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करवा चौथ 2018



सभी विवाहित (सुहागिन) महिलाओं के लिये करवा चौथ बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार हैं। ये एक दिन का त्यौहार प्रत्येक वर्ष मुख्यतः उत्तरी भारत की विवाहित (सुहागिन) महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस दिन विवाहित (सुहागिन) महिलाएँ पूरे दिन का उपवास रखती हैं जो जल्दी सुबह सूर्योदय के साथ शुरु होता है और देर शाम या कभी कभी देर रात को चन्द्रोदय के बाद खत्म होता है। वे अपने पति की सुरक्षित और लम्बी उम्र के लिये बिना पानी और बिना भोजन के पूरे दिन बहुत कठिन व्रत रखती हैं। पहले ये एक पारंपरिक त्यौहार था जो विशेष रूप से भारतीय राज्यों राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ भागों, हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता था हालांकि, आज कल ये भारत के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सभी महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। हिन्दू चन्द्र-सौर (ल्यूनिसौलर) कैलेंड़र के अनुसार, करवा चौथ का त्यौहार पूर्णिमा के दिन से 4 दिन बाद (अक्टूबर या नवंबर में) कार्तिक महीने में होता है। करवा चौथ का व्रत कुछ अविवाहित महिलाओं द्वारा भी उनकी रीति और परंपरा के अनुसार उनके मंगेतरों की लंबी उम्र या भविष्य में वांछित पति पाने के लिए रखा जाता है।


यह अन्य समारोहों जैसे हरितालिका तीज (जो विशेष रुप से यू0 पी0 में महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और कल्याण के लिये प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है) और छठ (विशेष रूप से बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और भारत के अन्य क्षेत्रों में एक ही कारण के लिए महिलाओं द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाता है।) के समान ही है।
करवा चौथ 2018

करवा चौथ महिलाओं द्वारा पूरे भारत के साथ-साथ विदेशों में भी रविवार, 28 अक्टूबर 2018 को मनाया जाएगा।
2018 में करवा चौथ पूजा का मूर्हूत

करवा चौथ मूर्हूत वह सटीक समय होता है जिसके भीतर ही पूजा करनी होती है। 8 अक्टूबर को करवा चौथ पूजा के लिए पूरी अवधि 1 घंटे और 18 मिनट है।
करवा चौथ पूजा का समय शाम 5:36 pm पर शुरू होगा।
शाम 6:54 pm पर करवा चौथ पूजा करने का समय खत्म होगा।
करवा चौथ 2018 को चंद्रोदय का समय

करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय शाम 08:30 pm होगा। करवा चौथ के दिन चंद्रमा उदय होने का समय सभी महिलाओं के लिए बहुत महत्व का है क्योंकि वे अपने पति की लम्बी उम्र के लिये पूरे दिन (बिना पानी के) व्रत रखती हैं। वे केवल उगते हुये पूरे चाँद को देखने के बाद ही पानी पी सकती हैं। ये माना जाता है कि, चाँद देखे बिना व्रत अधूरा है और कोई महिला न कुछ भी खा सकती हैं और न पानी पी सकती हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूरा माना जाता है जब महिला उगते हुये पूरे चाँद को छलनी में घी का दिया रखकर देखती है और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पानी पीती है।
करवा चौथ व्रत

करवा चौथ का त्यौहार बहुत खुशी के साथ हर साल महिलाओं द्वारा कृष्ण पक्ष में पूरे दिन व्रत रखकर कार्तिक के महीने की चतुर्थी पर मनाया जाता है। यह एक ही तिथि पर भारत के लगभग सभी राज्यों में मनाया जा रहा है। यह हर साल अक्टूबर या नवंबर के महीने में, हिंदू कैलेंडर के अनुसार पूर्णिमा के चौथे दिन पडता है।

करवा चौथ के दिन उपवास रखना का एक बड़ा अनुष्ठान है जिसके दौरान एक शादीशुदा औरत पूरे दिन उपवास रखती है और अपने पति के कल्याण और लंबे जीवन के लिए भगवान गणेश की पूजा करती हैं। विशेष रूप से, ये विवाहित महिलाओं का त्यौहार है, हालांकि कुछ भारतीय क्षेत्रों में; अविवाहित महिलाओं द्वारा भी उनके भविष्य के पति के लिए उपवास रखने की एक परंपरा है। इस दिन पर विवाहित महिलाएँ पूरे दिन उपवास रखती है, शाम को भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा करती है, और केवल चन्द्रोदय देखने के बाद देर शाम या रात में व्रत खोलती है। करवा चौथ उपवास बहुत मुश्किल है और इसका एक सख्त अनुशासन या नियम है कि कोई महिला सूर्योदय से रात में चंद्रोदय तक कुछ भी भोजन या पानी नहीं ले सकती।


ये करक चतुर्थी के रूप में भी कहा जाता है (करवा या करक का मतलब है एक मिट्टी का बर्तन जिसके उपयोग से औरत चंद्रमा को अर्घ्य देती है)। ब्राह्मण या अन्य विवाहित महिला के लिए कुछ दान और दक्षिणा देने की भी एक परंपरा है। ये देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में उत्तर भारतीय राज्यों में अत्यधिक लोकप्रिय है। बेटे के लिए एक और उपवास त्यौहार है जो अहोई अष्टमी व्रत के रूप में नामित है जो करवा चौथ के सिर्फ चार दिनों के बाद पड़ता है।
करवा चौथ की उत्पत्ति और कहानी

करवा चौथ का अर्थ उपवास है और कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर करवा (मिट्टी के बर्तन) का उपयोग कर के चंद्रमा को अर्घ्य देना है। करवा चौथ हर साल अंधेरे पखवाड़े के चौथे दिन पडता है। भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में महिलाओं द्वारा करवा चौथ के त्यौहार का जश्न अभी स्पष्ट नहीं है हालांकि इसे मनाने के कुछ कारण अस्तित्व में है। यह माना जाता है कि महिलाऍ को अपने पति के स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना करती है जब वे घर से बाहर अपने कर्तव्य या अन्य कठिन अभियानों पर होते हैं जैसे भारतीय सैनिक, पुलिसकर्मी, सैन्य कर्मचारी इत्यादि। भारतीय सैनिक अपने घर से दूर पूरे देश की सुरक्षा के लिए देश की सीमा पर बहुत कठिन ड्यूटी करते हैं। वे सूखे क्षेत्रों में कई नदियों को पार करके मानसून के मौसम को झेलते हुये और भी कई चुनौतियों का सामना करते हुये अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। तो, उनकी पत्नियॉ अपने पतियों की सुरक्षा, दीर्घायु और कल्याण के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। महिलाऍ पूरे दिन को बिना खाना खाये और पानी की एक बूंद भी पीये बिना अपने पति की सुरक्षा के लिए जहॉ कहीं भी वे अपने घर से दूर अपने मिशन पर होते हैं के लिए व्रत रहती है। यह त्यौहार गेहूं की बुवाई के दौरान अर्थात् रबी फसल चक्र के शुरू में होता है। एक औरत बड़े मिट्टी के बर्तन (कार्व) गेहूं अनाज के साथ भर कर के पूजा करती हैं और विशेष रूप से गेहूं खाने वाले क्षेत्रों में इस मौसम में अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।


