जीवित्पुत्रिका या जिउतिया पर्व को हिन्दू धर्म में महिलाएं पूरी श्रद्धा और भाव से मनाती है। संतान की लंबी आयु और मंगलकामना के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक पूजा की जाती है। जिसमें अष्टमी तिथि के निर्जला व्रत का सबसे ज्यादा महत्व है, जो कि कल यानि 2 अक्टूबर को किया जाएगा। जानें इस व्रत का शुभ मुहूर्त और पूरी कथा...
शुभ मुहूर्तः
अष्टमी तिथि शुरू: 2 अक्टूबर 2018 सुबह 4 बजकर 9 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त: 3 अक्टूबर 2018 सुबह 2 बजकर 17 मिनट तक
जिउतिया व्रत की पौराणिक कथाः
गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।
जिउतिया व्रत रखने की विधिः
इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया-पिया जाता है। सूर्योदय के बाद आपको कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है।
इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता।
जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता। इसलिए यह निर्जला व्रत होता है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है जिसके बाद आप कैसा भी भोजन कर सकते है।