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हैप्पी वेलेंटाइन दिवस


बिन बात के ही रूठने की आदत है,
किसी अपने का साथ पाने की चाहत है, 
आप खुश रहें, 
मेरा क्या है, 
मैं तो आइना हूँ,
 मुझे तो टूटने की आदत है

कोई चाँद से मोहब्बत करता है,
कोई सूरज से मोहब्बत करता है,
 हम उनसे मोहब्बत करते हैं,
जो हमसे मोहब्बत करते हैं


चुपके से आकर इस दिल में उतर जाते हो, 
सांसों में मेरी खुशबु बन के बिखर जाते हो,
कुछ यूँ चला है तेरे

 'इश्क' का जादू,
 सोते-जागते तुम ही तुम नज़र आते हो


इश्क है वही जो हो एक तरफा,
इजहार है इश्क तो ख्वाईश बन जाती है,

 है अगर इश्क तो आँखों में दिखाओ, 
जुबां खोलने से ये नुमाइश बन जाती है

दीवाने तेरे हैं, इस बात से इनकार नहीं, 
कैसे कहें कि हमें आपसे प्यार नहीं,
 कुछ तो कसूर है आपकी निगाहों का, 
हम अकेले तो गुनेहगार नहीं

प्रथम चरित्र दुर्गा कथा


प्रथम चरित्र दुर्गा कथा


दूसरे मुन के राज्यकाल में सुरथ नामक एक बहुत प्रतापी राजा हुए थे
उनका राज मन्त्रियों के दुष्टाचरण के कारण उनके हाथ से निकल गया |

वह राजा व्यथित ह्रदय होकर जंगल में चला गया |

वहाँ उसकी भेंट मेधा नामक मुनि से हुई |

मुनि ने राजा को बहुत आव्क्षस्त किया,
फिर भी राजा का मोह दूर न हुआ |

इन्हीं ऋषि के आश्रम में समधि नामक एक वैश्य से राजा का परिचय हुआ |

राजा की भाँति वैश्य भी अपने परिवार के व्दारा निर्वासित था |

इतना होने पर भी वह वैश्य अपने परिवार के लिए व्याकुल रहा करता था |

इन दोनों मोहग्रस्त व्यक्तियोँ ने मुनि से अपने अज्ञान दूर न होने का कारण पूछा |

तब मुनि ने उतर में कहा कि,महामाया भगवती ही जीवों के चित को अपनी ओर अनायास आकृष्ट कर लेती हैं ओर वही अन्त में कृपापूर्वक भक्तों को वर देकर उनका उध्दार भी करती हैं |

तब राजा सुरथ ने ऋषि से पुछा कि वह महामाया देवी कौन हैं,उनकी उत्पति कैसे हुई ओर उनका प्रभाव क्या हैं ?

राजा से मुनि ने कहा –

“नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम् |

अर्थात् उनकी मूर्ति नित्यस्वरुपा हैं तथा उन्हीं के व्दार सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हैं |

परन्तु देवों की अभीष्ट सिध्दि के निमित उनके प्रादुर्भाव का कारण बतलाया हैं |

जब भगवान् विष्णु प्रलयकाल के उपरान्त शेषशय्या पर योगनिद्रा मेंनिमग्न हुए तभी उनके कानों की मैल से मधु ओर कैटभ नामक दो महादैत्य उत्पत्र हुए |

वे दोनों दैत्य भगवान् के नाभि-कमल में स्थित ब्रह्मा जी को मारने के लिए उघत हुए |

तब ब्रह्मा जी ने योगनिद्रा का स्तवन करके प्रसत्र कर उनसे तीन याचनाएँ कीं :
१॰भगवान् विष्णु का जागृत होना, २॰असुरों के संहार के लिए तत्पर होना ओर ३॰असुर को मुग्ध करके नाश कराना |

भगवती की कृपा से भगवान निद्रा त्याग कर उन दैत्यों सें युध्दरत हुए |

तत्पश्चात् उन असुरोंने मोहग्रस्त होकर भगवान् से वर माँगने को कहा ओर अन्त में अपने दिए हुए वरदान के व्दारा ही वे मार डाले गये |

तदनन्तर राजा सुरथ ओर समाधि नामक वैश्य के लिए मेधा मुनि भगवती की उपसना तथा ज्ञानयोग के भेदों का वर्णन करने लगे |

सरहद

मेरे दिल कि सरहद को पार न करना
नाजुक है दिल मेरा वार न करना,
खुद से बढ़कर भरोसा है मुझे तुम पर,
इस भरोसे को तुम बेकार न करना..



