फ़ॉलोअर

कैसा हो घर का वास्तु स्वर्गीय अटल जी की ज़ुबानी -



कैसा हो घर का वास्तु स्वर्गीय अटल जी की ज़ुबानी -
घर चाहे कैसा भी हो..
उसके एक कोने में..

खुलकर हंसने की जगह रखना..


सूरज कितना भी दूर हो..
उसको घर आने का रास्ता देना..

कभी कभी छत पर चढ़कर..
तारे अवश्य गिनना..

हो सके तो हाथ बढ़ा कर..
चाँद को छूने की कोशिश करना .

अगर हो लोगों से मिलना जुलना..
तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना..

भीगने देना बारिश में..

उछल कूद भी करने देना..
हो सके तो बच्चों को..
एक कागज़ की किश्ती चलाने देना..

कभी हो फुरसत,आसमान भी साफ हो..
तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना..
हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना..

घर के सामने रखना एक पेड़..
उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य  सुनना..

घर चाहे कैसा भी हो.. 

घर के एक कोने में..
खुलकर हँसने की जगह रखना.

चाहे जिधर से गुज़रिये
मीठी सी हलचल मचा दिजिये,

उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है
अपनी उम्र का मज़ा लिजिये.

ज़िंदा दिल रहिए जनाब,
ये चेहरे पे उदासी कैसी
वक्त तो बीत ही रहा है,
*उम्र की एेसी की तैसी...!¡!* 🔶
जय श्री राम

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त



इस साल 13 सितंबर से गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू हो जाएगा। गणपति को घर लाने और उत्सव की तैयारियों के लिए आपने खरीदारी का मन बना लिया होगा। अगर आप भी गणपति को घर में विराजित करते हैं तो यहां जानिए पूजा की सही विधि और गणपति स्थापना का सही तरीका…

सबसे पहले करें यह काम
गणेश चतुर्थी पर पूजा के लिए जरूरी है कि बाजार से गणपति की एक नई प्रतिमा लाई जाए। यदि आप प्रतिमा स्थापित नहीं करना चाहते हैं तो एक साबुत पूजा सुपारी को गणपति स्वरूप मानकर उसे भी घर में स्थापित कर सकते हैं।

स्थापना का सही तरीका
गणपति को घर में विराजने से पहले पूजा स्थल की सफाई कर लें। फिर एक साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षत रखें और उनके ऊपर गणपति को स्थापित करें। इसके बाद गणपति को दूर्वा या पान के पत्ते की सहायता से गंगाजल से स्नान कराएं। पीले वस्त्र गणपति को अर्पित करें या मोली को वस्त्र मानकर अर्पित करें। इसके बाद रोली से तिलक कर अक्षत लगाएं, फूल चढ़ाएं और मिष्ठान का भोग लगाएं। कीर्तन करें। प्रसाद में प्रतिदिन पंचमेवा जरूर रखें।

ऐसे रखें सामान को सही जगह पर
गणपति की चौकी के पास तांबे या चांदी के कलश में जल भरकर रखें। कलश गणपति के दाईं और होना चाहिए। इस कलश के नीचे चावल या अक्षत रखें और इस पर मोली अवश्य बांधें। गणपति के दाईं तरफ घी का दीपक जलाएं। दीपक को कभी भी सीधे जमीन पर न रखें और इसके नीचे भी चावल रखें। पूजा का समय निश्चित रखें। यदि आप माला जप करने का प्रण ले रहे हैं तो प्रतिदिन नियत समय पर उतनी ही माला का जप करें

संकल्प करना है जरूरी
गणपति की स्थापना के बाद दाएं (सीधे) हाथ में अक्षत और गंगाजल लेकर संकल्प करें। कहें कि हम गणपति को इतने दिनों तक अपने घर में स्थापित करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा करेंगे। संकल्प में उतने दिनों का जिक्र करें, जितने दिन आप गणपति को अपने घर में विराजना चाहते हों। जैसे, तीन, पांच,सात, नौ या 11 दिन।

गणपति का आह्वान करें
ओम् गणेशाय नम: का जप करते हुए स्थापित की गई गणपति प्रतिमा को प्रणाम करें और उनसे विनती करिए कि प्रभु हम इतने दिनों तक आपको प्रतिष्ठित करने विधि पूर्वक पूजा करना चाहते हैं। आप ऋद्धि-सिद्धि के साथ हमारे घर में विराजमान हों। आपकी पूजा के दौरान यदि हमसे कोई गलती हो जाती है तो कृपा कर हमें क्षमा करें और अपनी अनुकंपा हम पर बनाए रखें।

