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नवरात्रि पूजा 2016

नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकि पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।

(2) व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयो को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।

सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।

सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।

नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। ईस दिन पर, कन्या पूजन होता है। उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं।


नवरात्रि एक हिंदू पर्व है।

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।

नौ देवियाँ है :-

शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।

ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।

चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।

कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।

स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।

कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।

कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।

महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।

सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।

शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।

नवदुर्गा और दस महाविद्याओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दशमहाविद्या अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं।

नवरात्रि भारत के विभिन्न भागों में अलग ढंग से मनायी जाती है। गुजरात में इस त्योहार को बड़े पैमाने से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्रि समारोह डांडिया और गरबा के रूप में जान पडता है। यह पूरी रात भर चलता है। डांडिया का अनुभव बडा ही असाधारण है। देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में गरबा, 'आरती' से पहले किया जाता है और डांडिया समारोह उसके बाद। पश्चिम बंगाल के राज्य में बंगालियों के मुख्य त्यौहारो में दुर्गा पूजा बंगाली कैलेंडर में, सबसे अलंकृत रूप में उभरा है। इस अदभुत उत्सव का जश्न नीचे दक्षिण, मैसूर के राजसी क्वार्टर को पूरे महीने प्रकाशित करके मनाया जाता है।

इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां 2016

आश्विन शुक्ल पक्ष में आने वाला मां आद्यशक्ति का आराध्यपर्व नवरात्र इस बार 1 अक्टूबर 2016 दिन शनिवार को प्रारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्रि में एक तिथि वृद्धि हो रही है। ऐसे में इस वर्ष नवरात्रि दस दिन के होंगे। पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि की तिथि में द्वितीया की तिथि को दो दिन बताया गया है। इस तरह से नौ के बजाए दस दिनों तक मां दुर्गा पूजीआश्विन शुक्ल पक्ष में आने वाला मां आद्यशक्ति का आराध्यपर्व नवरात्र इस बार 1 अक्टूबर 2016 दिन शनिवार को प्रारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्रि में एक तिथि वृद्धि हो रही है। ऐसे में इस वर्ष नवरात्रि दस दिन के होंगे। पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि की तिथि

में द्वितीया की तिथि को दो दिन बताया गया है। इस तरह से नौ के बजाए दस दिनों तक मां दुर्गा पूजी जाएंगी।
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इसके पूर्व भी बना था संयोग
इससे पहले वर्ष 2000 में नवरात्रि दस दिन के थे। इस वर्ष नवरात्रि की तिथि दस दिनों की होने से विशेष संयोग निर्मित हो रही है। शारदीय नवरात्रि दस दिनों तक है और 11वें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक तिथियों के क्षय होने व बढऩे के कारण इस बार नवरात्रि की तिथि दस दिनों की हुई है। 16 साल बाद इस वर्ष ऐसा संयोग निर्मित हुआ है जो शुभ कार्यों के साथ नए कार्यो को करने के लिए उत्तम व सर्वश्रेष्ठ तिथि है।
इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां
प्रतिपदा व घट स्थापना - 1 अक्टूबर
द्वितीया - 2 व 3 अक्टूबर
तृतीया - 4 अक्टूबर
चतुर्थी - 5 अक्टूबर
पंचमी - 6 अक्टूबर
षष्ठी - 7 अक्टूबर
सप्तमी - 8 अक्टूबर
अष्टमी - 9 अक्टूबर
नवमी - 10 अक्टूबर
दशमी - 11 अक्टूबर
विजयादशमी का पर्व - 11 अक्टूबर

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घोड़े पर सवार होकर आएगी मातारानी
विद्वान पंडितों के अनुसार नवरात्र त्रिदिवसीय पूजा में सप्तमी जिस तिथि को होगी उससे माता के आगमन और दशमी से माता के गमन का विचार किया जाता है। यद्यपि इसका लौकिक प्रमाण ही मिलता है। इस वर्ष भगवती घोड़े पर आ रही है और मुर्गे पर जाएंगी जो की पूर्णतः शुभफल दायक नहीं है। महाष्टमी का व्रत एवं पूजा 9 अक्टूबर को की जाएगी। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा दस दिन होगी। ऐसे में इस वर्ष की नवरात्रि कई गुणा पुण्यकारी व फलदायी होगी।