इंसान की कोशिश दिल की हर चीज़ भुला देती है;
बात जब दोस्ती की हो तो, बंद आखों में भी सपने सजा देती है;
इस जिंदगी में सपनों की दुनिया जरुर रखना मेरे दोस्त;
क्योंकि हकीकत तो अक्सर लोगो को रुला देती है!...............



इन आँखों तू बसना इन सांसो में तू बसना....
निकले जब ये आशु मेरे इन आशु में तू दिखना....
मोदी के ये आशु कहे तेरा दीदार करता रहू...

चार शब्दों


बचपन में मेरा था,
जवानी में उनका हो गया,
आया दौरे-बुढापा तो,
दुनिया की भीड़ में खो गया |      
   ******************
पल-भर की होठों की हंसी,
दिल-बहार ले आती थी,
चार शब्दों की बे-वफाईने,
चमन को खिजा में बदल दिया |
*****************
इन्सान क्या चीज हैं,
पैसें वाला ही जाने,
कल तक जिसे दुत्कारते थे,
आज,चले है उन्हें मनाने क्योंकि,
अब वह इन्सान’,
इन्साफ की कुसीं पर बैठा हैं |
****************
खुशी तभी खुशी हैं,
जब खुशी में शरीक होने वाले हो,
गम तभी कम होते है,
जब इन्हे बाँटने वाले 'अपने' हो |
******************
ढलती शाम है 'रूश्ंवा',
दिल मे मिलन की प्यास है,     
तुम्हारी याद  मे 'ईश्वर 'की,
जिन्दगी कितनी उदास है |
***********************
दर्द जुदाई कोई क्या जाने,
कैसे कटते है, पल,लम्हे व दिन,
मुदूदतें हो गई, अब तो,
जीना सीख लिया तुम्हारे बिन |
*******************


पंचतंत्र


(भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है। पंचतंत्र उनमें प्रमुख है। पंचतंत्र की रचना विष्णु शर्मा नामक व्यक्ति ने की थी। उन्होंने एक राजा के मूर्ख बेटों को शिक्षित करने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी। पांच अध्याय में लिखे जाने के कारण इस पुस्तक का नाम पंचतंत्र रखा गया। इस किताब में जानवरों को पात्र बना कर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं।)

विद्या बड़ी या बुद्धि?


किसी ब्राह्मण के चार पुत्र थे। उनमें परस्पर गहरी मित्रता थी। चारों में से तीन तो शास्रों में पारंगत थे, लेकिन उनमें बुद्धि का अभाव था। चौथे ने शास्रों का अध्ययन तो नहीं किया था, लेकिन वह था बड़ा बुद्धिमान।

एक बार चारों भाइयों ने परदेश जाकर अपनी-अपनी विद्या के प्रभाव से धन अर्जित करने का विचार किया। चारों पूर्व के देश की ओर चल पड़े। रास्ते में सबसे बड़े भाई ने कहा-हमारा चौथा भाई तो निरा अनपढ़ है। राजा सदा विद्वान व्यक्ति का ही सत्कार करते हैं। केवल बुद्धि से तो कुछ मिलता नहीं।

विद्या के बल पर हम जो धन कमाएंगे, उसमें से इसे कुछ नहीं देंगे। अच्छा तो यही है कि यह घर वापस चला जाए।दूसरे भाई का विचार भी यही था। किंतु तीसरे भाई ने उनका विरोध किया। वह बोला-हम बचपन से एक साथ रहे हैं, इसलिए इसको अकेले छोड़ना उचित नहीं है। हम अपनी कमाई का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा इसे भी दे दिया करेंगे।

अतः चौथा भाई भी उनके साथ लगा रहा। रास्ते में एक घना जंगल पड़ा। वहां एक जगह हड्डियों का पंजर था। उसे देखकर उन्होंने अपनी-अपनी विद्या की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उनमें से एक ने हड्डियों को सही ढंग से एक स्थान पर एकत्रित कर दिया। वास्तव में ये हड्डियां एक मरे हुए शेर की थीं।