महिलाओं द्वारा करवा चौथ का जश्न मनाने के पीछे एक और कहानी खुद के लिए है। बहुत समय पहले, जब लङकियों की शादी किशोरावस्था या और भी जल्दी 10,12 या 13 साल की उम्र में हे जाती थी, उन्हें अपने माता-पिता के घर से दूर अपने पति और ससुराल वालों के साथ जाना पड़ता था। उसे घर के सभी कामों को, ससुराल वालों के कामों के साथ साथ घर के बाहर खेतों के भी कामों को करना पड़ता था। वह बस उसके ससुराल वालों के घर में एक पूर्णकालिक नौकर की तरह थी। उसे हर किसी की जिम्मेदारी खुद लेनी पड़ती थी। ऐसे मामलों में यदि उसे ससुराल वालों से कुछ समस्या है, तो उसके पास कोई विकल्प नहीं था जैसे वापस घर जाना हो, रिश्तेदार, मित्र, आदि। पहले के दिनों में परंपरा थी, कि एक बार दुल्हन के दूल्हे के घर आने के बाद वह लंबे समय के लिये या जीवन में केवल एक या दो बार माता-पिता के से ज्यादा अपने घर नहीं जा सकेंगीं।

इस समस्या या अकेलेपन को हल करने के लिए महिलाओं ने उसी गॉव में जिसमें उनकी शादी हुई है वहॉ अच्छे समर्थन कर्त्ता दोस्त या बहन (धर्म दोस्त या धर्म बहन) (गांव की अन्य विवाहित महिलाओं) बनाने के लिये कार्तिक के महीने में चतुर्थी पर करवा चौथ का जश्न मना करना शुरू कर दिया। वे एक साथ मिलती, बात करती, अच्छे और बुरे क्षणों के बारे में चर्चा करती,हॅसती, अपने आप को सजाती, एक नयी दुल्हन की तरह बहुत सारी गतिविधियॉ करती और खुद को फिर से याद करती। इस तरह वे,कभी खुद को अकेली या दुखी महसूस नहीं करती थी। करवा चौथ के दिन वे कार्व खरीदती और एक साथ पूजा करती थी। वे विवाहित महिलाओं का कुछ सामान भी उपहार में (जैसे चूड़ियां, बिंदी, रिबन, लिपस्टिक, झुमके, नेल पॉलिश, सिंदूर, घर का बना कैंडी, मिठाई, मेकअप आइटम, छोटे कपड़े और अन्य तरह की वस्तुऍ) अन्य विवाहित महिलाओं को यह अहसास कराने के लिये देती कि उनके लिये भी कोई है। तो पुराने समय में करवा चौथ का त्यौहार आनंद और धर्म दोस्तों या धर्म बहनों के बीच विशेष बंधन को मजबूत करने के लिए एक उत्सव के रूप में शुरू किया गया था।

करवा चौथ पर उपवास रखना और पतियों के लिए पूजा की अवधारणा बहुत बाद में एक माध्यमिक प्रक्रिया के रूप में आयी। बाद में, बहुत सी पौराणिक कथाऍ और कहानियॉ इस त्यौहार को मनाने के अर्थ को बढ़ाने के क्रम में प्रचलित हुई। उपवास, पूजा और महिलाओं द्वारा खुद को सजाना पति-पत्नी के रिश्ते में बहुत सारी खुशी, आत्मविश्वास और नवीकरण लाता। यह पति और पत्नी के बीच संबंधों को भी नवविवाहित जोड़े की तरह मजबूत करता है। पति भावनात्मक रूप से अपनी पत्नी के और करीब हो जाता और एक सच्चे दोस्त की तरह उसे कभी भी चोट नहीं पहुँचाने को प्रयास करता। इस तरह महिलाऍ भावनात्मक लगाव के द्वारा अपने पति का भरोसा औत प्रेम जीतती। वह पूरे दिन बिना भोजन और बिना पानी के उपवास रखती, खुद को दुल्हन की तरह तैयार करती और अपने पति की सुरक्षा और अच्छे के लिये पूजा करती क्योंकि ससुराल में केवल पति ही उनके पूरे जीवन के लिये कर्त्ताधर्ता होता था।


करवा चौथ की रस्में

जैसे ही करवा चौथ की तारीख नजदीक आती है, विवाहित महिलाऍ बहुत उत्साहित होती है और उसके कुछ दिन पहले से तैयारी शुरु कर देती है। वे बहुत खुशी और उत्साह के साथ उस दिन का बेसब्री से इन्तजार करती है। यह त्यौहार उनके लिये दिवाली से भई ज्यादा महत्व रखता है। वे स्थानीय बाजार से सभी चीजें नयी खरीदती है, जैसे सौंदर्य प्रसाधन(श्रृंगार का सामान), पारंपरिक श्रृंगार, गहनें, साड़ी, चप्पलें, झुमके, कंगन, गले का हार, नेल पॉलिश, बिंदी, पूजा का सामान, कार्व दीपक, मेंहदी, पूजा थाली, आदि। उत्सव से पहले कुछ दिन,बाजार में त्यौहार का रुप झलकता है क्योंकि दुकानदारों पूजा औऱ सजावट का अधिक माल बेचने के लिए अपनी दुकानों को सजाना शुरू कर देते हैं।

कुछ स्थानों (जैसे पंजाब) पर महिलाऍ बहुत सुबह(4 बजे से पहले) कुछ खाने और पीने के लिये उठती क्योंकि उन्हें पूरे दिन उपवास रखना रडता है। दूसरे अन्य स्थान उत्तर प्रदेश में, अपने शरीर को अगले दिन बिना पानी और भोजन के रखने के लिये त्यौहार से एक दिन पहले शाम को दूध से बनी मीठी सूत फेनी खाने की रस्म है। पूर्व सुबह के भोजन के रुप में फेना खाना उनके लिये बहुत महत्वपूर्ण है।


पंजाब में सरगी देने की भी रस्म है। सरगी करवा चौथ के अवसर पर हर साल उनकी बहू को सास द्वारा दिया जाने वाला विवाहित महिलाओं के साजोसज्जा का सामान, मिठाई और अन्य खाद्य वस्तुओं का समूह होता है। यह एक रस्म है, कि जब एक नवविवाहित दुल्हन पहली बार करवा चौथ का व्रत रखती है तो उसे अपनी सासु माँ का अनुसरण करना पङता है। अर्थात् जो तरीका उसे उसकी सास के द्वारा बताया जाता है, उसे पूरे जीवन उसका पालन करना पङता है।यदि उपवास के दौरान उसकी सास द्वारा उसे पानी, चाय, जूस और अन्य चीजें लेने के लिये कहा जाता है तो उसके द्वारा यह पूरे जीवन भर पालन करना पङेगा। सास द्वारा अपनी बहु के लिये पूर्व सुबह के भोजन के रूप में फेना(यह सेंवईयों का एक रुप है जो फलूदा नें भी प्रयोग किया जाता है हालांकि यह फेना सेवईयों से भी बहुत पतला होता है) बनाया जाता है।