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ये रहेगा कलश स्थापना का मुहूर्त
पंडित राधेश्याम शर्मा के अनुसार इस वर्ष माता रानी के कलश की स्थापना अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक की जाएगी। नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की आराधना-अर्चना होगी।

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सौभाग्य प्राप्ति के लिए नवरात्रि में निम्न उपाय करें-
(1) व्यापार में वृद्धि के लिए मूंग की दाल का हलवा मां को समर्पित करें।
(2) शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए नारियल मातारानी के चरणों में चढ़ाएं।
(3) सभी तरह की मनोकामना सिद्धी के लिए हलवा-पूरी चढ़ाएं।
(4) मानसिक शांति के लिए मां को चावल की खीर का भोग लगाएं।
(5) धन-धान्य की प्राप्ति के लिए मखाने की खीर का भोग लगाएं।
(6) अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वादिष्ट तथा मीठे फलों मां को चढ़ाएं।
(7) विद्या प्राप्ती के लिए मां को पीली मिठाई का भोग लगाएं। जाएंगी।

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इससे पहले वर्ष 2000 में नवरात्रि दस दिन के थे। इस वर्ष नवरात्रि की तिथि दस दिनों की होने से विशेष संयोग निर्मित हो रही है। शारदीय नवरात्रि दस दिनों तक है और 11वें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक तिथियों के क्षय होने व बढऩे के कारण इस बार नवरात्रि की तिथि दस दिनों की हुई है। 16 साल बाद इस वर्ष ऐसा संयोग निर्मित हुआ है जो शुभ कार्यों के साथ नए कार्यो को करने के लिए उत्तम व सर्वश्रेष्ठ तिथि है।

इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां
प्रतिपदा व घट स्थापना - 1 अक्टूबर
द्वितीया - 2 व 3 अक्टूबर
तृतीया - 4 अक्टूबर
चतुर्थी - 5 अक्टूबर
पंचमी - 6 अक्टूबर
षष्ठी - 7 अक्टूबर
सप्तमी - 8 अक्टूबर
अष्टमी - 9 अक्टूबर
नवमी - 10 अक्टूबर
दशमी - 11 अक्टूबर
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घोड़े पर सवार होकर आएगी मातारानी
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पंडित राधेश्याम शर्मा के अनुसार इस वर्ष माता रानी के कलश की स्थापना अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक की जाएगी। नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की आराधना-अर्चना होगी।

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(2) शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए नारियल मातारानी के चरणों में चढ़ाएं।
(3) सभी तरह की मनोकामना सिद्धी के लिए हलवा-पूरी चढ़ाएं।
(4) मानसिक शांति के लिए मां को चावल की खीर का भोग लगाएं।
(5) धन-धान्य की प्राप्ति के लिए मखाने की खीर का भोग लगाएं।
(6) अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वादिष्ट तथा मीठे फलों मां को चढ़ाएं।
(7) विद्या प्राप्ती के लिए मां को पीली मिठाई का भोग लगाएं।

प्रथम चरित्र दुर्गा कथा


प्रथम चरित्र दुर्गा कथा


दूसरे मुन के राज्यकाल में सुरथ नामक एक बहुत प्रतापी राजा हुए थे
उनका राज मन्त्रियों के दुष्टाचरण के कारण उनके हाथ से निकल गया |

वह राजा व्यथित ह्रदय होकर जंगल में चला गया |

वहाँ उसकी भेंट मेधा नामक मुनि से हुई |

मुनि ने राजा को बहुत आव्क्षस्त किया,
फिर भी राजा का मोह दूर न हुआ |

इन्हीं ऋषि के आश्रम में समधि नामक एक वैश्य से राजा का परिचय हुआ |

राजा की भाँति वैश्य भी अपने परिवार के व्दारा निर्वासित था |

इतना होने पर भी वह वैश्य अपने परिवार के लिए व्याकुल रहा करता था |

इन दोनों मोहग्रस्त व्यक्तियोँ ने मुनि से अपने अज्ञान दूर न होने का कारण पूछा |

तब मुनि ने उतर में कहा कि,महामाया भगवती ही जीवों के चित को अपनी ओर अनायास आकृष्ट कर लेती हैं ओर वही अन्त में कृपापूर्वक भक्तों को वर देकर उनका उध्दार भी करती हैं |

तब राजा सुरथ ने ऋषि से पुछा कि वह महामाया देवी कौन हैं,उनकी उत्पति कैसे हुई ओर उनका प्रभाव क्या हैं ?

