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कैसे मनाते हैं धनतेरस 2018



दीपावली के पहले लोग जानना चाहते हैं कि धनतेरस कब है ? अापकी जानकारी के लिए हम बताते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। इसी दिन भगवान महावीर तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से जाना जाता है। इस साल धनतेरस 5 नवंबर को है। यह पर्व हिन्दू धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्यौहार दिवाली से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है जो पांच दिनों तक चलने वाले पर्व का सबसे पहला दिन होता है। यहां अाप धनतेरस पूजन विधि और मुहूर्त अादि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

कैसे मनाते हैं धनतेरस
देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परंपरा है। इस दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। इस दिन यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यमदेव की पूजा करने के बाद पूरी रात घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाना चाहिए। इस दीपक में कुछ पैसा व कौड़ी भी डाली जाती है।

धनतेरस पर गहनें, बर्तन और वाहनों की खरीदारी शुभ
इस दिन नये उपहार, सिक्का, बर्तन वाहन और गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। लक्ष्मी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढ़ाता है। इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है। इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता है। इस दिन ज्वेलर्स के पास भी काफी भीड़ रहती है और लोग अपनी क्षमता के हिसाब से सामानों की खरीदारी करते हैं। इतना ही नहीं इस दिन वाहनों की भी जमकर खरीदारी होती है। लोग पहले से ही बुकिंग करवाकर रखते हैं और उस दिन वाहन घर ले अाते हैं। इसके लिए पंडित शुभ मुहूर्त भी बताते हैं। 

धनतेरस पूजन मुहूर्त

प्रदोष काल :
सूर्यास्त के बाद के 2 घंटे 24 मिनट के समय को प्रदोषकाल कहा जाता है। यम दीपदान और लक्ष्मी पूजन इसी मुहूर्त में करना चाहिए,

सांय काल में शुभ महूर्त
प्रदोष काल का समय शाम 5।31 से रात 8.04 बजे तक, स्थिर लग्न शाम 6.10 बजे से रात 8.09 बजे और धनतेरस पूजा के लिए समय शाम 6.10 बजे से रात 8.04 बजे तक है। 

चौघाडिया मुहूर्त :
इस दौरान पूजा करने से लाभ होने की मान्यता है। इससे धन, स्वास्थ्य और आयु में बढ़ोतरी होती है।
अमृत काल मुहूर्त शाम 4.30 बजे से शाम 6 बजे तक 
चर 5.56 बजे से शाम 7.30 बजे तक  

धनतेरस पूजन विधि
धन तेरस की पूजा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। सबसे पहले तेरह दीपक जला कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करना चाहिए। देव कुबेर का ध्यान करते हुए उन्हें फूल चढाएं। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें। इस दिन स्थिर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है।

धनतेरस पर यम पूजा
धनतेरस के दिन यमदेव की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन यमदेव का पूजन करने से यमदेव हमें अकालमृत्यु का भय दूर करते हैं। इसलिए अकालमृत्यु से बचने के लिए धनतेरस को यमदेव की पूजा की जाती है। अब आइये जानते है यम पूजा विधि के बारे में या यम दीपक धनतेरस कैसे मानते है।

यम का दीया कैसे जलाये – यम पूजन विधि
  • पूजा दिन में नहीं बल्क‍ि रात में होती है। यमराज की पूजा सिर्फ एक चौमुखी दीप जलाकर की जाती है।
  • इसके लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार के दाईं ओर रख दिया जाता है। इस दीया को जमदीवा, जम का दीया या यमराज का दीपक भी कहा जाता है।
  • रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं । दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए।
  • दीपक जलाने से पहले उसकी जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए। घर में पहले से दीपक जलाकर यम का दीया ना निकालें।
  • धनतेरस का दीपक मृत्यु के नियंत्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, इसलिए दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन करने के साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।

धनतेरस की कथा 
किंवदंतियों के मुताबिक किसी राज्य में एक राजा था, जिसे कई वर्षों तक की प्रतीक्षा के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, जिस दिन भी उसका विवाह होगा, उसके चार दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ। इससे बचने के लिये उसने राजकुमार को एसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो। एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी। राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा और मोहित होकर आपस में विवाह कर लिया।
ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। यमदूत को देख राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी। यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा कि इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताइए। इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात मेरा पूजन कर दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाने की परंपरा है।