उपवास सुबह सूर्योदय के साथ शुरु होता है। महिलाऍ अपने बालों, हाथों और पैरों पर मेंहदी लगाती है। वे अपना पूरा दिन अपने मित्रों और सम्बधिंयों के साथ हॅसी और आन्नद के साथ बिताती है। वे अपने शादीशुदा दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच चूड़ियां, बिंदी, रिबन, मिठाई, घर का बना कैंडीज, कॉस्मेटिक सामान, रूमाल, आदि के साथ भरे कुछ चित्रित मिट्टी के बर्तन (कार्व) का आदान-प्रदान करती है। विवाहित महिलाओं को अपने माता पिता और पति से कुछ उपहार भी मिलता है।

शाम को ,वे नहाकर, अच्छी तरह तैयार होकर समुदायो की महिलाओं के साथ समारोंह में एक साथ भआग लेती है। वे बहुत सारी तैयारी के साथ पूजा करती है, करवा चौथ की कथा सुनती है, गाना गाती है आदि। यू0 पी0 और बिहार में जो महिलायें उपवास रखती है वो अपनी संस्कृति और परम्परा के अनुसार पूजा थाली लेकर एक घेरा बनाकर बैठ जाती है,उनमें से एक (जो ज्यादातर एक ज्येष्ठ औरत या एक पुजारी) करवा चौथ की कथा (गौरी, गणेश और शंकर) कहती है और तब वे सात बार फेरी (वृत्त में अपने थाल एक दूसरे से बदलना) लगाते हुये करवा चौथ का गीत गाती है। ऐसे कुछ प्रतिबन्ध है जिनका उपवास रखने वाली महिलाओं द्वारा पालन करना चाहिये, जैसे कपङे बुनना, किसी के लिये मन्नत मॉगना, किसी की प्रसंशा करना,किसी को नींग से जगाना।

वे पूरी सात फेरी लगाती है, पहली छः फेरी में, वे गाती है जैसे “वीरों कुण्डियॉ करवा, सर्व सुहागन करवा, ए कात्ती नाया तेरी ना, कुम्भ चकरा फेरी ना, आर पेअर पायेन ना, रुठदा मानियेन ना, सुथरा जगायेन ना,वे वीरों कुरिये करवा, वे सर्व सुहागन करवा” वहीं सातवीं फेरी में “वीरों कुण्डियॉ करवा, सर्व सुहागन करवा, ए कात्ती नाया तेरी नी, कुम्भ चकरा फेरी भी, आर पेअर पायेन भी, रुठदा मानियेन भी, सुथरा जगायेन भी, वे वीरों कुरिये करवा, वे सर्व सुहागन करवा”, गाती हैं।

राजस्थान में एक और रस्म है, उपवास रखने वाली महिला से दूसरी महिला द्वारा पूछा जाता है कि “धापी की नहीं धापी”( अर्थात् तृप्त हुई या नहीं?) वह जबाब देती है “जल से धपी, सुहाग से ना धपी” (पानी से तृप्त

हुई हूँ, पति से नहीं)। अन्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश में, एक अलग “गौर माता” पूजन की रस्म है। महिलाऍ थोडी सी मिट्टी लेकर, इस पर पानी छिङकती है, जिस पर कुमकुम लगाकर मूर्ति( अथात् उपजाऊ माँ भूमि) की तरह व्यवहार किया जाता है।

वे अपनी करवा थाली बदलते हुये गाना भी गाती है जैसे,“सदा सुहागन करवा लो, पति की प्यारी करवा लो, सात बहनों की बहन करवा लो, व्रत करनी करवा लो,सास की प्यारी करवा लो”। पूजा के बाद, वे मूर्ति को कुछ प्रसाद जैसे हलवा, पूरी, मठरी, नमकीन, मिठाई ( जिसे बायना भी कहा जाता है) अर्पित करके अपनी सास या नन्द को देती है।


पूजा समारोह के बाद, महिलायें चाँद निकलने का इंतजार करती है ताकि वे कुछ खाना खा-पी सकें। जब आसमान में चांद दिख जाता है सभी महिलाऍ जिन्होने व्रत रखा होता है अपने पति के साथ, अपने घर से बाहर या घर पर सबसे ऊपर छत पर छलनी से चाँद या पानी से भरे बर्तन में इसकी परछाई देखती है। वे आशीर्वाद पाने के लिये चन्द्रमाँ को अर्घ्य देकर जैसे चाँद को देखा था को उसी तरीके से अपने पति को देखने के लिये उनकी ओर मुडती है।
अब ये सभी सुहागनों के अपने पति के हाथों से कुछ मिठाई और पानी लेकर व्रत खोलने का समय होता है। अन्त में पूरे दिन के बाद पति पूजा की थाल में से मिठाई और एक गिलास पानी लेकर अपने हाथों से पिलाता है। व्रत खोलने के बाद, रात को महिलाऍ अपना पूरा आहार खा सकती है।


करवा चौथ की आधुनिक संस्कृति और परंपरा

आजकल, उत्तर भारतीय समाज में करवा चौथ की संस्कृति और परंपरा को बदल दिया है और एक रोमांटिक त्यौहार के रूप में मना रहा शुरू कर दिया गया है। यह जोड़ी के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक का त्यौहार बन गया है। यह हर जगह फिल्मों के माध्यम से प्रेरित होकर बॉलीवुड शैली में मनाया जा रहा है जैसे दिलवाले रही द्वारा दुल्हनिया ले जाएंगे, कभी खुशी कभी गम आदि। कहीं कहीं, यह अविवाहित महिलाओ द्वारा भी अपने मंगेतर और अपने भविष्य में होने वाले पति के लिये अपना प्यार और स्नेह दिखाने के लिये रखा जाता है। यह भावनात्मक और रोमांटिक लगाव के माध्यम से दंपती के रिश्ते की अच्छी अवस्था में लाने का त्यौहार बन गया है। त्यौहार की तारीख के पास आते ही, बाजार में अपना कारोबार बढ़ाने के लिए बहुत सारे विज्ञापन अभियान टीवी, रेडियो, आदि पर दिखाना शुरू हो जाता है।

करवा चौथ पर, सभी जैसे बच्चें और पति विशेष रूप से उपवास वाली महिलाओं सहित अच्छी तरह से नए कपड़े पहनते है और एक साथ में त्यौहार मनाते है। यह प्रसिद्ध परिवारिक समारोह बन गया है और प्रत्येक चंद्रोदय तक आनंद मनाते है। चंद्रोदय समारोह के बाद अपनी व्यस्त दैनिक दिनचर्या में कुछ परिवर्तन लाने के लिए अपने बच्चों के साथ कुछ जोड़े बजाय घर पर खाने के स्वादिष्ट खाना खाने के लिए रेस्तरां और होटल में जाते है।