राजा से मुनि ने कहा –

“नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम् |

अर्थात् उनकी मूर्ति नित्यस्वरुपा हैं तथा उन्हीं के व्दार सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हैं |

परन्तु देवों की अभीष्ट सिध्दि के निमित उनके प्रादुर्भाव का कारण बतलाया हैं |

जब भगवान् विष्णु प्रलयकाल के उपरान्त शेषशय्या पर योगनिद्रा मेंनिमग्न हुए तभी उनके कानों की मैल से मधु ओर कैटभ नामक दो महादैत्य उत्पत्र हुए |

वे दोनों दैत्य भगवान् के नाभि-कमल में स्थित ब्रह्मा जी को मारने के लिए उघत हुए |

तब ब्रह्मा जी ने योगनिद्रा का स्तवन करके प्रसत्र कर उनसे तीन याचनाएँ कीं :
१॰भगवान् विष्णु का जागृत होना, २॰असुरों के संहार के लिए तत्पर होना ओर ३॰असुर को मुग्ध करके नाश कराना |

भगवती की कृपा से भगवान निद्रा त्याग कर उन दैत्यों सें युध्दरत हुए |

तत्पश्चात् उन असुरोंने मोहग्रस्त होकर भगवान् से वर माँगने को कहा ओर अन्त में अपने दिए हुए वरदान के व्दारा ही वे मार डाले गये |

तदनन्तर राजा सुरथ ओर समाधि नामक वैश्य के लिए मेधा मुनि भगवती की उपसना तथा ज्ञानयोग के भेदों का वर्णन करने लगे |

सरहद

मेरे दिल कि सरहद को पार न करना
नाजुक है दिल मेरा वार न करना,
खुद से बढ़कर भरोसा है मुझे तुम पर,
इस भरोसे को तुम बेकार न करना..



इंसान की कोशिश दिल की हर चीज़ भुला देती है;
बात जब दोस्ती की हो तो, बंद आखों में भी सपने सजा देती है;
इस जिंदगी में सपनों की दुनिया जरुर रखना मेरे दोस्त;
क्योंकि हकीकत तो अक्सर लोगो को रुला देती है!...............



इन आँखों तू बसना इन सांसो में तू बसना....
निकले जब ये आशु मेरे इन आशु में तू दिखना....
मोदी के ये आशु कहे तेरा दीदार करता रहू...

पंचतंत्र


(भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है। पंचतंत्र उनमें प्रमुख है। पंचतंत्र की रचना विष्णु शर्मा नामक व्यक्ति ने की थी। उन्होंने एक राजा के मूर्ख बेटों को शिक्षित करने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी। पांच अध्याय में लिखे जाने के कारण इस पुस्तक का नाम पंचतंत्र रखा गया। इस किताब में जानवरों को पात्र बना कर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं।)

विद्या बड़ी या बुद्धि?


किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे। उनमें परस्पर गहरी मित्रता थी। चारों में से तीन तो शास्रों में पारंगत थे, लेकिन उनमें बुद्धि का अभाव था। चौथे ने शास्रों का अध्ययन तो नहीं किया था, लेकिन वह था बड़ा बुद्धिमान।

एक बार चारों भाइयों ने परदेश जाकर अपनी-अपनी विद्या के प्रभाव से धन अर्जित करने का विचार किया। चारों पूर्व के देश की ओर चल पड़े। रास्ते में सबसे बड़े भाई ने कहा-हमारा चौथा भाई तो निरा अनपढ़ है। राजा सदा विद्वान व्यक्ति का ही सत्कार करते हैं। केवल बुद्धि से तो कुछ मिलता नहीं।

विद्या के बल पर हम जो धन कमाएंगे, उसमें से इसे कुछ नहीं देंगे। अच्छा तो यही है कि यह घर वापस चला जाए।दूसरे भाई का विचार भी यही था। किंतु तीसरे भाई ने उनका विरोध किया। वह बोला-हम बचपन से एक साथ रहे हैं, इसलिए इसको अकेले छोड़ना उचित नहीं है। हम अपनी कमाई का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा इसे भी दे दिया करेंगे।

अतः चौथा भाई भी उनके साथ लगा रहा। रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। वहां एक जगह हड्डियों का पंजर था। उसे देखकर उन्होंने अपनी-अपनी विद्या की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उनमें से एक ने हड्डियों को सही ढंग से एक स्थान पर एकत्रित कर दिया। वास्तव में ये हड्डियां एक मरे हुए शेर की थीं।

