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नाग पंचमी 2018

नाग पंचमी 2018


हिंदू धर्म में देवी देवताओं की पूजा उपासना के लिये व्रत व त्यौहार मनाये ही जाते हैं साथ ही देवी-देवताओं के प्रतिकों की पूजा अर्चना करने के साथ साथ उपवास रखने के दिन निर्धारित हैं। नाग पंचमी एक ऐसा ही पर्व है। नाग जहां भगवान शिव के गले के हार हैं। वहीं भगवान विष्णु की शैय्या भी। लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। इन्हीं कारणों से नाग की देवता के रूप में पूजा की जाती है। सावन मास के आराध्य देव भगवान शिव माने जाते हैं। साथ ही यह समय वर्षा ऋतु का भी होता है जिसमें माना जाता है कि भू गर्भ से नाग निकल कर भू तल पर आ जाते हैं। वह किसी अहित का कारण न बनें इसके लिये भी नाग देवता को प्रसन्न करने के लिये नाग पंचमी
की पूजा की जाती है।

नाग पंचमी और श्री कृष्ण का संबंध
नाग पंचमी की पूजा का एक प्रसंग भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ भी बताते हैं। बालकृष्ण जब अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे तो उन्हें मारने के लिये कंस ने कालिया नामक नाग को भेजा। पहले उसने गांव में आतंक मचाया। लोग भयभीत रहने लगे। एक दिन जब श्री कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे तो उनकी गेंद नदी में गिर गई। जब वे उसे लाने के लिये नदी में उतरे तो कालिया ने उन पर आक्रमण कर दिया फिर क्या था कालिया की जान पर बन आई। भगवान श्री कृष्ण से माफी मांगते हुए गांव वालों को हानि न पंहुचाने का वचन दिया और वहां से खिसक लिया। कालिया नाग पर श्री कृष्ण की विजय को भी नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

क्यों करते हैं नाग पंचमी पूजा
नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के उपरोक्त धार्मिक और सामाजिक कारण तो हैं ही साथ ही इसके ज्योतिषीय कारण भी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में योगों के साथ-साथ दोषों को भी देखा जाता है। कुंडली के दोषों में कालसर्प दोष एक बहुत ही महत्वपूर्ण दोष होता है। काल सर्प दोष भी कई प्रकार का होता है। इस दोष से मुक्ति के लिये भी ज्योतिषाचार्य नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के साथ-साथ दान दक्षिणा का महत्व बताते हैं।

नाग पंचमी पर क्या करें क्या न करें
इस दिन भूमि की खुदाई नहीं की जाती। नाग पूजा के लिये नागदेव की तस्वीर या फिर मिट्टी या धातू से बनी प्रतिमा की पूजा की जाती है। दूध, धान, खील और दूब चढ़ावे के रूप मे अर्पित की जाती है। सपेरों से किसी नाग को खरीदकर उन्हें मुक्त भी कराया जाता है। जीवित सर्प को दूध पिलाकर भी नागदेवता को प्रसन्न किया जाता है।

नाग पंचमी 2018
15 अगस्त
पूजा मुहूर्त - 05:55 से 8:31 (15 अगस्त 2018)
पंचमी तिथि प्रारंभ - 03:27 (15 अगस्त 2018)
पंचमी तिथि समाप्ति - 01:51 (16 अगस्त 2018)

गुरुपूर्णिमा

*गुरुपूर्णिमा

27 जुलाई*
*अवश्य पढ़ें*
*गुरु गूंगे गुरू बावरे गुरू के रहिये दास *
*एक बार की बात है नारद जी विष्णु भगवानजी से मिलने गए*
*भगवान ने उनका बहुत सम्मान किया*
*जब नारद जी वापिस गए तो विष्णुजी ने कहा हे लक्ष्मी जिस स्थान पर नारद जी बैठे थे ! उस स्थान को गाय के गोबर से लीप दो !*
*जब विष्णुजी यह बात कह रहे थे तब नारदजी बाहर ही खड़े थे !*

*उन्होंने सब सुन लिया और वापिस आ गए और विष्णु भगवान जी से पुछा हे भगवान जब मै आया तो आपने मेरा खूब सम्मान किया पर जब मै जा रहा था तो आपने लक्ष्मी जी से यह क्यों कहा कि जिस स्थान पर नारद बैठा था उस स्थान को गोबर से लीप दो*
*भगवान ने कहा हे नारद मैंने आपका सम्मान इसलिए किया क्योंकि आप देव ऋषि है*
*और मैंने देवी लक्ष्मी से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि आपका कोई गुरु नहीं है*
*आप निगुरे है ! जिस स्थान पर कोई निगुरा बैठ जाता है वो स्थान गन्दा हो जाता है*
*यह सुनकर नारद जी ने कहा हे भगवान आपकी बात सत्य है पर मै गुरु किसे बनाऊ*


