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“दिल”


पत्थर होने सें तो अच्छा था,
चला जाता साथ उनके,
, दिल इस उजरे दयार की जगह,
शान से रहता पहलू में उनके |
                         *   *      *    *
    गम नहीं चले गए वह जिन्दगी सें ,
    अफसोस, मगर की दिल पत्थर कर गए,

    मुस्कराएगा, सोचकर गए हम महफिल में ,
    हॅँसना तो दूर, कमबख्त धरकना भी नहीं |

                      *   *      *    *
कभी जिनकी हॅंसी पर इतराया था,
आज, उन्हीं के पैगामों सें टूट गया |

                   *   *      *    *
जब होश नही था जिन्दगी का,
तो मेरे पास में रहता था,
      जब से आया होश तभी से,
       उनके” दामन में चला गया |
                     *   *      *    *

चेहरे की खिलावट पर जिनकी,
यह मचल-मचल कर जाता था,
       आया जो पैगामें रुसवाँ,
       तो टूकरे-टूकरे हो गया |
               *   *      *    *

पैगामे-वफा का देख लिफाफा,
कली ज्यों खिल जाता था,
       हुआ सामना सूरतसे,तो
       शाम के सूरज ज्यूं डूब गया |
               *   *      *    *

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SANTOSH PIDHAULI

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