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श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2018



देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं।


भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

 
कब हुआ श्री कृष्ण का जन्म्

जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।


जन्माष्टमी पर्व तिथि व मुहूर्त 2018

2 सितंबर

निशिथ पूजा– 23:57 से 00:43

पारण– 20:05 (3 सितंबर) के बाद

रोहिणी समाप्त- 20:05

अष्टमी तिथि आरंभ – 20:47 (2 सितंबर)

अष्टमी तिथि समाप्त – 19:19 (3 सितंबर

🚩श्री गणेशाय नम:

जन्‍माष्‍टमी की पूजा के लिए जो सामग्री चाहिए उनमें शामिल हैं-
तिल 100
हल्दी 1
एक खीरा 1
कपूर 1
चौकी, 1
लाल वस्‍त्र, 2
बाल गोपाल की मूर्ति, 1
गंगाजल, 1
मिट्टी का दीपक 7
 कलश  1 चार मुक्ती दीप1 ढक्कन 1
, घी, 500 ग्रांम
 रूई की बत्ती,  2
धूप, 200 ग्रांम
चंदन, रोली,  1
अक्षत, 100 ग्रांम
तुलसी , पता
जो 100 ग्रांम
कच्चा चावल आधा किलो
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण)
 मक्खन, मिश्री, 250 ग्रांम
 मिष्ठान/ 1 किलो
नैवैद्य, फल, पांच फल
बाल गोपाल के लिए वस्‍त्र, श्रृंगार की सामग्री 
(मुकुट, मोतियों की माला, 
बांसुरी 1
 मोर पंख) 1
, इत्र, 
फूलमाला, फूल 5+ 500 ग्रांम गुलाब पंख
पालना. 1
पान 11
केला 24
आम पता 1 
केला का पत्ता 1
सुपारी 12
अगरबत्ती 5
 रक्षा सूत्र
हवन सामग्री 1 किलो 
एक गोला
 हवन लकड़ी 2 किलो 
एक पान 
घी 500 ग्राम
हवन कुंड एक

सामाग्री- प्रसाद 
100 ग्राम धनिया पाउडर
3 चम्मच देसी घी
1/2 कप मखाना
1/2 कप चीनी
10 से 12 काजू
10 से 12 बादाम
1 चम्मच चिरौंजी
बनाने की विधि-
धनिए की पंजीरी बनाने के लिए सबसे पहले एक कढ़ाई में घी गर्म करें। इसके बाद कढ़ाई में धनिया पाउडर मिलाकर अच्छी तरह से भून लें। धनिया पाउडर भूनने के बाद इसमें बारिक टुकड़ों में मखानों को काटकर भूनें। इसके बाद उन्हें दरदरा पीस लें। इसके बाद सभी मेवों को इसमें मिला दें। आपकी पंजीरी तैयार है।

रक्षा बंधन 2018


येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे, माचल-माचलः'


अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिये हर बहन रक्षा बंधन के दिन का इंतजार करती है। श्रावण मास की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के पिछे कहानियां हैं। यदि इसकी शुरुआत के बारे में देखें तो यह भाई-बहन का त्यौहार नहीं बल्कि विजय प्राप्ति के किया गया रक्षा बंधन है। भविष्य पुराण के अनुसार जो कथा मिलती है वह इस प्रकार है।


बहुत समय पहले की बाद है देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा हुआ था लगातार 12 साल तक युद्ध चलता रहा और अंतत: असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया। इसके बाद इंद्र देवताओं के गुरु, ग्रह बृहस्पति के पास के गये और सलाह मांगी। बृहस्पति ने इन्हें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन गुरू बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया। इस रक्षा विधान के दौरान मंत्रोच्चारण से रक्षा पोटली को मजबूत किया गया। पूजा के बाद इस पोटली को देवराज इंद्र की पत्नी शचि जिन्हें इंद्राणी भी कहा जाता है ने इस रक्षा पोटली के देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा। इसकी ताकत से ही देवराज इंद्र असुरों को हराने और अपना खोया राज्य वापस पाने में कामयाब हुए।