*नारायण! बोले हे नारद धरती पर चले जाओ जो व्यक्ति सबसे पहले मिले उसे अपना गुरु मानलो*
*नारद जी ने प्रणाम किया और चले गए !*
*जब नारद जी धरती पर आये तो उन्हें सबसे पहले एक मछली पकड़ने वाला एक मछुवारा मिला*
*नारद जी वापिस नारायण के पास चले गए और कहा महाराज वो मछुवारा तो कुछ भी नहीं जानता मै उसे गुरु कैसे मान सकता हूँ ?*
*यह सुनकर भगवान ने कहा नारद जी अपना प्रण पूरा करो ! नारद जी वापिस आये*
*और उस मछुवारे से कहा मेरे गुरु बन जाओ*
*पहले तो मछुवारा नहीं माना बाद में बहुत मनाने से मान गया*

*मछुवारे को राजी करने के बाद नारद जी वापीस भगवान के पास गए और कहा हे भगवान! मेरे गुरूजी को तो कुछ भी नहीं आता वे मुझे क्या सिखायेगे*
*यह सुनकर विष्णु जी को क्रोध आ गया और उन्होंने कहा हे नारद गुरु निंदा करते हो जाओ मै आपको श्राप देता हूँ कि आपको ८४ लाख योनियों में घूमना पड़ेगा*
*यह सुनकर नारद जी ने दोनों हाथ जोड़कर कहा हे भगवान! इस श्राप से बचने का उपाय भी बता दीजिये*
*भगवान नारायण ने कहा इसका उपाय जाकर अपने गुरुदेव से पूछो*

*नारद जी ने सारी बात जाकर गुरुदेव को बताई* *गुरूजी ने कहा ऐसा करना भगवान से कहना ८४ लाख योनियों की तस्वीरे धरती पर बना दे फिर उस पर लेट कर गोल घूम लेना और विष्णु जी से कहना ८४ लाख योनियों में घूम आया मुझे माफ़ करदो आगे से गुरु निंदा नहीं करूँगा*
*नारद जी ने विष्णु जी के पास जाकर ऐसा ही किया उनसे कहा ८४ लाख योनिया धरती पर बना दो और फिर उन पर लेट कर घूम लिए और कहा नारायण मुझे माफ़ कर दीजिये आगे से कभी गुरु निंदा नहीं करूँगा*
*यह सुनकर विष्णु जी ने कहा देखा जिस गुरु की निंदा कर रहे थे उसी ने मेरे श्राप से बचा लिया*☝
*✨नारदजी गुरु की महिमा अपरम्पार है*✨
*गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास,*
*गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग कि रखिये आस*
*गुरु चाहे गूंगा हो चाहे गुरु बाबरा हो (पागल हो) गुरु के हमेशा दास रहना चाहिए*
*गुरु यदि नरक को भेजे तब भी शिष्य को यह इच्छा रखनी चाहिए कि मुझे स्वर्ग प्राप्त होगा ,अर्थात इसमें मेरा कल्याण ही होगा!*
*यदि शिष्य को गुरु पर पूर्ण विश्वास हो तो उसका बुरा "स्वयं गुरु" भी नहीं कर सकते*

*Jai mere pyare Guruji*

चन्द्रग्रहण



चन्द्रग्रहण 
चंद्रग्रहण - 27जुलाई  2018
ग्रहण प्रारम्भ   :  11. 54 PM
ग्रहण समाप्त   :03 49AM
सूतक प्रारम्भ  :02. 54PM
यह चन्द्रगहण पुरे भारत में दिखाई देगा !
गुरुपूर्णिमा वाले दिन लगने वाला यह चंद्रग्रहण 235 मिनट तक रहेगा !
जप -तप दान के लिए विशेष महत्व रहेगा !
नोट :- इस दिन गुरुपूर्णिमा का उत्सव एवं सम्बब्धित गुरु -पूजन इत्यादि ग्रहण के सूतक प्रारम्भ (02. 54PM)होने से पहले ही संपन्न कर लेना चाहिए !

 104 साल बाद बना संयोग, सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण 27 जुलाई को  

27 जुलाई को सदी का सबसे लंबा चन्द्र ग्रहण लगेगा। चंद्र ग्रहण के शुरू होने से समाप्त होने तक का समय करीब 4 घंटे का होगा। बताया जाता है कि यह संयोग 104 साल के बाद बन रहा है। चंद्र ग्रहण 27 जुलाई की मध्य रात्रि में 11 बजकर 55 मिनट पर होगा और इसका मोक्ष काल यानी अंत 28 जुलाई की सुबह 3 बजकर 39 मिनट पर होगा। इस ग्रहण को कम से कम तीन महाद्वीपों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा। चंद्रग्रहण के दौरान चांद लाल दिखता है जिसे ब्लड मून अर्थात रक्तिम चांद कहा जाता है। पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चांद जब धरती की छाया में रहता है तो इसकी आभा रक्तिम हो जाती है जिसे रक्तिम चंद्र या लाल चांद कहते हैं, ऐसा तब होता है जब चांद पूरी तरह से धरती की आभा में ढक जाता है। 