सागर मंथन से माता लक्ष्मी से दो दिन पहले उत्पन्न हुए धनवंतरी
शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी सागर मंथन के बाद हाथों में स्वर्ण कलश लेकर उत्पन्न हुए। धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई, इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य हैं और इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं और संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त



इस साल 13 सितंबर से गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू हो जाएगा। गणपति को घर लाने और उत्सव की तैयारियों के लिए आपने खरीदारी का मन बना लिया होगा। अगर आप भी गणपति को घर में विराजित करते हैं तो यहां जानिए पूजा की सही विधि और गणपति स्थापना का सही तरीका…

सबसे पहले करें यह काम
गणेश चतुर्थी पर पूजा के लिए जरूरी है कि बाजार से गणपति की एक नई प्रतिमा लाई जाए। यदि आप प्रतिमा स्थापित नहीं करना चाहते हैं तो एक साबुत पूजा सुपारी को गणपति स्वरूप मानकर उसे भी घर में स्थापित कर सकते हैं।

स्थापना का सही तरीका
गणपति को घर में विराजने से पहले पूजा स्थल की सफाई कर लें। फिर एक साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षत रखें और उनके ऊपर गणपति को स्थापित करें। इसके बाद गणपति को दूर्वा या पान के पत्ते की सहायता से गंगाजल से स्नान कराएं। पीले वस्त्र गणपति को अर्पित करें या मोली को वस्त्र मानकर अर्पित करें। इसके बाद रोली से तिलक कर अक्षत लगाएं, फूल चढ़ाएं और मिष्ठान का भोग लगाएं। कीर्तन करें। प्रसाद में प्रतिदिन पंचमेवा जरूर रखें।

ऐसे रखें सामान को सही जगह पर
गणपति की चौकी के पास तांबे या चांदी के कलश में जल भरकर रखें। कलश गणपति के दाईं और होना चाहिए। इस कलश के नीचे चावल या अक्षत रखें और इस पर मोली अवश्य बांधें। गणपति के दाईं तरफ घी का दीपक जलाएं। दीपक को कभी भी सीधे जमीन पर न रखें और इसके नीचे भी चावल रखें। पूजा का समय निश्चित रखें। यदि आप माला जप करने का प्रण ले रहे हैं तो प्रतिदिन नियत समय पर उतनी ही माला का जप करें

संकल्प करना है जरूरी
गणपति की स्थापना के बाद दाएं (सीधे) हाथ में अक्षत और गंगाजल लेकर संकल्प करें। कहें कि हम गणपति को इतने दिनों तक अपने घर में स्थापित करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा करेंगे। संकल्प में उतने दिनों का जिक्र करें, जितने दिन आप गणपति को अपने घर में विराजना चाहते हों। जैसे, तीन, पांच,सात, नौ या 11 दिन।

गणपति का आह्वान करें
ओम् गणेशाय नम: का जप करते हुए स्थापित की गई गणपति प्रतिमा को प्रणाम करें और उनसे विनती करिए कि प्रभु हम इतने दिनों तक आपको प्रतिष्ठित करने विधि पूर्वक पूजा करना चाहते हैं। आप ऋद्धि-सिद्धि के साथ हमारे घर में विराजमान हों। आपकी पूजा के दौरान यदि हमसे कोई गलती हो जाती है तो कृपा कर हमें क्षमा करें और अपनी अनुकंपा हम पर बनाए रखें।

शुभ-लाभ प्राप्ति के लिए
घर में शुभ-लाभ की वृद्धि और समृद्धि की प्राप्ति के लिए गणपति को प्रतिदिन 5 दूर्वा अर्पित करें। साथ ही पांच हरी इलायची और 5 कमलगट्टे एक कटोरी में रखकर भगवान के चरणों में रख दें। दूर्वा को प्रतिदिन बदलते रहें और इलायची तथा कमलगट्टों को पूजा के अंतिम दिन तक वहीं रखा रहने दें। पूजन संपन्न होने के बाद कमलगट्टों को लाल कपड़े में बांधकर घर के मंदिर में रख लें तथा इलायची को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त
13 सितंबर से 23 सितंबर तक चलेगा गणेश चतुर्थी उत्सव
इस बार गणेश उत्सव 13 से 23 सितंबर तक चलेगा। ज्योतिष के अनुसार इस बार चतुर्थी वाले दिन काफी अच्छे संयोग बन रहे है। गणेश चतुर्थी के दिन सुबह-सुबह साधक को उपवास पर रहना चाहिए और दोपहर में गणेशजी की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर विधिविधान से पूजा करनी चाहिए।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त