शुभ-लाभ प्राप्ति के लिए
घर में शुभ-लाभ की वृद्धि और समृद्धि की प्राप्ति के लिए गणपति को प्रतिदिन 5 दूर्वा अर्पित करें। साथ ही पांच हरी इलायची और 5 कमलगट्टे एक कटोरी में रखकर भगवान के चरणों में रख दें। दूर्वा को प्रतिदिन बदलते रहें और इलायची तथा कमलगट्टों को पूजा के अंतिम दिन तक वहीं रखा रहने दें। पूजन संपन्न होने के बाद कमलगट्टों को लाल कपड़े में बांधकर घर के मंदिर में रख लें तथा इलायची को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त
13 सितंबर से 23 सितंबर तक चलेगा गणेश चतुर्थी उत्सव
इस बार गणेश उत्सव 13 से 23 सितंबर तक चलेगा। ज्योतिष के अनुसार इस बार चतुर्थी वाले दिन काफी अच्छे संयोग बन रहे है। गणेश चतुर्थी के दिन सुबह-सुबह साधक को उपवास पर रहना चाहिए और दोपहर में गणेशजी की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर विधिविधान से पूजा करनी चाहिए।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त

13 सितंबर मध्याह्न गणेश पूजा का समय - 11:03 से 13:30

अवधि - 2 घण्टे 27 मिनट

12 सितंबर को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय - 16:07 से 20:33

अवधि - 4 घण्टे 26 मिनट

13 सितंबर को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय - 9:31 से 21:12

अवधि - 11 घण्टे 40 मिनट

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ -12सितम्बर 2018 को 16: 07 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त - 13 सितम्बर 2018 को 14 :51 बजे

पूजा सामग्री


धूप बत्ती (अगरबत्ती) 1


कपूर 1

केसर 1

चंदन

यज्ञोपवीत 5

कुंकु 1

चावल 500

अबीर 1

गुलाल, अभ्रक 1

हल्दी 1

आभूषण 1

नाड़ा 1

रुई 1

रोली, सिंदूर 1

सुपारी,11


पान के पत्ते 11

पुष्पमाला, 5 कमलगट्टे 1

धनिया खड़ा 100 ग्राम

सप्तमृत्तिका 1

सप्तधान्य 1

कुशा व दूर्वा 2

पंच मेवा 1

गंगाजल 1

शहद (मधु) 1

शकर 250 ग्राम

घृत (शुद्ध घी) 500 ग्राम

दही 100 ग्राम

दूध 500 ग्राम

ऋतुफल पांच फल

नैवेद्य या मिष्ठान्न 1 किला

( पेड़ा, मालपुए इत्यादि)

इलायची (छोटी) 1 पैकेट

लौंग 1


मौली 1

इत्र की शीशी 1

सिंहासन (चौकी, आसन) 1






पंच पल्लव 2


हवन सामग्री : कुल सामग्री में सबसे ज्यादा तिल, तिल का आधा चावल, चावल का आधा जौ हों चाहिए |






किलो सामग्री में :


तिल – 200 ग्राम , चावल – 200 ग्राम, जौ – 100 ग्राम किगूगल – 10 ग्राम, मिश्री – ५०० ग्राम, घी- २५० ग्राम, कमलगट्टा – 10 ग्राम, कपूर पाउडर – १0 ग्राम, जटामसी – १० ग्राम, चंदनचुरा – १०ग्राम | ये सभी मिला लें |


आहुति डालने के लिए घी अलग से |


लकड़ी – आम, पिप;, पलाश, बड आदि |

ध्यान श्लोक - शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..



षोडशोपचार पूजन - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि .

और गणेश जी के इन नामों का जप करें - 



ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ गणक्रीडाय नमः॥

ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐएकदंष्ट्राय नमः॥

ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐमदोदराय नमः॥

ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐविकटाय नमः॥

ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ दुर्मुखाय नमः॥

ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐविघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननायनमः॥

ॐ भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दायनमः॥

ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐमदोत्कटाय नमः॥ ॐहेरम्बाय नमः॥

ॐ शम्बराय नमः॥ ॐशम्भवे नमः ॥ॐ लम्बकर्णायनमः ॥ॐ महाबलाय नमः॥ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ

अलम्पटाय नमः ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐमेघनादायनमः ॥ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः

॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥ॐ शूरायनमः ॥ॐवरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥ॐ

बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्रायनमः ॥

ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐईशानपुत्राय नमः ॥ॐमूषकवाहनाय नः ॥