कुछ लोगों द्वारा इसकी आलोचाना भी की गयी है, हालांकि कुछ लोग महिला सशक्ति करण त्यौहार के रुप में भी कहते है क्योकिं आम तौर पर करवा चौथ पर औरत पूरे दिन के लिए और व्यस्त दैनिक जीवन से दूर जीवन जीने के लिए पूरी तरह से उनके घर के कामकाज छोड़ देती है। वे राहत महसूस करती हैं और अपने पति से उपहार प्राप्त करती है जो उन्हें शारीरिक, बौद्धिक और भावनात्मक रूप से खुश करती है। ऐसा माना जाता है कि घर के काम करता है और परिवार के सभी सदस्य की जिम्मेदारियॉ महिला सशक्तीकरण के लिए सबसे बड़ी बाधा हैं। हालांकि, सिख सिद्धांत उपवास की अवधारणा का अत्यधिक विरोध करता है है कि वे सोचते है कि उपवास का कोई भी आध्यात्मिक या धार्मिक लाभ नहीं है, यह केवल स्वास्थ्य कारणों के लिए रखा जा सकता है।

करवा चौथ का जश्न महत्व और किंवदंतियॉ

महिलाओं द्वारा हर साल करवा चौथ का जश्न मनाने के पीछे कई किंवदंतियॉ, पारंपरिक कथाऍ और कहानियाँ जुड़ी है। । उनमें से कुछ के नीचे उल्लेख कर रहे हैं:

एक बार, वीरवती नामक एक सुंदर राजकुमारी थी। वह अपने सात भाइयों की इकलोती प्यार बहन थी। । उसकी शादी हो गयी और अपने पहले करवा चौथ व्रत के दौरान अपने माता पिता के घर पर ही थी। उसने सुबह सूर्योदय से ही उपवास शुरू कर दिया था। उसने बहुत सफलतापूर्वक उसका पूरा दिन बिताया हालांकि शाम को उसने बेसब्री से चंद्रोदय के लिए इंतज़ार करना शुरू कर दिया क्योंकि वह गंभीर रूप से भूख और प्यास पीड़ित थी। क्योंकि यह उसका पहला करवा चौथ व्रत था,उसकी यह दयनीय दशा उसके भाईयों के लिये असहनीय थी क्योंकि वे सब उससे बहुत प्यार करते थे। उन्होंने उसे समझाने का बहुत कोशिश की कि वह बिना चॉद देखे खाना खा ले हालांकि उसने मना कर दिया। तब उन्होंने पीपल के पेड़ के शीर्ष पर एक दर्पण से चाँद की झूठी समानता बनायी और अपनी बहन से कहा कि चंद्रमा निकल आया। वह बहुत मासूम थी और उसने अपने भाइयों का अनुकरण किया। गलती से उसने झूठे चाँद को देखा, अर्घ्य देकर उसने अपना व्रत तोङ लिया। उसे अपने पति की मौत का संदेश मिला। उसने जोर जोर से रोना शुरु कर दिया उसकी भाभी ने उसे बताया कि उसने झूठे चांद को देखकर व्रत तोड़ दिया जो उसके भाईयों ने उसे दिखाया था, क्योकि उसके भाई उसे भूख और प्यास की हालत को देखकर बहुत संकट में थे। उसका दिल टूट गया और वह बहुत ज्यादा रोई। जल्द ही देवी शक्ति उसके सामने प्रकट हुई और उससे पूछा कि आप क्यों रो रहे हो? । उसने पूरी प्रक्रिया के बारे में बताया और फिर देवी द्वारा निर्देश दिया गया कि उसे पूरी भक्ति के उसकी करवा चौथ का व्रत दोहराना चाहिए। जल्द ही व्रत पूरा होने के बाद, यमराज को उसके पति के जीवन वापस करने के लिए मजबूर किया गया।

कहीं कहीं यह माना जाता है, पीपल के पेड़ के शीर्ष पर एक दर्पण रखकर एक झूठे चाँद बनाने के बजाय रानी वीरवती के भाईयों ने(अपनी बहन को झूठा चन्द्रमा दिखाने के लिये) पर्वत के पीछे बहुत बडी आग लगायी। उस झूठी चाँद चमक के बारे में (पहाड़ के पीछे एक बड़ी आग) उन्होंने अपनी बहन को बहन राजी कर लिया। उसके बाद उसने बड़ी आग के झूठे चंद्रमा को देखकर अपना उपवास तोड़ दिया और उसे संदेश मिला कि उसने अपने पति को खो दिया। वह अपने पति के घर की ओर भागी हालांकि मध्य रास्ते में, शिव-पार्वती उसे दिखाई दिये और उसे उसके भाइयों के सभी प्रवंचनाके बारे में बताया। उसे तब देवी द्वारा बहुत ही ध्यान से उसे फिर से उपवास पूरा करने के लिए निर्देश दिये गये। उसने वैसा ही किया और उसे उसका पति वापस मिल गया।
इस त्योहार का जश्न मनाने के पीछे एक और कहानी सत्यवान और सावित्री का इतिहास है। एक बार, यम सत्यवान के पास उसकी जिंदगी हमेशा के लिए लाने के लिये पहुंच गये। सावित्री उस के बारे में पता चला, तो उसने अपने पति का जीवन देने के लिए यम से विनती की लेकिन यम से इनकार कर दिया। तो उसने अपने पति का जीवन पाने के लिये बिना कुछ खाये पीये यम का पीछा करना शुरु कर दिया। यम ने उसे अपने पति के जीवन के बदले कुछ और वरदान माँगने को कहा। वह बहुत चालाक थी उसने यमराज से कहा कि वह एक पतिव्रता स्त्री है और अपने पति के बच्चों की माँ बनना चाहती है। यम को उसके बयान ने सहमत होने के लिए मजबूर कर दिया और उसे उसके पति के साथ लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया।

एक बार करवा नामक एक औरत थी, जो अपने पति के लिए पूर्ण रुप से समर्पित थी जिसके कारण उसे महान आध्यात्मिक शक्ति प्रदान की गयी। एक बार, करवा का पति नदी में स्नान कर रहा था और तभी अचानक एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। उसने मगरमच्छ बॉधने के लिए एक सूती धागे का इस्तेमाल किया और यम को मगरमच्छ को नरक में फेंकने के लिए कहा। यम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया,हांलाकि उन्हें ऐसा करना पडा क्योंकि उन्हें पतिव्रता स्त्री करवा के शाप लगने का भय था। उसे उसके पति के साथ लम्बी आयु का वरदान दिया। उस दिन से, करवा चौथ का त्यौहार भगवान से अपने पति की लंबी उम्र पाने के लिए आस्था और विश्वास के साथ महिलाओं द्वारा मनाना शुरू किया गया।

महाभारत की कथा इस करवा चौथ उत्सव को मनाने के पीछे एक और कहानी है। बहुत पहले, महाभारत के समय में, अर्जुन की अनुपस्थिति में जब वो (कौन वो) नीलगिरी पर तपस्या के लिए दूर गया हुआ था तब पांड़वो को द्रौपदी सहित कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था। द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से मदद के लिये प्रार्थना कि तब उसे भगवान द्वारा देवी पार्वती और भगवान शिव की एक पूर्व कथा का स्मरण कराया गया। उसे भी उसी तरह करवा चौथ का व्रत पूर्ण करने की सलाह दी गयी। उसने सभी रस्मों और र्निदेशों का पालन करते हुये व्रत को पूर्ण किया। जैसे ही उसका व्रत पूरा हुआ, पांड़वों सभी समस्याओं से आजाद हो गये।
पहला करवा चौथ