दूसरे ने बड़े कौशल से हड्डियों के पंजर पर मांस एवं खाल का आवरण चढ़ा दिया। उनमें उसमें रक्त का संचार भी कर दिया। तीसरा उसमें प्राण डालकर उसे जीवित करने ही वाला था कि चौथे भाई ने उसको रोकते हुए कहा, ‘तुमने अपनी विद्या से यदि इसे जीवित कर दिया तो यह हम सभी को जाने से मार देगा।

तीसरे भाई ने कहा, ‘तू तो मूर्ख है!मैं अपनी विद्या का प्रयोग अवश्य करुंगा और उसका फल भी देखूंगा।चौथे भाई ने कहा, ‘तो फिर थोड़ी देर रुको। मैं इस पेड़ पर चढ़ जाऊं, तब तुम अपनी विद्या का चमत्कार दिखाना।यह कहकर चौथा भाई पेड़ पर चढ़ गया।

तीसरे भाई ने अपनी विद्या के बल पर जैसे ही शेर में प्राणों का संचार किया, शेर तड़पकर उठा और उन पर टूट पड़ा। उसने पलक झपकते ही तीनों अभिमानी विद्वानों को मार डाला और गरजता हुआ चला गया।

उसके दूर चले जाने पर चौथा भाई पेड़ से उतरकर रोता हुआ घर लौट आया। इसीलिए कहा गया है कि विद्या से बुद्धि श्रेष्ठ होती है।

“दिल”


पत्थर होने सें तो अच्छा था,
चला जाता साथ उनके,
, दिल इस उजरे दयार की जगह,
शान से रहता पहलू में उनके |
                         *   *      *    *
    गम नहीं चले गए वह जिन्दगी सें ,
    अफसोस, मगर की दिल पत्थर कर गए,

    मुस्कराएगा, सोचकर गए हम महफिल में ,
    हॅँसना तो दूर, कमबख्त धरकना भी नहीं |

                      *   *      *    *
कभी जिनकी हॅंसी पर इतराया था,
आज, उन्हीं के पैगामों सें टूट गया |

                   *   *      *    *
जब होश नही था जिन्दगी का,
तो मेरे पास में रहता था,
      जब से आया होश तभी से,
       उनके” दामन में चला गया |
                     *   *      *    *

चेहरे की खिलावट पर जिनकी,
यह मचल-मचल कर जाता था,
       आया जो पैगामें रुसवाँ,
       तो टूकरे-टूकरे हो गया |
               *   *      *    *

पैगामे-वफा का देख लिफाफा,
कली ज्यों खिल जाता था,
       हुआ सामना सूरतसे,तो
       शाम के सूरज ज्यूं डूब गया |
               *   *      *    *

शराब


(1) देखने में पतली कितनी , तुझमें कोई ताकत हैं ,
डल जाती पैमानों में जब, तेरे ना कोई बराबर हैं |

(2) करते नफरत तेरे सें , तेरा नाम लेने सें डरते हैँ ,
निर्दोषों पर दोष लगाते , तूझे देख कर आहें भरते हैं |


(3) तीर चलाती दुनिया उन पर , जो साथ में तेरे रहते हैं ,
फिर भी वो दीवाने , तेरी राहों में भटकतें रहतें हैं |

(4) जब साथ कोई ना मेरा दें , एक तू ही साथ निभाती हैं ,
भुलाकर गम की दुनिया , मुझे जन्नत में लें जाती हैं |


(5) होती है तन्हाईयाँ कभी ओर याद किसी आती हैं ,
तेरी केवल एक झलक ही , मुझे उसके पास ले जाती हैं |


(6) कस्में खाई है हमने , सदा तेरी राहों में रहने की ,
तोड़कर रस्में दुनिया की , दामन तेरा पकड़ने की |


(7) एक में भी दीवाना हूँ तेरा , तुझसें सब रिश्ते - नाते हैं ,
खाकर शबाब की ठोंकरें , गम खाने सें बच जाते हैं |

(8) मिलें अश्कों सें छुटकारा , दुनिया में ऐसी पनाह नहीं ,
दर्द दिल मिटाने को , दवा तुमसे बेहतर कोई नहीं |

SANTOSH PIDHAULI

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