इन देशों में दिखेगा चंद्रग्रहण
भारत के अलावा यह चंद्रग्रहण म्यांमार, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान चीन, नेपाल, एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अंटाकर्टिका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका के मध्य और पूर्वी भाग में दिखाई देगा।

ये काम न करें
-चंद्रग्रहण के समय गर्भवती महिलाएं घर से बाहर न निकलें।
-सुई व नुकीली चीजों का उपयोग करने से  भी बचना चाहिए।
-मान्यताओं के अनुसार, चंद्रग्रहण के दौरान लोगों को कुछ भी नहीं खाना चाहिए। अगर कुछ खाने का मन है, तो चंद्रग्रहण शुरू होने से पहले या फिर खत्म होने के बाद खा लें।
-चंद्रग्रहण के समय लोगों को कोई भी शुभ काम नहीं करने चाहिए।
- समय तक चंद्रग्रहण रहता है, उस वक्त तक भगवान की पूजा अर्चना न करें।




✍ बाहर  बारिश  हो  रही  थी, और अन्दर  क्लास  चल रही  थी.
तभी  टीचर  ने  बच्चों  से  पूछा - अगर तुम  सभी  को  100-100 रुपया  दिए जाए  तो  तुम  सब  क्या  क्या खरीदोगे ?

किसी  ने  कहा - मैं  वीडियो  गेम खरीदुंगा..

किसी  ने  कहा - मैं  क्रिकेट  का  बेट खरीदुंगा..

किसी  ने  कहा - मैं  अपने  लिए  प्यारी सी  गुड़िया  खरीदुंगी..

तो, किसी  ने  कहा - मैं  बहुत  सी चॉकलेट्स  खरीदुंगी..

एक  बच्चा  कुछ  सोचने  में  डुबा  हुआ  था  
टीचर  ने  उससे  पुछा - तुम  
क्या  सोच  रहे  हो, तुम  क्या खरीदोगे ?

बच्चा  बोला -टीचर  जी  मेरी  माँ  को थोड़ा  कम  दिखाई  देता  है  तो  मैं अपनी  माँ  के  लिए  एक  चश्मा खरीदूंगा !

टीचर  ने  पूछा  -  तुम्हारी  माँ  के  लिए चश्मा  तो  तुम्हारे  पापा  भी  खरीद सकते  है  तुम्हें  अपने  लिए  कुछ  नहीं खरीदना ?

बच्चे  ने  जो  जवाब  दिया  उससे टीचर  का  भी  गला  भर  आया !

बच्चे  ने  कहा -- मेरे  पापा  अब  इस दुनिया  में  नहीं  है  
मेरी  माँ  लोगों  के  कपड़े  सिलकर मुझे  पढ़ाती  है, और  कम  दिखाई  देने  की  वजह  से  वो  ठीक  से  कपड़े नहीं  सिल  पाती  है  इसीलिए  मैं  मेरी माँ  को  चश्मा  देना  चाहता  हुँ, ताकि मैं  अच्छे  से  पढ़  सकूँ  बड़ा  आदमी बन  सकूँ, और  माँ  को  सारे  सुख  दे सकूँ.!

टीचर -- बेटा  तेरी  सोच  ही  तेरी कमाई  है ! ये 100 रूपये  मेरे  वादे के अनुसार  और, ये 100 रूपये  और उधार  दे  रहा  हूँ। जब  कभी  कमाओ तो  लौटा  देना  और, मेरी  इच्छा  है, तू  इतना  बड़ा  आदमी  बने  कि  तेरे सर  पे  हाथ  फेरते  वक्त  मैं  धन्य  हो जाऊं !

20  वर्ष  बाद..........

बाहर  बारिश  हो  रही है, और अंदर क्लास चल रही है !

अचानक  स्कूल  के  आगे  जिला कलेक्टर  की  बत्ती  वाली  गाड़ी आकर  रूकती  है  स्कूल  स्टाफ चौकन्ना  हो  जाता  हैं !

स्कूल  में  सन्नाटा  छा  जाता  हैं !

मगर ये क्या ?

जिला  कलेक्टर  एक  वृद्ध  टीचर के पैरों  में  गिर  जाते  हैं, और  कहते हैं -- सर  मैं ....   उधार  के  100  रूपये  लौटाने  आया  हूँ !

पूरा  स्कूल  स्टॉफ  स्तब्ध !

वृद्ध  टीचर  झुके  हुए  नौजवान कलेक्टर  को उठाकर भुजाओं में कस लेता है, और रो  पड़ता  हैं !