वर्तमान में यह त्यौहार बहन-भाई के प्यार का पर्याय बन चुका है, कहा जा सकता है कि यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला पर्व है। एक ओर जहां भाई-बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती है। इस दिन भाई की कलाई पर जो राखी बहन बांधती है वह सिर्फ रेशम की डोर या धागा मात्र नहीं होती बल्कि वह बहन-भाई के अटूट और पवित्र प्रेम का बंधन और रक्षा पोटली जैसी शक्ति भी उस साधारण से नजर आने वाले धागे में निहित होती है।



रक्षा बंधन 2018


26 अगस्त


रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय- 05:59 से 17:25


अपराह्न मुहूर्त- 13:39 से 16:12


पूर्णिमा तिथि आरंभ – 15:16 (25 अगस्त)


पूर्णिमा तिथि समाप्त- 17:25 (26 अगस्त)


भद्रा समाप्त: सूर्योदय से पहले

नवरात्रि पूजा 2016

नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के लिए समर्पित किए गए हैं। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकि पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी पहलु सब बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त करने के प्रतिबद्धता के प्रतीक है।

(2) व्यक्ति जब अहंकार, क्रोध, वासना और अन्य पशु प्रवृत्ति की बुराई प्रवृत्तियों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह एक शून्य का अनुभव करता है। यह शून्य आध्यात्मिक धन से भर जाता है। प्रयोजन के लिए, व्यक्ति सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है। नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है। शायद व्यक्ति बुरी प्रवृत्तियों और धन पर विजय प्राप्त कर लेता है, पर वह अभी सच्चे ज्ञान से वंचित है। ज्ञान एक मानवीय जीवन जीने के लिए आवश्यक है भले हि वह सत्ता और धन के साथ समृद्ध है। इसलिए, नवरात्रि के पांचवें दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सभी पुस्तकों और अन्य साहित्य सामग्रीयो को एक स्थान पर इकट्ठा कर दिया जाता हैं और एक दीया देवी आह्वान और आशीर्वाद लेने के लिए, देवता के सामने जलाया जाता है।

सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।

सातवें दिन, कला और ज्ञान की देवी, सरस्वती, की पूजा की है। प्रार्थनायें, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश के उद्देश्य के साथ की जाती हैं। आठवे दिन पर एक 'यज्ञ' किया जाता है। यह एक बलिदान है जो देवी दुर्गा को सम्मान तथा उनको विदा करता है।

नौवा दिन नवरात्रि समारोह का अंतिम दिन है। यह महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। ईस दिन पर, कन्या पूजन होता है। उन नौ जवान लड़कियों की पूजा होती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ लड़कियों को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। लड़कियों का सम्मान तथा स्वागत करने के लिए उनके पैर धोए जाते हैं। पूजा के अंत में लड़कियों को उपहार के रूप में नए कपड़े पेश किए जाते हैं।


इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां 2016

आश्विन शुक्ल पक्ष में आने वाला मां आद्यशक्ति का आराध्यपर्व नवरात्र इस बार 1 अक्टूबर 2016 दिन शनिवार को प्रारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्रि में एक तिथि वृद्धि हो रही है। ऐसे में इस वर्ष नवरात्रि दस दिन के होंगे। पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि की तिथि में द्वितीया की तिथि को दो दिन बताया गया है। इस तरह से नौ के बजाए दस दिनों तक मां दुर्गा पूजीआश्विन शुक्ल पक्ष में आने वाला मां आद्यशक्ति का आराध्यपर्व नवरात्र इस बार 1 अक्टूबर 2016 दिन शनिवार को प्रारम्भ हो रहा है। इस बार नवरात्रि में एक तिथि वृद्धि हो रही है। ऐसे में इस वर्ष नवरात्रि दस दिन के होंगे। पंचांग के अनुसार इस बार नवरात्रि की तिथि

में द्वितीया की तिथि को दो दिन बताया गया है। इस तरह से नौ के बजाए दस दिनों तक मां दुर्गा पूजी जाएंगी।
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ये भी पढ़ेः रात को भूल कर भी न करें ये गलतियां, सब चौपट हो जाएगा