करवा चौथ का त्यौहार नव विवाहित हिन्दू महिलाओं के लिये बहुत महत्व रखता है।यह उसकी शादी के बाद पति के घर पर बहुत बङा अवसर होता है। करवा चौथ के अवसर के कुछ दिन पहले से ही वह और उसके ससुराल वाले बहुत सारी तैयारियॉ करते है। वह सभी नयी वस्तुओं से इस प्रकार तैयार होती है जैसे उसकी उसी पति से दुबारा शादी हो रही हो। सभी ( मित्र, परिवार के सदस्य, रिश्तेदार और पङोसी) एक साथ इकट्ठे होकर इसे त्यौहार की तरह मनाते है। उसे उसके विवाहित जीवन में समृद्धि के लिये अपने पति, मित्रों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और पङोसियों से बहुत सारे आशीर्वाद और उपहार मिलते है।

उसे अपनी पहली करवा चौथ पर अपनी सास से पहली सरगी मिलती है। पहली सरगी में साज सज्जा का सामान, करवा चौथ से एक दिन पहले का खाना और अन्य बहुत सारी वस्तुऍ ढेर सारे प्यार और खुशहाल जीवन के लिये आशीर्वाद शामिल होता है।वह आशीर्वाद पाने के लिये घऱ के बङों और रिश्तेदारों के पैर छूती है।

पहला बाया देने की भी प्रथा है। यह सूखे मेवे, उपहार, मीठी और नमकीन मठरी, मिठाई, कपङे, बर्तन आदि का समूह होता है, लङकी की माँ द्वारा लङकी की सास और परिवार के अन्य सदस्यों के लिये भेजा जाता है। यह एक बेटी के लिये बहुत महत्वपूर्ण होता है जो पहली करवा चौथ पर इसका बेसब्री से इंतजार करती है। करवा चौथ की पूजा के बाद पहला बाया सभी परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और पङोसियों के बीच बॉटा जाता है।

अंत में, नविवाहित दुल्हन को अपने पति से रात्री भोजन के समय चन्द्रोदय के समारोह के बाद बहुत ही खास उपहार मिलता है। इस दिन उनके बीच प्यार का बंधन मजबूती के साथ बढता है, पति अपनी प्रिय पत्नी के लिये बहुत गर्व महसूस करते है क्योंकि वे उनके लिये बहुत कठिन व्रत रखती है। वे अपनी पत्नी को बहुत सारा प्यार और सम्मान देते है और बहुत सारी देखभाल औऱ करवा चौथ के उपहार द्वारा उन्हें खुश रखते है। इस दिन वे अपनी पत्नी को पूर्ण आनन्द करने और स्वादिष्ट भोजन करने कराने के लिये किसी अच्छी दिलचस्प जगह लेकर जाते है जिस से कि कम से कम साल में उन्हें एक दिन के लिये घर की जिम्मेदारियों से आराम मिलें।
करवा चौथ व्रत विधि

करवा चौथ व्रत को करक चतुर्थी व्रत के नाम से भी जाना जाता है जोकि विवाहित महिलाओं के लिये बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है विशेष रुप से पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान और यू0 पी0 में। यह कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष के चौथे दिन पपडता है। इस व्रत के दौरान, महिलाऍ देवी पार्वती, भगवान गणेश और चन्द्रमा की पूजा करती है। यह व्रत बिना पानी के अर्थात् “ र्निजला व्रत” है हालाकिं, कुछ औरतें (गर्भवती और अस्वस्थ महिलाऍ) इसे दूध, फल, मेवा, खोया आदि लेकर भी व्रत रखती है। इस व्रत में पूरी पूजा प्रक्रिया के दौरान भगवान के लिये दिल से समर्पण, आस्था और विश्वास की आवश्यकता है। देवी देवताओं को समर्पित करने के लिये खीर, पूआ, दहीवडा, दने की दाल की पूङी, गुङ का हलवा आदि बनाया जाता है। पूजा पूर्व की ओर चेहरा करके की जानी चाहिये, और देवा देवताओं की मूर्ति का चेहरा पश्चिम की ओऱ होना चाहिये। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दान दक्षिणा देने से बहुत सारी शान्ति, सुरक्षा, पति के लिये लंबे जीवन, धन और घर के लिये बेटा के साथ साथ पूजा करने वाले की अन्य इच्छाओं की पूर्ति होती है। यह माना जाता है कि पूजा का उद्देश्य करक का दान और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही पूरा होता है।
करवा चौथ व्रत कथा

करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओँ के लिये करवा चौथ व्रत कथा सुनने का बहुत महत्व है।बिना कथा सुने, व्रत पूरा नहीं माना जाता है। करवा चौथ व्रत की बहुत सारी कथाऍ है, जिसमें से विवाहित महिलाओं को व्रत के पूजा समारोह के दौरान एक कथा सुनना आवश्यक है । कुछ व्रत कथा और कहानियों का शीर्षक "करवा चौथ उत्सव का महत्व और किंवदंतियॉ" के तहत उल्लेख किया गया हैं।
करवा चौथ पूजा की प्रक्रिया

करवा चौथ से एक दिन पहले विवाहित महिलाऍ बहुत सारी तैयारियॉ करती है क्योंकि अगले दिन उसे बिना भोजन और पानी के पूरे दिन व्रत रखना होता है। वह बहुत सुबह सूरज निकलने से पहले ही कुछ खा लेती है और पानी पी लेती है क्योंकि उन्हें अपना पूरा दिन बिना कुछ खाये बिताना होता है। सुबह से दोपहर तक वह त्यौहार की बहुत सी गतिविधियों में व्यस्त रहती है जैसे हाथों और पैरों पर मेंहदी लगाना, खुद सजना, पूजा की थाली तैयार करना( सिन्दूर, फूल, कुमकुम, चावल के दानें, घी का दिया, धूपबत्ती और अन्य पूजा सामग्री के साथ) और अपने सगे सम्बधिंयों से मिलना आदि।

पूजा शुरु होने से पहले, निम्नलिखित पूजा की सामग्री एकत्र करने जरुरत होती है,गणेश जी, अम्बिका गौरी माँ, श्री नन्दीश्वर, माँ पार्वती, भगवान शिव जी और श्री कार्तिकेय की मूर्ति। पूजा का सामान (जैसे करवा या धातु के बर्तन, धूप, दीप, कपूर, सिंदूर, घी दीया, रोली, चंदन, काजल, फल, मेवा, मिठाई, फूल और माचिस) को इकट्ठा करने का जरुरत होती है।

शाम को नहाकर, तैयार होकर, वे अपने पङोसियों और मित्रों के यहॉं करवा चौथ की कहानी सुनने के लिये जाती है।समुदाय या समाज की विवाहित महिलाऍ एक साथ होकर जैसे बगीचे, मंदिर या किसी के घर आदि एक आम जगह पर पूजा की व्यवस्था करती है। बड़ी महिलाओं में से एक करवा चौथ की कहानी सुनाना शुरू करती है। केंद्र में एक विशेष मिट्टी का गेहूं अनाज से भरा बर्तन(भगवान गणेश के प्रतीक के रूप में माना जाता है), पानी से भरा एक धातु का बर्तन , कुछ फूल, माता पार्वती की मूर्ति के साथ में रखने के लिए, अंबिका गौर माता, मिठाई, मठ्ठी, फल और खाद्य अनाज। देवी के लिये अर्पित सभी वस्तुओं का छोटा सा भाग कथावाचक के लिये रखा जाता है।