दोस्तों --
*मशहूर  होना, पर मगरूर  मत  बनना।*
*साधारण रहना, कमज़ोर  मत  बनना।*

*वक़्त  बदलते  देर  नहीं  लगती..*

शहंशाह  को  फ़कीर, और  फ़क़ीर को शहंशाह  बनते,

*देर  नही  लगती ....*

यह छोटी सी कहानी आप  के साथ शेयर की है, 



गरुड़ पुराण


  ⛳⛳🚩गरुड़ पुराण 📚⛳
    📚|| अध्याय- (2) ||📚

📘👉🏼मरणासन्न व्यक्ति के लिए कल्याणकारी कर्म👇🏻

📗सब से पहले भूमि को गोबर से तोपना चाहिए। फिर जल की रेखा से मंडल बना कर, उस पर तिल और कुश घास बिछा कर मरणासन्न व्यक्ति को उस पर सुला देना चाहिए। उस के मूंह में पंचरत्न / स्वर्ण आदि डालने से सब पापों को जला कर मुक्त कर देता है। भूत, प्रेत आत्माएं और यम के दूत अपवित्र स्थान और ज़मीन के ऊपर रखी चारपाई से मृत शरीर में प्रवेश करते हैं।

📕उस के मूंह में गंगा जल डालना चाहिए, अथवा तुलसी का पत्ता रखना चाहिए।
 भी शोक न मनाता हुआ, उस के पास प्रभु का नाम ले।

जब तक प्राण हैं, विष्णु का नाम ले।

📘यमराज का अपने दूतों को आदेश है कि मेरे पास उन आत्माओं को लाओ जो "हरी" का नाम नहीं लेते। "ॐ", " हरी" को जपने वाले मेरे पास नहीं आते। पापी मनुष जो नारायाण को नहीं मानते, उन के कितने ही पुन्य कर्म उन के पापों को नहीं मिटा सकते।

📗हे गरुड़, जाने या अनजाने में मनुष, जो भी पाप करते हैं, उन पापों की शुद्धि के लिए उन्हें प्रायश्चित करना चाहिए / शाश्त्रों में दशविधि स्नान, च्न्द्राय्न्ना व्रत, गौ दान, आदि का लेख किया गया है। यदि मनुष उन में क्षमता के कारण सफल न हो रहा हो तो कम से कम चौथाइ प्राय्क्चित अवश्य करना चाहिए। तत्पश्चात 10 महादान, गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण घी, वस्त्र, गुड, रजत, लवण, इन का दान करना चाहिए। यह पाप की शुद्धि के लिए, पवित्रता में एक से एक बढ़ कर हैं। 

📒यमदुआर पर पहुँचने के जो मार्ग बताये गए हैं, वह अत्यंत दुर्ग्न्धिक, मवाद, रक्त्त आदि से परिव्याप्त हैं। अत: उस मार्ग में स्थित वैतरणी नदी को पार करने के लिए वैतरणी- गौ (जो गौ सर्वांग में काली हो और जिस के थन भी काले हों ) का दान करने चाहिए। यह सब उत्तम प्रकृति वाले ब्राह्मण को देना चाहिए। 🌴

📚📚पद दान का महत्व:📚📚

📘छत्र, जूता, वस्त्र, अंगूठी, कमंडलू, आसन, पात्र और भोजन पदार्थ, यह आठ प्राकर के पद दान हैं। तिल पात्र, घृत पात्र, शय्या, तथा और जो अपने को ईष्ट हो, देना चाहिए।

📘हे पक्षी राज, इस पृथ्वी पर जिस ने पाप का प्रायश्चित कर लिया है, सब प्रकार के दान भी दे चूका है, वैतरणी -गौ तथा अष्ट दान कर चूका है, जो तिल से पूर्ण पात्र, घी से भरा पात्र, शय्या दान और विधिवत पद दान करता है, वह नर्क रुपी गर्भ में नहीं आता, अर्थात उस का पुनर्जन्म नहीं होता।

📘मनुष स्वय जो दान करता है, परलोक में वह सब उसे प्राप्त होता है। वहां उस के आगे रखा हुआ मिलता है।

📘छत्र दान करने से मार्ग में सुख प्रदान करने वाली छाया प्राप्त होती है।

📘पादुका दान से वह मनुष्य घोड़े पर सवार हो कर सुखपूर्वक मार्ग पार करता है।

📘जल से परिपूर्ण कमंडलू के दान से मनुष्य सुख पूर्वक परलोक गमन करता है।

📘वस्त्र - आभूषण दान करने से यम दूत प्राणी को कष्ट नहीं देते।

📗तिल( सफ़ेद, काले, भूरे ) के दान से, मन, वाणी, और शरीर से किये हुए पाप नष्ट होते हैं।

📕सभी साधनों से युक्त शय्या दान से स्वर्ग लोक में 60000 वर्ष तक, इंद्र लोक के भोग भोगता है।

📒इस के अतिरिक्त, गौ दान देते समय "नान्दानान्दानाम" के उच्चारण करने से वेत्रनी नदी में नहीं गिरता।

📒दुखद, और बिमारी के समय, तिल, लोहा, सोना, रूई का वस्त्र, नमक, सात अनाज, भूमि का टुकड़ा, देने से पाप कर्मों की शुद्धि होती है।