इसके पूर्व भी बना था संयोग
इससे पहले वर्ष 2000 में नवरात्रि दस दिन के थे। इस वर्ष नवरात्रि की तिथि दस दिनों की होने से विशेष संयोग निर्मित हो रही है। शारदीय नवरात्रि दस दिनों तक है और 11वें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक तिथियों के क्षय होने व बढऩे के कारण इस बार नवरात्रि की तिथि दस दिनों की हुई है। 16 साल बाद इस वर्ष ऐसा संयोग निर्मित हुआ है जो शुभ कार्यों के साथ नए कार्यो को करने के लिए उत्तम व सर्वश्रेष्ठ तिथि है।
इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां
प्रतिपदा व घट स्थापना - 1 अक्टूबर
द्वितीया - 2 व 3 अक्टूबर
तृतीया - 4 अक्टूबर
चतुर्थी - 5 अक्टूबर
पंचमी - 6 अक्टूबर
षष्ठी - 7 अक्टूबर
सप्तमी - 8 अक्टूबर
अष्टमी - 9 अक्टूबर
नवमी - 10 अक्टूबर
दशमी - 11 अक्टूबर
विजयादशमी का पर्व - 11 अक्टूबर

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घोड़े पर सवार होकर आएगी मातारानी
विद्वान पंडितों के अनुसार नवरात्र त्रिदिवसीय पूजा में सप्तमी जिस तिथि को होगी उससे माता के आगमन और दशमी से माता के गमन का विचार किया जाता है। यद्यपि इसका लौकिक प्रमाण ही मिलता है। इस वर्ष भगवती घोड़े पर आ रही है और मुर्गे पर जाएंगी जो की पूर्णतः शुभफल दायक नहीं है। महाष्टमी का व्रत एवं पूजा 9 अक्टूबर को की जाएगी। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा दस दिन होगी। ऐसे में इस वर्ष की नवरात्रि कई गुणा पुण्यकारी व फलदायी होगी।

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ये रहेगा कलश स्थापना का मुहूर्त
पंडित राधेश्याम शर्मा के अनुसार इस वर्ष माता रानी के कलश की स्थापना अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक की जाएगी। नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की आराधना-अर्चना होगी।

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सौभाग्य प्राप्ति के लिए नवरात्रि में निम्न उपाय करें-
(1) व्यापार में वृद्धि के लिए मूंग की दाल का हलवा मां को समर्पित करें।
(2) शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए नारियल मातारानी के चरणों में चढ़ाएं।
(3) सभी तरह की मनोकामना सिद्धी के लिए हलवा-पूरी चढ़ाएं।
(4) मानसिक शांति के लिए मां को चावल की खीर का भोग लगाएं।
(5) धन-धान्य की प्राप्ति के लिए मखाने की खीर का भोग लगाएं।
(6) अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वादिष्ट तथा मीठे फलों मां को चढ़ाएं।
(7) विद्या प्राप्ती के लिए मां को पीली मिठाई का भोग लगाएं। जाएंगी।

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इसके पूर्व भी बना था संयोग
इससे पहले वर्ष 2000 में नवरात्रि दस दिन के थे। इस वर्ष नवरात्रि की तिथि दस दिनों की होने से विशेष संयोग निर्मित हो रही है। शारदीय नवरात्रि दस दिनों तक है और 11वें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक तिथियों के क्षय होने व बढऩे के कारण इस बार नवरात्रि की तिथि दस दिनों की हुई है। 16 साल बाद इस वर्ष ऐसा संयोग निर्मित हुआ है जो शुभ कार्यों के साथ नए कार्यो को करने के लिए उत्तम व सर्वश्रेष्ठ तिथि है।

इस प्रकार रहेंगी नवरात्रि की तिथियां
प्रतिपदा व घट स्थापना - 1 अक्टूबर
द्वितीया - 2 व 3 अक्टूबर
तृतीया - 4 अक्टूबर
चतुर्थी - 5 अक्टूबर
पंचमी - 6 अक्टूबर
षष्ठी - 7 अक्टूबर
सप्तमी - 8 अक्टूबर
अष्टमी - 9 अक्टूबर
नवमी - 10 अक्टूबर
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घोड़े पर सवार होकर आएगी मातारानी
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पंडित राधेश्याम शर्मा के अनुसार इस वर्ष माता रानी के कलश की स्थापना अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:36 से 12:24 बजे तक की जाएगी। नवरात्र के पहले दिन मां के शैलपुत्री रुप की आराधना-अर्चना होगी।