13 सितंबर मध्याह्न गणेश पूजा का समय - 11:03 से 13:30

अवधि - 2 घण्टे 27 मिनट

12 सितंबर को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय - 16:07 से 20:33

अवधि - 4 घण्टे 26 मिनट

13 सितंबर को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय - 9:31 से 21:12

अवधि - 11 घण्टे 40 मिनट

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ -12सितम्बर 2018 को 16: 07 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त - 13 सितम्बर 2018 को 14 :51 बजे

पूजा सामग्री


धूप बत्ती (अगरबत्ती) 1


कपूर 1

केसर 1

चंदन

यज्ञोपवीत 5

कुंकु 1

चावल 500

अबीर 1

गुलाल, अभ्रक 1

हल्दी 1

आभूषण 1

नाड़ा 1

रुई 1

रोली, सिंदूर 1

सुपारी,11


पान के पत्ते 11

पुष्पमाला, 5 कमलगट्टे 1

धनिया खड़ा 100 ग्राम

सप्तमृत्तिका 1

सप्तधान्य 1

कुशा व दूर्वा 2

पंच मेवा 1

गंगाजल 1

शहद (मधु) 1

शकर 250 ग्राम

घृत (शुद्ध घी) 500 ग्राम

दही 100 ग्राम

दूध 500 ग्राम

ऋतुफल पांच फल

नैवेद्य या मिष्ठान्न 1 किला

( पेड़ा, मालपुए इत्यादि)

इलायची (छोटी) 1 पैकेट

लौंग 1


मौली 1

इत्र की शीशी 1

सिंहासन (चौकी, आसन) 1






पंच पल्लव 2


हवन सामग्री : कुल सामग्री में सबसे ज्यादा तिल, तिल का आधा चावल, चावल का आधा जौ हों चाहिए |






किलो सामग्री में :


तिल – 200 ग्राम , चावल – 200 ग्राम, जौ – 100 ग्राम किगूगल – 10 ग्राम, मिश्री – ५०० ग्राम, घी- २५० ग्राम, कमलगट्टा – 10 ग्राम, कपूर पाउडर – १0 ग्राम, जटामसी – १० ग्राम, चंदनचुरा – १०ग्राम | ये सभी मिला लें |


आहुति डालने के लिए घी अलग से |


लकड़ी – आम, पिप;, पलाश, बड आदि |

ध्यान श्लोक - शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..



षोडशोपचार पूजन - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि .

और गणेश जी के इन नामों का जप करें - 



ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ गणक्रीडाय नमः॥

ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐएकदंष्ट्राय नमः॥

ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐमदोदराय नमः॥

ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐविकटाय नमः॥

ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ दुर्मुखाय नमः॥

ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐविघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननायनमः॥

ॐ भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दायनमः॥

ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐमदोत्कटाय नमः॥ ॐहेरम्बाय नमः॥

ॐ शम्बराय नमः॥ ॐशम्भवे नमः ॥ॐ लम्बकर्णायनमः ॥ॐ महाबलाय नमः॥ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ

अलम्पटाय नमः ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐमेघनादायनमः ॥ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः

॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥ॐ शूरायनमः ॥ॐवरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥ॐ

बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्रायनमः ॥

ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐईशानपुत्राय नमः ॥ॐमूषकवाहनाय नः ॥

ॐ सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥ॐसिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥

ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐसिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥

ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐराजपुत्राय नमः ॥ॐशकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः॥

ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः॥ॐदुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥

ॐ अजयाय नमः ॥ॐभूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशायनमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥

ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥

ॐ निधये नमः॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐकवीनामृषभाय नमः॥

ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये नमः ॥

ॐनिधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐहिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगायनमः ॥

ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐपूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥

ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐकुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः॥

ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ मनोमयाय नमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥

ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥

ॐमेखलिन नमः ॥ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥

ॐ गुणिनेनमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐसुरूपाय नमः ॥ॐसर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥

ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐपीताम्बराय नमः ॥ॐखड्गधराय नमः ॥

ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐचित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥

ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐतारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः॥

ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥

ॐ गणपतये नमः ॥ॐ ध्वजिने नमः ॥ॐदेवदेवायनमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥

ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐनादाय नमः ॥

ॐनादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥

ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥

ॐदैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः

॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐशम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥

ॐगौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥

ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥ॐमहानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥

ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ सर्वात्मने नमः ॥ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥

ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ

चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐजगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥


ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐधर्मिष्ठाय नमः ॥

ॐ सामबृंहिताय नमः ॥ॐग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐवाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥

ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐसोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥

ॐनदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐतारकानखाय नमः ॥

ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ॐब्रह्मविद्यामदोत्कटायनमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः॥

ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐअर्णवोदराय नमः ॥

ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः||



उत्तर पूजा - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिः समर्पयामि

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |

तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ..|

प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि |

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा |

प्रार्थनां समर्पयामि |

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं |

पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम |

क्षमापनं समर्पयामि |

ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च ||

जन्माष्टमी की बहुत सारी शुभकामनाएं 2017

जन्माष्टमी की बहुत सारी शुभकामनाएं 2017
  • 🚩श्री गणेशाय नम:🚩 
  • जन्माष्टमी की बहुत सारी शुभकामनाएं
  • 📜 दैनिक पंचांग 📜
  • ☀ 15 - Aug - 2017
  • ☀ New Delhi, India
  • ☀ पंचांग   
  • 🔅 तिथि  अष्टमी  17:41:42
  • 🔅 नक्षत्र  कृत्तिका  26:31:11
  • 🔅 करण :
  •            बालव  06:46:53
  •            कौलव  17:41:42
  • 🔅 पक्ष  कृष्ण 
  • 🔅 योग :
  •            वृद्धि  06:47:24
  •            घ्रुव  27:54:19
  • 🔅 वार  मंगलवार 
  • ☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ   
  • 🔅 सूर्योदय  05:49:59 
  • 🔅 चन्द्रोदय  24:15:59 
  • 🔅 चन्द्र राशि  मेष - 09:37:06 तक 
  • 🔅 सूर्यास्त  19:00:59 
  • 🔅 चन्द्रास्त  12:56:00 
  • 🔅 ऋतु  वर्षा 
  • ☀ हिन्दू मास एवं वर्ष   
  • 🔅 शक सम्वत  1939  हेम्लम्बी
  • 🔅 कलि सम्वत  5119 
  • 🔅 दिन काल  13:11:00 
  • 🔅 विक्रम सम्वत  2074 
  • 🔅 मास अमांत  श्रावण 
  • 🔅 मास पूर्णिमांत  भाद्रपद 
  • ☀ शुभ और अशुभ समय   
  • ☀ शुभ समय   
  • 🔅 अभिजित  11:59:08 - 12:51:52
  • ☀ अशुभ समय   
  • 🔅 दुष्टमुहूर्त  08:28:11 - 09:20:55
  • 🔅 कंटक  06:42:43 - 07:35:27
  • 🔅 यमघण्ट  10:13:40 - 11:06:24
  • 🔅 राहु काल  15:43:15 - 17:22:07
  • 🔅 कुलिक  13:44:36 - 14:37:20
  • 🔅 कालवेला या अर्द्धयाम  08:28:11 - 09:20:55
  • 🔅 यमगण्ड  09:07:44 - 10:46:37
  • 🔅 गुलिक काल  12:25:30 - 14:04:22
  • ☀ दिशा शूल   
  • 🔅 दिशा शूल  उत्तर 

  • ☀ चन्द्रबल और ताराबल   
  • ☀ ताराबल 
  • 🔅 भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशीर्षा, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वभाद्रपदा, रेवती 
  • ☀ चन्द्रबल 
  • 🔅 मेष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, कुम्भ  
  • जन्माष्टमी की बहुत सारी शुभकामनाएं

इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां 2016

आश्विन शुक्ल पक्ष में आने वाला मां आद्यशक्ति का आराध्यपर्व नवरात्र इस बार 1 अक्टूबर 2016 दिन शनिवार को प्रारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्रि में एक तिथि वृद्धि हो रही है। ऐसे में इस वर्ष नवरात्रि दस दिन के होंगे। पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि की तिथि में द्वितीया की तिथि को दो दिन बताया गया है। इस तरह से नौ के बजाए दस दिनों तक मां दुर्गा पूजीआश्विन शुक्ल पक्ष में आने वाला मां आद्यशक्ति का आराध्यपर्व नवरात्र इस बार 1 अक्टूबर 2016 दिन शनिवार को प्रारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्रि में एक तिथि वृद्धि हो रही है। ऐसे में इस वर्ष नवरात्रि दस दिन के होंगे। पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि की तिथि