📗लोहा दान करने से, यम की नगरी में नहीं जाता। लोहे का दान, हाथों को जमीन के साथ छूते हुए देना चाहिए। यम राज के हाथों में कई प्रकार के लोहे के अस्त्र होते हैं। यह दान उन अस्त्रों के प्रभाब को कम करता है|

📗सोने का दान, यम राज की सभा में उपस्थित, ब्रह्मा, और दुसरे ऋषि मुनिओं को प्रसन्न करता है जो की वरदान की संज्ञा रखता है।

📗रूई के वस्त्र से यमदूत, कष्ट नहीं देते।

📒सात अनाजों के दान से, यम दूआरों पर तैनात कर्मचारी आनन्दित होते हैं।

📘भूमि के टुकड़े पर, जिस पर फसल हो, देने से इंद्र लोक की प्राप्ति होती है।

📕पूरे होश में रहते हुए, एक गौ का दान, बीमार अवस्था में एक सो (100) और मरणासन्न के समय एक हजार गौ दान करने के बराबर है।

📘एक गौ केवल एक जन को ही दी जानी चाहिए। वह यदि इस गौ को बेचता है या किसी दुसरे के साथ इस का बटवारा करता है, तो उस का परिवार सात पीढयों तक पीडत रहता है।

📘गौ दान करने की विधि👇🏻

काली या भूरी गौ के सींगों पर सोने का पत्र, और पैरों में चांदी पहनाएं।

इस का दूध पीतल के बर्तन में निकालें।

गौ के ऊपर काले कपडे का दोशाळा डाले।

📗दूध वाले बर्तन को ढक कर, रूई के ऊपर रखें।इस के पास यमराज की एक सोने की मूर्ती, एक लोहे का टुकड़ा, पीतल के बर्तन में घी, यह सब गौ के ऊपर रखें।

📒गन्ने की पौरिओं से, रेशम की डोर से बंधा एक फट्टा बना कर, धरती में एक गड्ढा बना कर, पानी से भरें और फट्टा को इस में रखें।

📒🙏🏾गौ की पूंछ पकड़ कर, पैर फट्टा पर रख कर, ब्राह्मिन को दान- दक्षिणा, नमस्कार करके, मन्त्र का उच्चारण करते हुए भगवान् विष्णु से नम्र प्रार्थना करें की हे प्रभु, आप सब प्रानिओं के दाता, रक्षक और कल्याणकारी हैं। आपके चरणों में यह उपहार भेंट करता हुआ, वेतारनी नदी को नमस्कार करता हूँ। हे गौ माता, आप देवी शक्ति के रूप में, मेरे पापों का खंडन करें। फिर हाथ जोड़े हुए, यम राज को गौ की प्रतिमा में देखते हुए, इन सब के गिर्द एक चक्कर लगा कर ब्राह्मिन को दान में दें।

गौ दान के लिए शुभ समय, स्थान :

सभी नहाने वाले पवित्र स्थल

ब्राह्मिनों के निवास स्थान

सूर्य, चन्द्र ग्रेहन

नये चाँद वाले दिन 

📘थोड़ी सम्पत्ति, धन अपने हाथों से दान में दी हुई का प्रभाव सदा ही रहता है। धन, सम्पत्ति, पत्नी, परिवार, सब विनाश होने वाले हैं इस लिए पुण्य कर्मों को संचित करो। पुण्य - दान, छोटे-बड़े से मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता।

📕लालच के कारण जो पापी लोग, बीमारीओं में पुण्य - दान नहीं करते, वह सदा दुखी ही रहते हैं।

📒पुत्र, पौत्र, भाई, बन्धु, मित्र, जो मरणासन्न व्यक्ति के लिए, दान पुण्य नहीं करते, उन्हें ब्राह्मिन हत्या का पाप लगता है।

📗इन बताए गये सभी प्रकार के दानों में प्राणी की श्रद्धा और अश्रद्धा से आई हुई दान की अधिकता और कमी के कारण उस के फल में श्रेष्ठता और लघुता आती है।

📕भूमि पर बने इस मंडल में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, लक्ष्मी तथा अग्नि देवता विराजमान हो जाते हैं। अत: मंडल का निर्माण अवश्य करना चाहिए। मंडलवहींन भूमि पर प्राणत्याग करने पर, उसे अन्य योनी नहीं प्राप्त होती। उस की जीव आत्मा वायु के साथ भटकती रहती है।

📗तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हुए हैं।इस का प्रयोग करने पर असुर, दानव, दैत्ये भाग जाते हैं। एक ही तिल का दाना स्वर्ण के बत्तीस सेर तिल के बराबर हैं।

📕कुश मेरे शरीर के रोमों से उत्पन्न हुए हैं। कुश के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में शिव को जानना चाहिए। इस लिए देवताओं की त्रप्ति के लिए मुख रूप से "कुश" को, और पितरों की तृप्ति के लिए "तिल " का महत्व है। 