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(1) व्यापार में वृद्धि के लिए मूंग की दाल का हलवा मां को समर्पित करें।
(2) शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए नारियल मातारानी के चरणों में चढ़ाएं।
(3) सभी तरह की मनोकामना सिद्धी के लिए हलवा-पूरी चढ़ाएं।
(4) मानसिक शांति के लिए मां को चावल की खीर का भोग लगाएं।
(5) धन-धान्य की प्राप्ति के लिए मखाने की खीर का भोग लगाएं।
(6) अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए स्वादिष्ट तथा मीठे फलों मां को चढ़ाएं।
(7) विद्या प्राप्ती के लिए मां को पीली मिठाई का भोग लगाएं।

शिवरात्रि की रात में पूजा विशेष फलदायी

शिवरात्रि की रात में पूजा विशेष फलदायी
प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मास शिवरात्रि कहा जाता है। इन शिवरात्रियों में सबसे प्रमुख है फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्री की रात में देवी पार्वती और भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था इसलिए यह शिवरात्रि वर्ष भर की शिवरात्रि से उत्तम है।
महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है। इस दिन शिव जी की उपासना और पूजा करने से शिव जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था।
सृष्टि में जब सात्विक तत्व का पूरी तरह अंत हो जाएगा और सिर्फ तामसिक शक्तियां ही रह जाएंगी तब महाशिवरात्रि के दिन ही प्रदोष काल में यानी संध्या के समय ताण्डव नृत्य करते हुए रूद्र प्रलय लाकर पूरी सृष्टि का अंत कर देंगे। इस तरह शास्त्र और पुराण कहते हैं कि महाशिवरात्रि की रात का सृष्टि में बड़ा महत्व है। शिवरात्रि की रात का विशेष महत्व होने की वजह से ही शिवालयों में रात के समय शिव जी की विशेष पूजा अर्चना होती है।
ज्योतिष की दृष्टि से भी महाशिवरात्रि की रात्रि का बड़ा महत्व है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा विराजमान रहता है। चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में चन्द्रमा की शक्ति लगभग पूरी तरह क्षीण हो जाती है। जिससे तामसिक शक्तियां व्यक्ति के मन पर अधिकार करने लगती हैं जिससे पाप प्रभाव बढ़ जाता है। भगवान शंकर की पूजा से मानसिक बल प्राप्त होता है जिससे आसुरी और तामसिक शक्तियों के प्रभाव से बचाव होता है।
रात्रि से शंकर जी का विशेष स्नेह होने का एक कारण यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर संहारकर्ता होने के कारण तमोगुण के अधिष्ठिता यानी स्वामी हैं। रात्रि भी जीवों की चेतना को छीन लेती है और जीव निद्रा देवी की गोद में सोने चला जा जाता है इसलिए रात को तमोगुणमयी कहा गया है। यही कारण है कि तमोगुण के स्वामी देवता भगवान शंकर की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
राशि के अनुसार भोलेनाथ की पूजा
महाशिवरात्रि के अवसर पर कई शुभ योग बन रहे हैं। इस अवसर आप शिव जी की पूजा से लाभ पाना चाहते हैं तो अपनी राशि के अनुसार भोलेनाथ की पूजा करें।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राशि के अनुसार द्वादश ज्योर्तिलिंग का ध्यान करके शिव जी का अभिषेक और ध्यान पूजन करने से विशेष लाभ मिलता है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
मेष राशि वाले ऐसे करें शिव की पूजा
द्वादश ज्योर्तिलिंगों में सोमनाथ ज्योर्तिलिंग पहला ज्योर्तिलिंग है। जिनका जन्म मेष राशि में हुआ है उन्हें महाशिवरात्रि के दिन सोमनाथ ज्योर्तिलिंग की पूजा करनी चाहिए।
जिनके लिए इस दिन सोमनाथ का दर्शन और पूजन करना कठिन हो वह अपने पास के शिव मंदिर में जाकर सोमनाथ का ध्यान करते हुए दूध से शिव को स्नान कराएं और स्नान के बाद शिव जी को शमी के फूल और पत्तियां चढ़ाएं।