में द्वितीया की तिथि को दो दिन बताया गया है। इस तरह से नौ के बजाए दस दिनों तक मां दुर्गा पूजी जाएंगी।
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इसके पूर्व भी बना था संयोग
इससे पहले वर्ष 2000 में नवरात्रि दस दिन के थे। इस वर्ष नवरात्रि की तिथि दस दिनों की होने से विशेष संयोग निर्मित हो रही है। शारदीय नवरात्रि दस दिनों तक है और 11वें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक तिथियों के क्षय होने व बढऩे के कारण इस बार नवरात्रि की तिथि दस दिनों की हुई है। 16 साल बाद इस वर्ष ऐसा संयोग निर्मित हुआ है जो शुभ कार्यों के साथ नए कार्यो को करने के लिए उत्तम व सर्वश्रेष्ठ तिथि है।
इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां
प्रतिपदा व घट स्थापना - 1 अक्टूबर
द्वितीया - 2 व 3 अक्टूबर
तृतीया - 4 अक्टूबर
चतुर्थी - 5 अक्टूबर
पंचमी - 6 अक्टूबर
षष्ठी - 7 अक्टूबर
सप्तमी - 8 अक्टूबर
अष्टमी - 9 अक्टूबर
नवमी - 10 अक्टूबर
दशमी - 11 अक्टूबर
विजयादशमी का पर्व - 11 अक्टूबर

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घोड़े पर सवार होकर आएगी मातारानी
विद्वान पंडितों के अनुसार नवरात्र त्रिदिवसीय पूजा में सप्तमी जिस तिथि को होगी उससे माता के आगमन और दशमी से माता के गमन का विचार किया जाता है। यद्यपि इसका लौकिक प्रमाण ही मिलता है। इस वर्ष भगवती घोड़े पर आ रही है और मुर्गे पर जाएंगी जो की पूर्णतः शुभफल दायक नहीं है। महाष्टमी का व्रत एवं पूजा 9 अक्टूबर को की जाएगी। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा दस दिन होगी। ऐसे में इस वर्ष की नवरात्रि कई गुणा पुण्यकारी व फलदायी होगी।

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ये रहेगा कलश स्थापना का मुहूर्त
पंडित राधेश्याम शर्मा के अनुसार इस वर्ष माता रानी के कलश की स्थापना अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक की जाएगी। नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की आराधना-अर्चना होगी।

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सौभाग्य प्राप्ति के लिए नवरात्रि में निम्न उपाय करें-
(1) व्यापार में वृद्धि के लिए मूंग की दाल का हलवा मां को समर्पित करें।
(2) शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए नारियल मातारानी के चरणों में चढ़ाएं।
(3) सभी तरह की मनोकामना सिद्धी के लिए हलवा-पूरी चढ़ाएं।
(4) मानसिक शांति के लिए मां को चावल की खीर का भोग लगाएं।
(5) धन-धान्य की प्राप्ति के लिए मखाने की खीर का भोग लगाएं।
(6) अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वादिष्ट तथा मीठे फलों मां को चढ़ाएं।
(7) विद्या प्राप्ती के लिए मां को पीली मिठाई का भोग लगाएं। जाएंगी।

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इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां
प्रतिपदा व घट स्थापना - 1 अक्टूबर
द्वितीया - 2 व 3 अक्टूबर
तृतीया - 4 अक्टूबर
चतुर्थी - 5 अक्टूबर
पंचमी - 6 अक्टूबर
षष्ठी - 7 अक्टूबर
सप्तमी - 8 अक्टूबर
अष्टमी - 9 अक्टूबर
नवमी - 10 अक्टूबर
दशमी - 11 अक्टूबर
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घोड़े पर सवार होकर आएगी मातारानी
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ये रहेगा कलश स्थापना का मुहूर्त
पंडित राधेश्याम शर्मा के अनुसार इस वर्ष माता रानी के कलश की स्थापना अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक की जाएगी। नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की आराधना-अर्चना होगी।