दूसरे ने बड़े कौशल से हड्डियों के पंजर पर मांस एवं खाल का आवरण चढ़ा दिया। उनमें उसमें रक्त का संचार भी कर दिया। तीसरा उसमें प्राण डालकर उसे जीवित करने ही वाला था कि चौथे भाई ने उसको रोकते हुए कहा, ‘तुमने अपनी विद्या से यदि इसे जीवित कर दिया तो यह हम सभी को जाने से मार देगा।

तीसरे भाई ने कहा, ‘तू तो मूर्ख है!मैं अपनी विद्या का प्रयोग अवश्य करुंगा और उसका फल भी देखूंगा।चौथे भाई ने कहा, ‘तो फिर थोड़ी देर रुको। मैं इस पेड़ पर चढ़ जाऊं, तब तुम अपनी विद्या का चमत्कार दिखाना।यह कहकर चौथा भाई पेड़ पर चढ़ गया।

तीसरे भाई ने अपनी विद्या के बल पर जैसे ही शेर में प्राणों का संचार किया, शेर तड़पकर उठा और उन पर टूट पड़ा। उसने पलक झपकते ही तीनों अभिमानी विद्वानों को मार डाला और गरजता हुआ चला गया।

उसके दूर चले जाने पर चौथा भाई पेड़ से उतरकर रोता हुआ घर लौट आया। इसीलिए कहा गया है कि विद्या से बुद्धि श्रेष्ठ होती है।

“दिल”


पत्थर होने सें तो अच्छा था,
चला जाता साथ उनके,
, दिल इस उजरे दयार की जगह,
शान से रहता पहलू में उनके |
                         *   *      *    *
    गम नहीं चले गए वह जिन्दगी सें ,
    अफसोस, मगर की दिल पत्थर कर गए,

    मुस्कराएगा, सोचकर गए हम महफिल में ,
    हॅँसना तो दूर, कमबख्त धरकना भी नहीं |

                      *   *      *    *
कभी जिनकी हॅंसी पर इतराया था,
आज, उन्हीं के पैगामों सें टूट गया |

                   *   *      *    *
जब होश नही था जिन्दगी का,
तो मेरे पास में रहता था,
      जब से आया होश तभी से,
       उनके” दामन में चला गया |
                     *   *      *    *

चेहरे की खिलावट पर जिनकी,
यह मचल-मचल कर जाता था,
       आया जो पैगामें रुसवाँ,
       तो टूकरे-टूकरे हो गया |
               *   *      *    *

पैगामे-वफा का देख लिफाफा,
कली ज्यों खिल जाता था,
       हुआ सामना सूरतसे,तो
       शाम के सूरज ज्यूं डूब गया |
               *   *      *    *

शराब


(1) देखने में पतली कितनी , तुझमें कोई ताकत हैं ,
डल जाती पैमानों में जब, तेरे ना कोई बराबर हैं |

(2) करते नफरत तेरे सें , तेरा नाम लेने सें डरते हैँ ,
निर्दोषों पर दोष लगाते , तूझे देख कर आहें भरते हैं |


(3) तीर चलाती दुनिया उन पर , जो साथ में तेरे रहते हैं ,
फिर भी वो दीवाने , तेरी राहों में भटकतें रहतें हैं |

(4) जब साथ कोई ना मेरा दें , एक तू ही साथ निभाती हैं ,
भुलाकर गम की दुनिया , मुझे जन्नत में लें जाती हैं |


(5) होती है तन्हाईयाँ कभी ओर याद किसी आती हैं ,
तेरी केवल एक झलक ही , मुझे उसके पास ले जाती हैं |


(6) कस्में खाई है हमने , सदा तेरी राहों में रहने की ,
तोड़कर रस्में दुनिया की , दामन तेरा पकड़ने की |


(7) एक में भी दीवाना हूँ तेरा , तुझसें सब रिश्ते - नाते हैं ,
खाकर शबाब की ठोंकरें , गम खाने सें बच जाते हैं |

(8) मिलें अश्कों सें छुटकारा , दुनिया में ऐसी पनाह नहीं ,
दर्द दिल मिटाने को , दवा तुमसे बेहतर कोई नहीं |

SANTOSH PIDHAULI

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