मेष राशि शिव मंत्र
शिव की पूजा के बाद 'ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं'। इस मंत्र का 108 बार जप करें।
इस विधि से छात्र पूजा करें तो शिक्षा के क्षेत्र में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। गृहस्थों को सुख-शांति मिलती है। जो लोग अपना घर बनाने का सपना संजोए बैठे हैं उनके प्रयास में आने वाली बाधा दूरी होती है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
वृष राशि वाले करें दूसरे ज्योतिर्लिंग की पूजा
शैल पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन वृष राशि के स्वामी हैं। इस राशि के व्यक्तियों को मल्लिकार्जुन का दर्शन करना चाहिए।
लेकिन जो लोग मल्लिकार्जुन का दर्शन करने नहीं जा सकते उनके लिए शिव की कृपा पाने का सबसे आसान तरीका है महाशिवरात्रि के दिन किसी भी शिवलिंग की पूजा गंगाजल से करें। शिवलिंग पर आक का फूल और पत्ता चढ़ाएं।
वृष राशि के लिए मंत्र
इस राशि के व्यक्ति मल्लिकार्जुन का ध्यान करते हुए ' ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करें।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
मिथुन राशि के लिए प्रभावशाली ज्योतिर्लिंग
उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मिथुन राशि के स्वामी हैं। महाकालेश्वर कालों के भी काल हैं। इनकी पूजा करने वाले को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
इस राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को महाकालेश्वर का दर्शन करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन इस राशि के व्यक्ति महाकालेश्वर का दर्शन करें तो पूरे वर्ष संकट से मुक्त रहते हैं।
जो लोग इस दिन महाकालेश्वर का दर्शन नहीं कर पाएं वे महाकालेश्वर का ध्यान करते हुए किसी शिवलिंग को दूध में शहद मिलाकर स्नान कराएं और बिल्वपत्र एवं शमी के पत्ते चढ़ाएं।
मिथुन राशि के लिए शिव मंत्र
महाकालेश्वर का ध्यान करते हुए 'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
कर्क राशि वाले करें ओंकारेश्वर की पूजा
मध्य प्रदेश में नर्मदा तट पर बसा ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग का संबंध कर्क राशि से है। इस राशि वाले महाशिवरात्रि के दिन शिव के इसी रूप की पूजा करें। ओंकारेश्वर का ध्यान करते हुए शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद अपामार्ग और विल्वपत्र चढ़ाएं।
कर्क राशि के लिए शिव मंत्र
शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए 'ओम हौं जूं सः'। इस मंत्र का जितना संभव हो जप करें।
इस प्रकार शिव जी की पूजा करने से राशि के स्वामी चन्द्रमा को बल मिलेगा जिससे सेहत अच्छी रहेगी। मानसिक परेशानियों एवं चिंताओं का निदान होगा। इस प्रकार शिव की पूजा करने से भौतिक सुख के साधनों में वृद्घि होती है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
सिंह राशि वाले करें बाबा वैद्यनाथ की पूजा
इस राशि के व्यक्ति वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा करें। महाशिवरात्रि के अवसर पर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की विशेष पूजा होती है जिसमें शिव पार्वती का विवाह होता है।
महाशिवरात्रि के दिन सिंह राशि वाले वैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग का दर्शन करें तो पूरे वर्ष सेहत अच्छी रहती है। वैद्यानाथ ज्योर्तिलिंग का दर्शन जिन्हें प्राप्त न हो वह किसी भी शिवलिंग की पूजा गंगा जल से करें और सफेद कनेर का फूल चढ़ाएं। बाबा बैद्यनाथ को भांग व धतूरा बहुत पसंद है इसका भोग लगाएं।