ॐ सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥ॐसिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥

ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐसिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥

ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐराजपुत्राय नमः ॥ॐशकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः॥

ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः॥ॐदुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥

ॐ अजयाय नमः ॥ॐभूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशायनमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥

ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥

ॐ निधये नमः॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐकवीनामृषभाय नमः॥

ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये नमः ॥

ॐनिधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐहिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगायनमः ॥

ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐपूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥

ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐकुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः॥

ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ मनोमयाय नमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥

ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥

ॐमेखलिन नमः ॥ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥

ॐ गुणिनेनमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐसुरूपाय नमः ॥ॐसर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥

ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐपीताम्बराय नमः ॥ॐखड्गधराय नमः ॥

ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐचित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥

ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐतारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः॥

ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥

ॐ गणपतये नमः ॥ॐ ध्वजिने नमः ॥ॐदेवदेवायनमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥

ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐनादाय नमः ॥

ॐनादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥

ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥

ॐदैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः

॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐशम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥

ॐगौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥

ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥ॐमहानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥

ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ सर्वात्मने नमः ॥ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥

ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ

चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐजगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥


ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐधर्मिष्ठाय नमः ॥

ॐ सामबृंहिताय नमः ॥ॐग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐवाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥

ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐसोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥

ॐनदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐतारकानखाय नमः ॥

ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ॐब्रह्मविद्यामदोत्कटायनमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः॥

ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐअर्णवोदराय नमः ॥

ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः||



उत्तर पूजा - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिः समर्पयामि

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |

तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ..|

प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि |

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा |

प्रार्थनां समर्पयामि |

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं |

पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम |

क्षमापनं समर्पयामि |

ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च ||

हरतालिका तीज

सावन का महीना आते ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. सावन में ही हरतालिका तीज यानी हरियाली तीज भी मनाई जाती है. इस त्योहार को महिलाएं मनचाहा वर और सौभाग्य पाने के लिए मनाती हैं.



ये त्योहार हर साल सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है. सावन के महीने में चारों तरफ हरियाली होने के कारण ही इसे हरियाली तीज नाम दिया गया है.


मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को पति के रूप में पाया था. लड़किया और विवाहित महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं. इस दिन श्रृंगार करने के बाद पेड़, नदी और जल के देवता वरुण की पूजा की जाती है.



क्यों मनाया जाता है 'हरियाली तीज'

कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों साल की साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं. यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, फिर भी माता को पति के रूप में शिव मिल न सके.

माता पार्वती ने 108वीं बार जब जन्म लिया और हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में घोर तपस्या की. पुराणों की कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान शिव देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए, साथ ही उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था.



सावन का महीना आते ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो जाता है. सावन में ही हरतालिका तीज यानी हरियाली तीज भी मनाई जाती है. इस त्योहार को महिलाएं मनचाहा वर और सौभाग्य पाने के लिए मनाती हैं.
ये त्योहार हर साल सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन मनाया जाता है. सावन के महीने में चारों तरफ हरियाली होने के कारण ही इसे हरियाली तीज नाम दिया गया है

मान्यता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या से भगवान शिव को पति के रूप में पाया था. लड़किया और विवाहित महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं. इस दिन श्रृंगार करने के बाद पेड़, नदी और जल के देवता वरुण की पूजा की जाती है.



क्यों मनाया जाता है 'हरियाली तीज'

कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों साल की साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं. यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 बार जन्म लिया, फिर भी माता को पति के रूप में शिव मिल न सके.

माता पार्वती ने 108वीं बार जब जन्म लिया और हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर में घोर तपस्या की. पुराणों की कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान शिव देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए, साथ ही उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान दिया था.

मुख्य रस्में


इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं. महिलाएं इस दिन अपने हाथों और पैरों में मेंहदी रचाती हैं. सुहागिन महिलाएं मेंहदी रचाने के बाद अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेती हैं, ये परम्परा है. इस दिन झूला-झूलने का भी रिवाज है.
कहां मनाया जाता है ये पर्व

हरियाली तीज का उत्सव भारत के कई भागों में मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा में इसकी खूब धूम देखने को मिलती है.

तीज पूजा की विधि



हरियाली तीज के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. इस दिन महिलाओं के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां आदि उनके ससुराल भेजा जाता है. हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं. इसके बाद पूरी रात जागरण करके मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करती हैं.

पूजा के अंत में तीज की कथा सुनी जाती है. इसके बाद ही महिलाएं अपना व्रत समाप्‍त करती हैं.