पहले मिट्टी और गाय के गोबर का प्रयोग करके गौर माता की मूर्ति बनाने की रिवाज थी, हालाकिं इन दिनों, महिलाऍ देवी पार्वती की धातु या कागज मूर्ति रखती है। सभी महिलाएं कथा या कहानी सुनने से पहले थाली में मिट्टी का दीपक जलाती है। महिलाऍ रंगीन साड़ी पहनती हैं और खुद को उनकी शादी की लाल या गुलाबी चुनरी के साथ ढकती है। वे पूजा गीत गाती हैं और आशीर्वाद के लिए भगवान और देवी से प्रार्थना करती हैं। वे सात बार एक घेरे में एक दूसरे को अपनी पूजा थाली को स्थानांतरित करती है और गीत गाती हैं। पूजा पूरी हो जाने के बाद, हर कोई अपनी पूजा थाली के साथ अपने घर के लिए चली जाती है और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए परिवार में बड़ें, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के पैर छूती है।
चंद्रोदय समारोह

महिलाऍ चंद्रोदय समारोह की रस्म के लिए अपनी पूजा थाली को तैयार करती है। पूजा थाली में घी का दीया, चावल के दाने, पानी भरे बर्तन, माचिस, मिठाई, पानी का एक गिलास और एक छलनी शामिल है। एक बार आकाश में चंद्रमा उगने के बाद, महिलाऍ चाँद देखने के लिए अपने घरों से बाहर आती है। सब से पहले वे चन्द्रमा को अर्घ्य देती है, चाँद की ओर चावल के दाने डालती है, छलनी के अन्दर घी का दिया रखकर चॉद को देखती है। वे अपने पतियों की समृद्धि, सुरक्षा और लंबे जीवन के लिए चंद्रमा से प्रार्थना करती हैं। चाँद की रस्म पूरी करने के बाद, वे अपने पति,सासु मॉ और परिवार अन्य बडों के पैर छू कर सदा सुहागन और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद लेती हैं। कहीं कहीं चाँद को सीधे देखने के स्थान पर उसकी परछाई को पानी में देखने का रिवाज है। पैर छूने के बाद, पति अपने हाथों से अपनी पत्नी को मिठाई खिलाकर पानी पिलाता है।
करवा चौथ के उपहार

करवा चौथ के बहुत सारे उपहार पति, माँ, सासु माँ और परिवार के अन्य सदस्यों और मित्रों द्वारा उन महिलाओं को विशेष रुप से दिये जाते है जो अपना पहला करवा चौथ का व्रत रखती है। यह माना जाता है कि करवा चौथ का व्रत बहुत कठिन है,बिना कुछ खाये पीये पूरा दिन व्यतीत करना पडता है। यह हर विवाहित महिला के लिए अपने पति के लिए उपवास रखकर उनसे कुछ खूबसूरत और महंगे तोहफे पाने जैसे आभूषण, चूड़ियाँ, साड़ी, लहंगे, फ्रॉक सूट, नए कपड़े, और मिठाई और अन्य पारंपरिक उपहार पाने का सुनहरा मौका होता है। महिलाऍ बहुत सारे प्यार और स्नेह के साथ अविस्मरणीय उपहार प्राप्त करती है जो खुशी के साथ साथ उनके पति के साथ उनके रिश्ते को मजबूती प्रदान करता है।

कैसा हो घर का वास्तु स्वर्गीय अटल जी की ज़ुबानी -



कैसा हो घर का वास्तु स्वर्गीय अटल जी की ज़ुबानी -
घर चाहे कैसा भी हो..
उसके एक कोने में..

खुलकर हंसने की जगह रखना..


सूरज कितना भी दूर हो..
उसको घर आने का रास्ता देना..

कभी कभी छत पर चढ़कर..
तारे अवश्य गिनना..

हो सके तो हाथ बढ़ा कर..
चाँद को छूने की कोशिश करना .

अगर हो लोगों से मिलना जुलना..
तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना..

भीगने देना बारिश में..

उछल कूद भी करने देना..
हो सके तो बच्चों को..
एक कागज़ की किश्ती चलाने देना..

कभी हो फुरसत,आसमान भी साफ हो..
तो एक पतंग आसमान में चढ़ाना..
हो सके तो एक छोटा सा पेंच भी लड़ाना..

घर के सामने रखना एक पेड़..
उस पर बैठे पक्षियों की बातें अवश्य  सुनना..

घर चाहे कैसा भी हो.. 

घर के एक कोने में..
खुलकर हँसने की जगह रखना.

चाहे जिधर से गुज़रिये
मीठी सी हलचल मचा दिजिये,

उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है
अपनी उम्र का मज़ा लिजिये.

ज़िंदा दिल रहिए जनाब,
ये चेहरे पे उदासी कैसी
वक्त तो बीत ही रहा है,
*उम्र की एेसी की तैसी...!¡!* 🔶
जय श्री राम

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त



इस साल 13 सितंबर से गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू हो जाएगा। गणपति को घर लाने और उत्सव की तैयारियों के लिए आपने खरीदारी का मन बना लिया होगा। अगर आप भी गणपति को घर में विराजित करते हैं तो यहां जानिए पूजा की सही विधि और गणपति स्थापना का सही तरीका…

सबसे पहले करें यह काम
गणेश चतुर्थी पर पूजा के लिए जरूरी है कि बाजार से गणपति की एक नई प्रतिमा लाई जाए। यदि आप प्रतिमा स्थापित नहीं करना चाहते हैं तो एक साबुत पूजा सुपारी को गणपति स्वरूप मानकर उसे भी घर में स्थापित कर सकते हैं।

स्थापना का सही तरीका
गणपति को घर में विराजने से पहले पूजा स्थल की सफाई कर लें। फिर एक साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षत रखें और उनके ऊपर गणपति को स्थापित करें। इसके बाद गणपति को दूर्वा या पान के पत्ते की सहायता से गंगाजल से स्नान कराएं। पीले वस्त्र गणपति को अर्पित करें या मोली को वस्त्र मानकर अर्पित करें। इसके बाद रोली से तिलक कर अक्षत लगाएं, फूल चढ़ाएं और मिष्ठान का भोग लगाएं। कीर्तन करें। प्रसाद में प्रतिदिन पंचमेवा जरूर रखें।

ऐसे रखें सामान को सही जगह पर
गणपति की चौकी के पास तांबे या चांदी के कलश में जल भरकर रखें। कलश गणपति के दाईं और होना चाहिए। इस कलश के नीचे चावल या अक्षत रखें और इस पर मोली अवश्य बांधें। गणपति के दाईं तरफ घी का दीपक जलाएं। दीपक को कभी भी सीधे जमीन पर न रखें और इसके नीचे भी चावल रखें। पूजा का समय निश्चित रखें। यदि आप माला जप करने का प्रण ले रहे हैं तो प्रतिदिन नियत समय पर उतनी ही माला का जप करें