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सौभाग्य प्राप्ति के लिए नवरात्रि में निम्न उपाय करें-
(1) व्यापार में वृद्धि के लिए मूंग की दाल का हलवा मां को समर्पित करें।
(2) शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए नारियल मातारानी के चरणों में चढ़ाएं।
(3) सभी तरह की मनोकामना सिद्धी के लिए हलवा-पूरी चढ़ाएं।
(4) मानसिक शांति के लिए मां को चावल की खीर का भोग लगाएं।
(5) धन-धान्य की प्राप्ति के लिए मखाने की खीर का भोग लगाएं।
(6) अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वादिष्ट तथा मीठे फलों मां को चढ़ाएं।
(7) विद्या प्राप्ती के लिए मां को पीली मिठाई का भोग लगाएं।

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है ।


अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यह व्रत किये जाते हैं । नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है । आश्विन मास के इन नवरात्रों को ‘शारदीय नवरात्र’ कहा जाता है क्योंकि इस समय शरद ऋतु होती है। इस व्रत में नौ दिन तक भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा एक समय भोजन का व्रत धारण किया जाता है। प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नानादि करके संकल्प करें तथा स्वयं या पण्डित के द्वारा मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोने चाहिए। उसी पर घट स्थापना करें। फिर घट के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन करें तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। पाठ-पूजन के समय अखण्ड दीप जलता रहना चाहिए। वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हैं। दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है। नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन कराना चाहिए। नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में इन शक्तियों की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के उपरान्त इस मंत्र द्वारा माता की प्रार्थना करना चाहिए-

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमांश्रियम्| रूपंदेहि जयंदेहि यशोदेहि द्विषोजहि ||

नौ देवियों का त्योहार है नवरात्रि

नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है।
प्रथम दुर्गा : श्री शैलपुत्री
आदिशक्ति श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनके पूजन से मूलाधर चक्र जाग्रत होता है, जिससे साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
द्वितीय दुर्गा : श्री ब्रह्मचारिणी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्धि होती है तथा मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता।
तृतीय दुर्गा : श्री चंद्रघंटा
आदिशक्ति श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
चतुर्थ दुर्गा : श्री कूष्मांडा
आदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा के पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
पंचम दुर्गा : श्री स्कंदमाता
आदिशक्ति श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा मृत्युलोक में ही साधक को परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वंयमेव सुलभ हो जाता है।
षष्ठम दुर्गा : श्री कात्यायनी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। श्री कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
सप्तम दुर्गा : श्री कालरात्रि
आदिशक्ति श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री कालरात्रि की साधना से साधक को भानुचक्र जाग्रति की सिद्धियां स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं।
अष्टम दुर्गा : श्री महागौरी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन और अर्चन किया जाता है। इन दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र (उर्ध्व ललाट) में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। श्री महागौरी की आराधना से सोम चक्र जाग्रति की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री
आदिशक्ति श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम् दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त निर्वाण चक्र (मध्य कपाल) में स्थिर कर अपनी साधना करनी चाहिए। श्री सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता।

आज इंसान

एक इंसान
इंसान कभी मन नही भरता प्यार पैसा जमीन मगर इंसान को जन्म से ले कर मरने तक  
फिर मरने पर कोई नही बेटे पत्नी आदि तक नही होता हे पर इंसान हाय हाय करता रहता हैं पर इंसान को कुछ अच्छा काम करने के लिय भेजे हे पर इंसान कर नही पता पर इंसान को भगबान के एक रूप हैं मगर इंसान तो भगबान को मानते ही नही कहते की जो दिखता वह ही हे मगर हबा तो नही दिखता तो हबा तो हैं  फिर तो माँ बाप जो आप जन्म दिया मेहनत कर के पढाया और तुमने तो इंसान को जो इंसान खाना नही खिलते मंदिर में भड़ारा करते और नोकर बाना कर रखते इंसान को भगबान मने की बात दूर की बात हे पर बहूत इंसान माँ बाप को तो देखते ही नही पर मन्दिर रोज जाते हे  अपने घर में रोज बीबी एक हर बात मानते हे पर कोई भी लाचार इंसान को मददत करना चहिऎ पर करण ढूदते हे आज इंसान

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SANTOSH PIDHAULI

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