📘हे पक्षी श्रेष्ट, विष्णु, एकादशी व्रत, गीता, तुलसी, ब्राह्मिन और गौ, यह छे, दुर्गम असार- संसार में लोगों को मुक्ति प्रदान करने के साधन हैं। अंतिम साँसों में "ओ गंगा, ओ गंगा, भागवत गीता के शलोक अथवा "हरी" का नाम जपने से मंगल कारी होता है।

📕मृतु काल में मरणासन्न के दोनो हाथों में "कुश" रखना चाहिए / इस से प्राणी विष्णु लोक को प्राप्त होता है।

लावनारस, पितरों को प्रिय होता है अथवा स्वर्ग प्रदान करता है।

📘उस के समीप, तुलसी का पेड़, शालग्राम की शिल्ला ( सभी पापों को नष्ट करती है), भी लाकर रखें। जिस घर में तुलसी स्थल बना कर तुलसी की पूजा होती है वह एक पवित्र नहाने का स्थान माना जाता है और यम के दूत वहां नहीं आते।

📒इस के बाद, यथा विधान सूतकों का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मृत्यु मुक्ति दायक होती है। 

📒शोक न मनाते, पुत्र को सर मुंडवा कर नए वस्त्र्र धारण कर, अपने प्रियजनों के साथ लाश को नहलाना चाहिए।

📕इस के बाद मरे हुए व्यक्ति के शरीरगत विभिन सथानों में ( मुख, नाक के छिदर, नेत्र, कान, लिंग, ब्रह्माण्ड ) पर सोने की शालाखें रखें।

📘उस के शव को दो वस्त्रों से आच्छादित करके कुंकुम और अक्षत से पूजन करना चाहिए।

📘घर की बहुरानी और दूसरों को लाश की गिर्द चक्कर लगा कर उसे पूजन चाहिए और मरण स्थल पर चावल की खील ( लाइ) अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से धरती माता और दिव्य शक्तिंयां प्रस्सन होती हैं।

📗पुष्पों की माला से विभूषत करके, उसे पुत्र, बंधुओं के साथ दुआर से लेजाया जाए। उस समय पुत्र को मरे हुए पिता के शव को कंधे पर रख कर स्वयं ले जाना चाहिए। यदि मनुष को मोक्ष न मिलता हो, तो पुत्र नर्क से उसका उद्दार कर देता है। जो पुत्र लाश को कन्धा देता है, उसे हर कदम पर अश्व मेघ यघ का फल मिलता है।🌴

     🏞🙏🏾भक्ति सागर 🙏🏾🏞
  ⛳⛳🚩गरुड़ पुराण 📚⛳🙏🏾

    📚|| अध्याय- (2) ||📚

📘👉🏼मरणासन्न व्यक्ति के लिए कल्याणकारी कर्म👇🏻

📗सब से पहले भूमि को गोबर से तोपना चाहिए। फिर जल की रेखा से मंडल बना कर, उस पर तिल और कुश घास बिछा कर मरणासन्न व्यक्ति को उस पर सुला देना चाहिए। उस के मूंह में पंचरत्न / स्वर्ण आदि डालने से सब पापों को जला कर मुक्त कर देता है। भूत, प्रेत आत्माएं और यम के दूत अपवित्र स्थान और ज़मीन के ऊपर रखी चारपाई से मृत शरीर में प्रवेश करते हैं।

📕उस के मूंह में गंगा जल डालना चाहिए, अथवा तुलसी का पत्ता रखना चाहिए।
 भी शोक न मनाता हुआ, उस के पास प्रभु का नाम ले।

जब तक प्राण हैं, विष्णु का नाम ले।

📘यमराज का अपने दूतों को आदेश है कि मेरे पास उन आत्माओं को लाओ जो "हरी" का नाम नहीं लेते। "ॐ", " हरी" को जपने वाले मेरे पास नहीं आते। पापी मनुष जो नारायाण को नहीं मानते, उन के कितने ही पुन्य कर्म उन के पापों को नहीं मिटा सकते।

📗हे गरुड़, जाने या अनजाने में मनुष, जो भी पाप करते हैं, उन पापों की शुद्धि के लिए उन्हें प्रायश्चित करना चाहिए / शाश्त्रों में दशविधि स्नान, च्न्द्राय्न्ना व्रत, गौ दान, आदि का लेख किया गया है। यदि मनुष उन में क्षमता के कारण सफल न हो रहा हो तो कम से कम चौथाइ प्राय्क्चित अवश्य करना चाहिए। तत्पश्चात 10 महादान, गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण घी, वस्त्र, गुड, रजत, लवण, इन का दान करना चाहिए। यह पाप की शुद्धि के लिए, पवित्रता में एक से एक बढ़ कर हैं। 

📒यमदुआर पर पहुँचने के जो मार्ग बताये गए हैं, वह अत्यंत दुर्ग्न्धिक, मवाद, रक्त्त आदि से परिव्याप्त हैं। अत: उस मार्ग में स्थित वैतरणी नदी को पार करने के लिए वैतरणी- गौ (जो गौ सर्वांग में काली हो और जिस के थन भी काले हों ) का दान करने चाहिए। यह सब उत्तम प्रकृति वाले ब्राह्मण को देना चाहिए। 🌴