संकल्प करना है जरूरी
गणपति की स्थापना के बाद दाएं (सीधे) हाथ में अक्षत और गंगाजल लेकर संकल्प करें। कहें कि हम गणपति को इतने दिनों तक अपने घर में स्थापित करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा करेंगे। संकल्प में उतने दिनों का जिक्र करें, जितने दिन आप गणपति को अपने घर में विराजना चाहते हों। जैसे, तीन, पांच,सात, नौ या 11 दिन।

गणपति का आह्वान करें
ओम् गणेशाय नम: का जप करते हुए स्थापित की गई गणपति प्रतिमा को प्रणाम करें और उनसे विनती करिए कि प्रभु हम इतने दिनों तक आपको प्रतिष्ठित करने विधि पूर्वक पूजा करना चाहते हैं। आप ऋद्धि-सिद्धि के साथ हमारे घर में विराजमान हों। आपकी पूजा के दौरान यदि हमसे कोई गलती हो जाती है तो कृपा कर हमें क्षमा करें और अपनी अनुकंपा हम पर बनाए रखें।

शुभ-लाभ प्राप्ति के लिए
घर में शुभ-लाभ की वृद्धि और समृद्धि की प्राप्ति के लिए गणपति को प्रतिदिन 5 दूर्वा अर्पित करें। साथ ही पांच हरी इलायची और 5 कमलगट्टे एक कटोरी में रखकर भगवान के चरणों में रख दें। दूर्वा को प्रतिदिन बदलते रहें और इलायची तथा कमलगट्टों को पूजा के अंतिम दिन तक वहीं रखा रहने दें। पूजन संपन्न होने के बाद कमलगट्टों को लाल कपड़े में बांधकर घर के मंदिर में रख लें तथा इलायची को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त
13 सितंबर से 23 सितंबर तक चलेगा गणेश चतुर्थी उत्सव
इस बार गणेश उत्सव 13 से 23 सितंबर तक चलेगा। ज्योतिष के अनुसार इस बार चतुर्थी वाले दिन काफी अच्छे संयोग बन रहे है। गणेश चतुर्थी के दिन सुबह-सुबह साधक को उपवास पर रहना चाहिए और दोपहर में गणेशजी की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाकर विधिविधान से पूजा करनी चाहिए।

गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त

13 सितंबर मध्याह्न गणेश पूजा का समय - 11:03 से 13:30

अवधि - 2 घण्टे 27 मिनट

12 सितंबर को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय - 16:07 से 20:33

अवधि - 4 घण्टे 26 मिनट

13 सितंबर को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय - 9:31 से 21:12

अवधि - 11 घण्टे 40 मिनट

चतुर्थी तिथि प्रारम्भ -12सितम्बर 2018 को 16: 07 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त - 13 सितम्बर 2018 को 14 :51 बजे

पूजा सामग्री


धूप बत्ती (अगरबत्ती) 1


कपूर 1

केसर 1

चंदन

यज्ञोपवीत 5

कुंकु 1

चावल 500

अबीर 1

गुलाल, अभ्रक 1

हल्दी 1

आभूषण 1

नाड़ा 1

रुई 1

रोली, सिंदूर 1

सुपारी,11


पान के पत्ते 11

पुष्पमाला, 5 कमलगट्टे 1

धनिया खड़ा 100 ग्राम

सप्तमृत्तिका 1

सप्तधान्य 1

कुशा व दूर्वा 2

पंच मेवा 1

गंगाजल 1

शहद (मधु) 1

शकर 250 ग्राम

घृत (शुद्ध घी) 500 ग्राम

दही 100 ग्राम

दूध 500 ग्राम

ऋतुफल पांच फल

नैवेद्य या मिष्ठान्न 1 किला

( पेड़ा, मालपुए इत्यादि)

इलायची (छोटी) 1 पैकेट

लौंग 1


मौली 1

इत्र की शीशी 1

सिंहासन (चौकी, आसन) 1






पंच पल्लव 2


हवन सामग्री : कुल सामग्री में सबसे ज्यादा तिल, तिल का आधा चावल, चावल का आधा जौ हों चाहिए |






किलो सामग्री में :


तिल – 200 ग्राम , चावल – 200 ग्राम, जौ – 100 ग्राम किगूगल – 10 ग्राम, मिश्री – ५०० ग्राम, घी- २५० ग्राम, कमलगट्टा – 10 ग्राम, कपूर पाउडर – १0 ग्राम, जटामसी – १० ग्राम, चंदनचुरा – १०ग्राम | ये सभी मिला लें |


आहुति डालने के लिए घी अलग से |


लकड़ी – आम, पिप;, पलाश, बड आदि |

ध्यान श्लोक - शुक्लाम्बर धरं विष्णुं शशि वर्णम् चतुर्भुजम् . प्रसन्न वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये ..



षोडशोपचार पूजन - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ध्यायामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आवाहयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आसनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अर्घ्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पाद्यं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आचमनीयं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . उप हारं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पंचामृत स्नानं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . वस्त्र युग्मं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . यज्ञोपवीतं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . आभरणानि समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . गंधं धारयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . अक्षतान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पैः पूजयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . प्रतिष्ठापयामि .

और गणेश जी के इन नामों का जप करें - 



ॐ गणपतये नमः॥ ॐ गणेश्वराय नमः॥ ॐ गणक्रीडाय नमः॥

ॐ गणनाथाय नमः॥ ॐ गणाधिपाय नमः॥ ॐएकदंष्ट्राय नमः॥

ॐ वक्रतुण्डाय नमः॥ ॐ गजवक्त्राय नमः॥ ॐमदोदराय नमः॥

ॐ लम्बोदराय नमः॥ ॐ धूम्रवर्णाय नमः॥ ॐविकटाय नमः॥

ॐ विघ्ननायकाय नमः॥ ॐ सुमुखाय नमः॥ ॐ दुर्मुखाय नमः॥

ॐ बुद्धाय नमः॥ ॐविघ्नराजाय नमः॥ ॐ गजाननायनमः॥

ॐ भीमाय नमः॥ ॐ प्रमोदाय नमः ॥ ॐ आनन्दायनमः॥

ॐ सुरानन्दाय नमः॥ ॐमदोत्कटाय नमः॥ ॐहेरम्बाय नमः॥

ॐ शम्बराय नमः॥ ॐशम्भवे नमः ॥ॐ लम्बकर्णायनमः ॥ॐ महाबलाय नमः॥ॐ नन्दनाय नमः ॥ॐ

अलम्पटाय नमः ॥ॐ भीमाय नमः ॥ॐमेघनादायनमः ॥ॐ गणञ्जयाय नमः ॥ॐ विनायकाय नमः

॥ॐविरूपाक्षाय नमः ॥ॐ धीराय नमः ॥ॐ शूरायनमः ॥ॐवरप्रदाय नमः ॥ॐ महागणपतये नमः ॥ॐ

बुद्धिप्रियायनमः ॥ॐ क्षिप्रप्रसादनाय नमः ॥ॐ रुद्रप्रियाय नमः॥ॐ गणाध्यक्षाय नमः ॥ॐ उमापुत्रायनमः ॥