सिंह राशि के लिए शिव मंत्र
'ओम त्र्यंबकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धनम। उर्वारूकमिव बन्ध्नान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। इस मंत्र का कम से कम 51 बार जप करें।
इस प्रकार शिव की पूजा करने से मानसिक शांति मिलती है। सामाजिक प्रतिष्ठा और यश की प्राप्ति होती है। सरकारी नौकरी एवं सरकार से जुड़े कार्यों में आने वाली बाधा दूर होती है। विवाह योग्य कन्याओं की शादी के योग मजबूत होते हैं।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
भीमाशंकर की पूजा करें कन्या राशि वाले
महाराष्ट्र में भीमा नदी के किनारे बसा भीमाशंकर ज्योर्तिलिंग कन्या राशि का ज्योर्तिलिंग हैं। इस राशि वाले भीमाशंकर को प्रसन्न करने के लिए दूध में घी मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं। इसके बाद पीला कनेर और शमी के पत्ते चढाएं।
कन्या राशि के लिए शिव मंत्र
'ओम नमो भगवते रूद्राय' मंत्र का यथासंभव जप करें। इस प्रकार शिव की पूजा करने से आत्मविश्वास बढ़ता है। बड़े भाई-बहनों के सहयोग में वृद्घि होती है। मित्रों से अच्छे संबंध बने रहते हैं। पूरे वर्ष विभिन्न स्रोतों से धन लाभ होता रहता है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
रामेश्वर ज्योर्तिलिंग की पूजा करें तुला राशि वाले
तमिलनाडु स्थित भगवान राम द्वारा स्थापित रामेश्वर ज्योर्तिलिंग का संबंध तुला राशि से है। भगवन राम ने सीता की तलाश में समुद्र पर सेतु निर्माण के लिए इस ज्योर्तिलिंग की स्थापना की थी।
महाशिवरात्रि के दिन इनके दर्शन से दांपत्य जीवन में प्रेम और सद्भाव बना रहता है। जो लोग इस दिन रामेश्वर ज्योर्तिलिंग का दर्शन नहीं कर सकें वह दूध में बताशा मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं और आक का फूल शिव को अर्पित करें।
शिव पंचाक्षरी मंत्र 'ओम नमः शिवाय' का 108 बार जप करें। इस प्रकार शिव की पूजा करने से कार्यक्षेत्र में आने वाली बाधा दूर होती है। पिता के साथ मधुर संबंध बने रहते हैं।
सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्घि होती है। जो लोग अभिनय अथवा संगीत की दुनिया में कैरियर बनाना चाहते हैं उनके लिए इस प्रकार शिव की पूजा करना लाभप्रद रहता है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करें वृश्चिक राशि वाले
गुजरात के द्वारका जिले में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है जिसका संबंध वृश्चिक राशि से है। इस राशि वालों को गले में नागों की माला धारण करने वाले नागों के देव नागेश्वर ज्योर्तिलिंग की पूजा करनी चाहिए।
महाशिवरात्रि के दिन इनका दर्शन करने से दुर्घटनाओं से बचाव होता है। जो लोग इस दिन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन न कर सकें वह दूध और धान के लावा से शिव की पूजा करें। शिव को गेंदे का फूल, शमी एवं बेलपत्र चढाएं।
वृश्चिक राशि के लिए शिव मंत्र
ह्रीं ओम नमः शिवाय ह्रीं। मंत्र का जप करें। इस राशि वालों के भाग्य के स्वामी चन्द्रमा हैं जो शिव के सिर पर सुशोभित हैं।
महाशिवरात्रि के दिन इस प्रकार शिव की पूजा करने से भाग्योन्नति होती है। पिता से धन का लाभ होता है। भौतिक सुखों की कामना रखने वालों का धन वैभव बढ़ता है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
बाबा विश्वनाथ की पूजा करें धनु राशि वाले
वाराणसी स्थित विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग का संबंध धनु राशि से है। इस राशि वाले व्यक्ति महाशिवरात्रि के दिन गंगाजल में केसर मिलाकर शिव को अर्पित करें। विल्वपत्र एवं पीला अथवा लाल कनेर शिवलिंग पर चढ़ाएं।
धनु राशि के लिए शिव मंत्र
