाय
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