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वह मुस्करा रहे


चमक रहे हैं उनके चेहरे,

लगे हैं उनके घर के बाहर पहरे,



वह मुस्करा रहे

या अपना खौफ छिपा रहे हैं।उनकी नीयत का आभास नहीं होता पर इधर उधार आंखें नचा रहे हैं



शायद कोई शिकार ढूंढ रहे

या अपने को बचा रहे हैं।उनको फरिश्ता कह नहीं सकते शैतान दिखते नहीं है,

उनकी काली करतूतों के किस्से आम हैं

उनकी टेढ़ी चालें इसकी गवाह है

जिनको जानता है पूरा ज़मानाउनको वह खुद से छिपा रहे हैं।

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SANTOSH PIDHAULI

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