हरियाली तीज के लिए जरूरी पूजा और श्रृंगार सामग्री

हरियाली तीज के दिन व्रत रखा जाता है और पूजा के लिए कुछ जरूरी सामान की आवश्‍यकता होती है. पूजा के लिए काले रंग की गीली मिट्टी, पीले रंग का कपड़ा, बेल पत्र, जनेऊ, धूप-अगरबत्ती, कपूर, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, तेल, घी,दही, शहद दूध और पंचामृत चाहिए . वहीं, इस दिन पार्वती जी का श्रृंगार किया जाता है और इसके लिए चूड़‍ियां, आल्‍ता, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, कंघी, शीशा, काजल, कुमकुम, सुहाग पूड़ा और श्रृंगार की अन्‍य चीजें जुटा लें.



हरतालिका तीज: हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार भादो माह के शुक्‍ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है. इस बार 12 सितंबर को हरतालिका तीज मनाई जाएगी.

शिव मंत्र पुष्पांजलि

कर्पूर गौरमं कारुणावतारं, संसार सारम भुजगेंद्र हारम |

सदा वसंतां हृदयारविंदे, भवम भवानी साहितम् नमामि ||
मंगलम भगवान शंभू , मंगलम रिषीबध्वजा ।
मंगलम पार्वती नाथो, मंगलाय तनो हर ।।
सर्व मंगल मङ्गल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रंबके गौरी, नारायणी नमोस्तुते ।।


।। अथ मंत्र पुष्पांजली ।।
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्, ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने |नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे, स मे कामान्कामकामाय मह्यम्|
कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु, कुबेराय वैश्रवणाय | महाराजाय नम:
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं, पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी
सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति, तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति।
ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत, विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः।
ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।’ॐ
नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच, पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः।
।। मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि।।

 शिव गायत्री मंत्र  

भगवान भोलेनाथ के गायत्री मंत्र का जाप करने से सभी बाधाओं और आपदाओं से मुक्ति मिलती है | और मंत्र जाप करते समय मुख हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए अथवा काशी की तरफ मुख करके जाप करना चाहिए, ऐसा करने से जप सफल व फलदायी होता है |
ओम् महादेवाय विद्मिहे रुद्रमुर्तये धीमहि तन्नो: शिव: प्रचोदयात ||
ओम् सं सं सं ह्रीं ऊँ शिवाय नमः इति मूल मंत्र |





शिव जी की पूजा के दौरान इन मंत्रो का जाप करना चाहिए 


शिव जी की पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा उन्हें स्नान समर्पण करना चाहिए-
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो |
वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद् ||
भगवान शिव की पूजा करते समय इस मंत्र के द्वारा उन्हें यज्ञोपवीत समर्पण करना चाहिए-
ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः |
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः ||
शिवजी की पूजा में इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथको गंध समर्पण करना चाहिए
ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः |
शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च ||
शिव की पूजा में इस मंत्र के द्वारा अर्धनारीश्वर भगवानभोलेनाथ को धूप समर्पण करना चाहिए
ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च |
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ||
भगवान भोलेनाथ की पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारात्रिलोचनाय भगवान शिव को पुष्प समर्पण करनाचाहिए
ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च |
नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च ||
इस मंत्र के द्वारा चन्द्रशेखर भगवान भोलेनाथ को नैवेद्यअर्पण करना चाहिए
ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च |
नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुधन्याय च ||
शिव पूजा के दौरान इस मंत्र के द्वारा भगवान शिव कोताम्बूल पूगीफल समर्पण करना चाहिए
ॐ इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः |
यशा शमशद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिमन्ननातुराम् ||
भगवान शिव की पूजा करते समय इस मंत्र से भोलेनाथको सुगन्धित तेल समर्पण करना चाहिए
ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च |
नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च ||
इस मंत्र के द्वारा भगवान भोलेनाथ को दीप दर्शनकराना चाहिए
ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च |
नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च ||
इस मंत्र से भगवान शिवजी को बिल्वपत्र समर्पण करनाचाहिए
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम् |
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् ||
स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए शिवजी के मंत्र  | 
निरोग रहने और अच्छे स्वास्थ्य के लिए शिव जी के इसमंत्र का जाप करना चाहिए:
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।।
कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय।
सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।।

SANTOSH PIDHAULI

facebook follow

twitter

linkedin


Protected by Copyscape Online Copyright Protection
Text selection Lock by Hindi Blog Tips
Hindi Blog Tips

मेरी ब्लॉग सूची