📚📚पद दान का महत्व:📚📚

📘छत्र, जूता, वस्त्र, अंगूठी, कमंडलू, आसन, पात्र और भोजन पदार्थ, यह आठ प्राकर के पद दान हैं। तिल पात्र, घृत पात्र, शय्या, तथा और जो अपने को ईष्ट हो, देना चाहिए।

📘हे पक्षी राज, इस पृथ्वी पर जिस ने पाप का प्रायश्चित कर लिया है, सब प्रकार के दान भी दे चूका है, वैतरणी -गौ तथा अष्ट दान कर चूका है, जो तिल से पूर्ण पात्र, घी से भरा पात्र, शय्या दान और विधिवत पद दान करता है, वह नर्क रुपी गर्भ में नहीं आता, अर्थात उस का पुनर्जन्म नहीं होता।

📘मनुष स्वय जो दान करता है, परलोक में वह सब उसे प्राप्त होता है। वहां उस के आगे रखा हुआ मिलता है।

📘छत्र दान करने से मार्ग में सुख प्रदान करने वाली छाया प्राप्त होती है।

📘पादुका दान से वह मनुष्य घोड़े पर सवार हो कर सुखपूर्वक मार्ग पार करता है।

📘जल से परिपूर्ण कमंडलू के दान से मनुष्य सुख पूर्वक परलोक गमन करता है।

📘वस्त्र - आभूषण दान करने से यम दूत प्राणी को कष्ट नहीं देते।

📗तिल( सफ़ेद, काले, भूरे ) के दान से, मन, वाणी, और शरीर से किये हुए पाप नष्ट होते हैं।

📕सभी साधनों से युक्त शय्या दान से स्वर्ग लोक में 60000 वर्ष तक, इंद्र लोक के भोग भोगता है।

📒इस के अतिरिक्त, गौ दान देते समय "नान्दानान्दानाम" के उच्चारण करने से वेत्रनी नदी में नहीं गिरता।

📒दुखद, और बिमारी के समय, तिल, लोहा, सोना, रूई का वस्त्र, नमक, सात अनाज, भूमि का टुकड़ा, देने से पाप कर्मों की शुद्धि होती है।

📗लोहा दान करने से, यम की नगरी में नहीं जाता। लोहे का दान, हाथों को जमीन के साथ छूते हुए देना चाहिए। यम राज के हाथों में कई प्रकार के लोहे के अस्त्र होते हैं। यह दान उन अस्त्रों के प्रभाब को कम करता है|

📗सोने का दान, यम राज की सभा में उपस्थित, ब्रह्मा, और दुसरे ऋषि मुनिओं को प्रसन्न करता है जो की वरदान की संज्ञा रखता है।

📗रूई के वस्त्र से यमदूत, कष्ट नहीं देते।

📒सात अनाजों के दान से, यम दूआरों पर तैनात कर्मचारी आनन्दित होते हैं।

📘भूमि के टुकड़े पर, जिस पर फसल हो, देने से इंद्र लोक की प्राप्ति होती है।

📕पूरे होश में रहते हुए, एक गौ का दान, बीमार अवस्था में एक सो (100) और मरणासन्न के समय एक हजार गौ दान करने के बराबर है।

📘एक गौ केवल एक जन को ही दी जानी चाहिए। वह यदि इस गौ को बेचता है या किसी दुसरे के साथ इस का बटवारा करता है, तो उस का परिवार सात पीढयों तक पीडत रहता है।

📘गौ दान करने की विधि👇🏻

काली या भूरी गौ के सींगों पर सोने का पत्र, और पैरों में चांदी पहनाएं।

इस का दूध पीतल के बर्तन में निकालें।

गौ के ऊपर काले कपडे का दोशाळा डाले।

📗दूध वाले बर्तन को ढक कर, रूई के ऊपर रखें।इस के पास यमराज की एक सोने की मूर्ती, एक लोहे का टुकड़ा, पीतल के बर्तन में घी, यह सब गौ के ऊपर रखें।

📒गन्ने की पौरिओं से, रेशम की डोर से बंधा एक फट्टा बना कर, धरती में एक गड्ढा बना कर, पानी से भरें और फट्टा को इस में रखें।

📒🙏🏾गौ की पूंछ पकड़ कर, पैर फट्टा पर रख कर, ब्राह्मिन को दान- दक्षिणा, नमस्कार करके, मन्त्र का उच्चारण करते हुए भगवान् विष्णु से नम्र प्रार्थना करें की हे प्रभु, आप सब प्रानिओं के दाता, रक्षक और कल्याणकारी हैं। आपके चरणों में यह उपहार भेंट करता हुआ, वेतारनी नदी को नमस्कार करता हूँ। हे गौ माता, आप देवी शक्ति के रूप में, मेरे पापों का खंडन करें। फिर हाथ जोड़े हुए, यम राज को गौ की प्रतिमा में देखते हुए, इन सब के गिर्द एक चक्कर लगा कर ब्राह्मिन को दान में दें।