महाशिवरात्रि के दिन चन्द्रमा कमजोर रहता है। इस राशि वाले ओम तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्रः प्रचोदयात।। इस मंत्र से शिव की पूजा करें। इससे चन्द्रमा को बल मिलता है और शिव कृपा भी प्राप्त होती है।
इस प्रकार शिव की पूजा करने से अचानक होनी वाली क्षति और मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आकस्मिक संकटों से बचाव होता है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
त्रयम्बकेश्वर की पूजा करें मकर राशि वाले
मकर राशि का संबंध त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग से है। यह ज्योतिर्लिंग नासिक में स्थित है। महाशिवरात्रि के दिन इस राशि वाले गंगाजल में गुड़ मिलाकर शिव का जलाभिषेक करें। शिव को नीले का रंग फूल और धतूरा चढ़ाएं।
मकर राशि के लिए मंत्र
त्रयम्बकेश्वर का ध्यान करते हुए 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का 5 माला जप करें। जो लोग विवाह करना चाह रहे हैं उनकी शादी में आने वाली बाधा दूर होती है और सुन्दर एवं सुयोग्य जीवनसाथी मिलता है।
दांपत्य जीवन के तनाव कम होता है। साझेदारी में व्यवसाय करने वालों की साझेदारी मजबूत होती है और लाभ बढ़ता है।
महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार मनाएं भोलेनाथ को
केदारनाथ की पूजा करें कुंभ राशि वाले
इस राशि वालों को उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ की पूजा करनी चाहिए। अक्षय तृतीया से केदारनाथ की यात्रा आरम्भ होती है इसलिए महाशिवरात्रि पर केदारनाथ का दर्शन नहीं किया जा सकता है।
इसलिए कुंभ राशि वाले व्यक्ति महाशिवरात्रि के दिन अपने आस पास के किसी शिवालय में जाकर केदारनाथ का ध्यान करते हुए शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद कमल का फूल और धतूरा चढ़ाएं।
कुंभ राशि के लिए मंत्र
कुंभ राशि के स्वामी भी शनि देव हैं इसलिए इस राशि के व्यक्ति भी मकर राशि की तरह 'ओम नमः शिवाय' का जप करें। जप के समय केदरनाथ का ध्यान करें। इस प्रकार महाशिवरात्रि के दिन शिव की पूजा करने से पूरे वर्ष सेहत अच्छी रहती है।
शत्रुओं एवं विरोधियों का डर नहीं रहता है। मामा मामी एवं मौसी के साथ अच्छे संबंध रहते हैं और जरूरत के समय इनसे लाभ मिलता है।
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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करें मीन राशि वाले
महाराष्ट्र के औरंगाबाद में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस ज्योर्तिलिंग का संबंध मीन राशि से है। इस राशि वाले महाशिवरात्रि के दिन दूध में केसर डालकर शिवलिंग को स्नान कराएं। स्नान के पश्चात शिव को गाय का घी और शहद अर्पित करें। कनेर का पीला फूल और विल्वपत्र शिव को चढ़ाएं।
मीन राशि के लिए शिव मंत्र
ओम तत्पुरूषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रूद्र प्रचोदयात।। इस मंत्र का जितना अधिक हो सके जप करें। इस राशि वाले इस वर्ष ढ़ैय्या के प्रभाव में रहेंगे।
इस प्रकार शिवरात्रि के दिन शिव लिंग की पूजा करने से शनि के कुप्रभाव से बचेंगे। आत्मविश्वास में वृद्घि होगी। स्वस्थ्य संबंधी समस्यओं में कमी आएगी। छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्ति में आसानी होगी।
फूलों से सजाएं अपनी किस्मत
भगवान ने फूलों को इसलिए नहीं बनाया है कि वह खिले और अगले दिन मुरझाकर खत्म हो जाए। फूल इसलिए भी नहीं हैं कि आप उन्हें भगवान के ऊपर चढ़ाकर अगले दिन निर्माल बनाकर फेंक दें।
फूलों में भी बड़ी चमत्कारी शक्तियां होती हैं जो आपकी किस्मत बदल सकती है।

SANTOSH PIDHAULI

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