ॐ अघनाशनायनमः ॥ॐ कुमारगुरवे नमः ॥ॐईशानपुत्राय नमः ॥ॐमूषकवाहनाय नः ॥

ॐ सिद्धिप्रदाय नमः॥ॐ सिद्धिपतयेनमः ॥ॐसिद्ध्यै नमः ॥ॐ सिद्धिविनायकाय नमः॥

ॐ विघ्नाय नमः ॥ॐ तुङ्गभुजाय नमः ॥ॐसिंहवाहनायनमः ॥ॐ मोहिनीप्रियाय नमः ॥

ॐ कटिंकटाय नमः ॥ॐराजपुत्राय नमः ॥ॐशकलाय नमः ॥ॐ सम्मिताय नमः॥

ॐ अमिताय नमः ॥ॐ कूश्माण्डगणसम्भूताय नमः॥ॐदुर्जयाय नमः ॥ॐ धूर्जयाय नमः ॥

ॐ अजयाय नमः ॥ॐभूपतये नमः ॥ॐ भुवनेशायनमः ॥ॐ भूतानां पतये नमः॥

ॐ अव्ययाय नमः ॥ॐ विश्वकर्त्रे नमः ॥ॐविश्वमुखाय नमः ॥ॐ विश्वरूपाय नमः ॥

ॐ निधये नमः॥ॐ घृणये नमः ॥ॐ कवये नमः ॥ॐकवीनामृषभाय नमः॥

ॐ ब्रह्मण्याय नमः ॥ ॐ ब्रह्मणस्पतये नमः ॥ॐज्येष्ठराजाय नमः ॥ॐ निधिपतये नमः ॥

ॐनिधिप्रियपतिप्रियाय नमः ॥ॐहिरण्मयपुरान्तस्थायनमः ॥ॐ सूर्यमण्डलमध्यगायनमः ॥

ॐकराहतिध्वस्तसिन्धुसलिलाय नमः ॥ॐपूषदन्तभृतेनमः ॥ॐ उमाङ्गकेळिकुतुकिने नमः ॥

ॐ मुक्तिदाय नमः ॥ॐकुलपालकाय नमः ॥ॐ किरीटिने नमः ॥ॐ कुण्डलिने नमः॥

ॐ हारिणे नमः ॥ॐ वनमालिने नमः ॥ॐ मनोमयाय नमः ॥ॐवैमुख्यहतदृश्यश्रियै नमः ॥

ॐ पादाहत्याजितक्षितयेनमः ॥ॐ सद्योजाताय नमः॥ॐ स्वर्णभुजाय नमः ॥

ॐमेखलिन नमः ॥ॐ दुर्निमित्तहृते नमः ॥ॐदुस्स्वप्नहृते नमः ॥ॐ प्रहसनाय नमः ॥

ॐ गुणिनेनमः ॥ॐ नादप्रतिष्ठिताय नमः ॥ॐसुरूपाय नमः ॥ॐसर्वनेत्राधिवासाय नमः ॥

ॐ वीरासनाश्रयाय नमः ॥ॐपीताम्बराय नमः ॥ॐखड्गधराय नमः ॥

ॐखण्डेन्दुकृतशेखराय नमः ॥ॐचित्राङ्कश्यामदशनायनमः ॥ॐ फालचन्द्राय नमः ॥

ॐ चतुर्भुजाय नमः ॥ॐयोगाधिपाय नमः ॥ॐतारकस्थाय नमः ॥ॐ पुरुषाय नमः॥

ॐ गजकर्णकाय नमः ॥ॐ गणाधिराजाय नमः ॥ॐविजयस्थिराय नमः ॥

ॐ गणपतये नमः ॥ॐ ध्वजिने नमः ॥ॐदेवदेवायनमः ॥ॐ स्मरप्राणदीपकाय नमः ॥

ॐ वायुकीलकायनमः ॥ॐ विपश्चिद्वरदाय नमः ॥ॐनादाय नमः ॥

ॐनादभिन्नवलाहकाय नमः ॥ॐ वराहवदनाय नमः॥ॐमृत्युञ्जयाय नमः ॥

ॐ व्याघ्राजिनाम्बराय नमः ॥ॐइच्छाशक्तिधराय नमः॥ॐ देवत्रात्रे नमः ॥

ॐदैत्यविमर्दनाय नमः ॥ॐ शम्भुवक्त्रोद्भवाय नमः

॥ॐ शम्भुकोपघ्ने नमः ॥ॐ शम्भुहास्यभुवे नमः ॥ॐशम्भुतेजसे नमः ॥ॐ शिवाशोकहारिणे नमः ॥

ॐगौरीसुखावहाय नमः ॥ॐ उमाङ्गमलजाय नमः ॥ॐगौरीतेजोभुवे नमः ॥

ॐ स्वर्धुनीभवाय नमः ॥ॐयज्ञकायाय नमः ॥ॐमहानादाय नमः ॥ॐ गिरिवर्ष्मणे नमः ॥

ॐ शुभाननाय नमः ॥ॐ सर्वात्मने नमः ॥ॐसर्वदेवात्मने नमः ॥ॐ ब्रह्ममूर्ध्ने नमः ॥

ॐककुप्छ्रुतये नमः ॥ॐ ब्रह्माण्डकुम्भाय नमः ॥ॐ

चिद्व्योमफालाय नमः ॥ॐ सत्यशिरोरुहाय नमः ॥ॐजगज्जन्मलयोन्मेषनिमेषाय नमः ॥


ॐ अग्न्यर्कसोमदृशेनमः ॥ॐ गिरीन्द्रैकरदाय नमः ॥ॐ धर्माय नमः ॥ॐधर्मिष्ठाय नमः ॥

ॐ सामबृंहिताय नमः ॥ॐग्रहर्क्षदशनाय नमः ॥ॐवाणीजिह्वाय नमः ॥ॐवासवनासिकाय नमः ॥

ॐ कुलाचलांसाय नमः ॥ॐसोमार्कघण्टाय नमः ॥ॐ रुद्रशिरोधराय नमः ॥

ॐनदीनदभुजाय नमः ॥ॐ सर्पाङ्गुळिकाय नमः ॥ॐतारकानखाय नमः ॥

ॐ भ्रूमध्यसंस्थतकराय नमः ॥ॐब्रह्मविद्यामदोत्कटायनमः ॥ ॐ व्योमनाभाय नमः॥

ॐ श्रीहृदयाय नमः ॥ॐ मेरुपृष्ठाय नमः ॥ॐअर्णवोदराय नमः ॥

ॐ कुक्षिस्थयक्षगन्धर्वरक्षःकिन्नरमानुषाय नमः||



उत्तर पूजा - ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . धूपं आघ्रापयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . दीपं दर्शयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . नैवेद्यं निवेदयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . फलाष्टकं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . ताम्बूलं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . कर्पूर नीराजनं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंगल आरतीं समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुष्पांजलिः समर्पयामि

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च |

तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे पदे ..|

प्रदक्षिणा नमस्कारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . समस्त राजोपचारान् समर्पयामि . ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . मंत्र पुष्पं समर्पयामि |

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ |

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा |

प्रार्थनां समर्पयामि |

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनं |

पूजाविधिं न जानामि क्षमस्व पुरुषोत्तम |

क्षमापनं समर्पयामि |

ॐ सिद्धि विनायकाय नमः . पुनरागमनाय च ||

SANTOSH PIDHAULI

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