गौ दान के लिए शुभ समय, स्थान :

सभी नहाने वाले पवित्र स्थल

ब्राह्मिनों के निवास स्थान

सूर्य, चन्द्र ग्रेहन

नये चाँद वाले दिन 

📘थोड़ी सम्पत्ति, धन अपने हाथों से दान में दी हुई का प्रभाव सदा ही रहता है। धन, सम्पत्ति, पत्नी, परिवार, सब विनाश होने वाले हैं इस लिए पुण्य कर्मों को संचित करो। पुण्य - दान, छोटे-बड़े से मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता।

📕लालच के कारण जो पापी लोग, बीमारीओं में पुण्य - दान नहीं करते, वह सदा दुखी ही रहते हैं।

📒पुत्र, पौत्र, भाई, बन्धु, मित्र, जो मरणासन्न व्यक्ति के लिए, दान पुण्य नहीं करते, उन्हें ब्राह्मिन हत्या का पाप लगता है।

📗इन बताए गये सभी प्रकार के दानों में प्राणी की श्रद्धा और अश्रद्धा से आई हुई दान की अधिकता और कमी के कारण उस के फल में श्रेष्ठता और लघुता आती है।

📕भूमि पर बने इस मंडल में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, लक्ष्मी तथा अग्नि देवता विराजमान हो जाते हैं। अत: मंडल का निर्माण अवश्य करना चाहिए। मंडलवहींन भूमि पर प्राणत्याग करने पर, उसे अन्य योनी नहीं प्राप्त होती। उस की जीव आत्मा वायु के साथ भटकती रहती है।

📗तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हुए हैं।इस का प्रयोग करने पर असुर, दानव, दैत्ये भाग जाते हैं। एक ही तिल का दाना स्वर्ण के बत्तीस सेर तिल के बराबर हैं।

📕कुश मेरे शरीर के रोमों से उत्पन्न हुए हैं। कुश के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में शिव को जानना चाहिए। इस लिए देवताओं की त्रप्ति के लिए मुख रूप से "कुश" को, और पितरों की तृप्ति के लिए "तिल " का महत्व है। 

📘हे पक्षी श्रेष्ट, विष्णु, एकादशी व्रत, गीता, तुलसी, ब्राह्मिन और गौ, यह छे, दुर्गम असार- संसार में लोगों को मुक्ति प्रदान करने के साधन हैं। अंतिम साँसों में "ओ गंगा, ओ गंगा, भागवत गीता के शलोक अथवा "हरी" का नाम जपने से मंगल कारी होता है।

📕मृतु काल में मरणासन्न के दोनो हाथों में "कुश" रखना चाहिए / इस से प्राणी विष्णु लोक को प्राप्त होता है।

लावनारस, पितरों को प्रिय होता है अथवा स्वर्ग प्रदान करता है।

📘उस के समीप, तुलसी का पेड़, शालग्राम की शिल्ला ( सभी पापों को नष्ट करती है), भी लाकर रखें। जिस घर में तुलसी स्थल बना कर तुलसी की पूजा होती है वह एक पवित्र नहाने का स्थान माना जाता है और यम के दूत वहां नहीं आते।

📒इस के बाद, यथा विधान सूतकों का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मृत्यु मुक्ति दायक होती है। 

📒शोक न मनाते, पुत्र को सर मुंडवा कर नए वस्त्र्र धारण कर, अपने प्रियजनों के साथ लाश को नहलाना चाहिए।

📕इस के बाद मरे हुए व्यक्ति के शरीरगत विभिन सथानों में ( मुख, नाक के छिदर, नेत्र, कान, लिंग, ब्रह्माण्ड ) पर सोने की शालाखें रखें।

📘उस के शव को दो वस्त्रों से आच्छादित करके कुंकुम और अक्षत से पूजन करना चाहिए।

📘घर की बहुरानी और दूसरों को लाश की गिर्द चक्कर लगा कर उसे पूजन चाहिए और मरण स्थल पर चावल की खील ( लाइ) अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से धरती माता और दिव्य शक्तिंयां प्रस्सन होती हैं।

📗पुष्पों की माला से विभूषत करके, उसे पुत्र, बंधुओं के साथ दुआर से लेजाया जाए। उस समय पुत्र को मरे हुए पिता के शव को कंधे पर रख कर स्वयं ले जाना चाहिए। यदि मनुष को मोक्ष न मिलता हो, तो पुत्र नर्क से उसका उद्दार कर देता है। जो पुत्र लाश को कन्धा देता है, उसे हर कदम पर अश्व मेघ यघ का फल मिलता है।🌴

     🏞🙏🏾भक्ति सागर 🙏🏾🏞

SANTOSH PIDHAULI

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