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गुरुकृपा प्राप्त करनेके लिए

गुरुकृपा प्राप्त करनेके लिए
स्वभावदोष-निर्मूलनका अनिवार्य होना !

   गुरुकृपायोगके अनुसार साधनाके मार्गपर अग्रसर होते  समय साधक अष्टांग मार्गसे प्रयत्नरत रहता है । ‘स्वभावदोष-निर्मूलन’ अष्टांगसाधनाका महत्त्वपूर्ण अंग है । इन स्वभावदोषोंके त्यागके बिना साधकके लिए गुरुकृपा तक पहुंचना असंभव है । साधनामें स्वभावदोष-निर्मूलनका महत्त्व निम्नलिखित कथासे ध्यानमें आता है ।

१. एक शिष्यद्वारा अपने गुरुको आत्मसाक्षात्कारका
मार्ग दिखानेकी विनती करना तथा ‘उस मार्गके कठिन होनेसे
उसे  अनेकविध समस्याओंसे जूझना पडता है’, ऐसा गुरुद्वारा बताना

         एक शिष्यने अपने महान गुरुसे विनती की, ‘‘आचार्य, आप मुझे आत्मसाक्षात्कारका पथ दिखाएं !’’ उसपर गुरुने कहा, ‘‘वत्स, आत्मसाक्षात्कारका पथ बडा कठिन होता है । उस पथसे चलनेवाले साधकको अनेकविध समस्याओंसे जूझना पडता है । यदि तुम्हारी उतनी पात्रता है, तो मुझे वह मार्ग बतानेमें कोई आपत्ति नहीं !’’

२. शिष्यद्वारा ‘आत्मासाक्षात्कारके मार्गपर
आनेवाली समस्याओंसे जूझनेकी अपनी पात्रता है’ ऐसा बतानेसे
गुरुद्वारा उसे १ वर्ष एकांतवासमें गायत्रीमंत्रका जाप करनेके लिए कहना

         उसी क्षण उस जिज्ञासु शिष्यने कहा, ‘‘गुरुदेव मार्गमें आई समस्याओंसे लडकर मैं मेरे लक्ष्यकी ओर अग्रसर होऊंगा ।’’ उसपर आचार्य बोले, ‘‘एकांतवासमें जाकर निष्काम भावसे गायत्रीमंत्रका उच्चारण करो । एक वर्ष किसीसे भी बात न करना एवं किसीसे संपर्क न रखना । एक वर्ष पूर्ण होनेपर मुझसे आकर मिलो ।’’ शिष्यने अपने आचार्यकी आज्ञाका पालन किया ।

३.  साधना पूर्ण कर आश्रममें आ रहे अपने शिष्यपर
आचार्यद्वारा एक महरीको झाडूसे धूल छिडकनेके लिए कहना तथा
उसके ऐसा कृत्य करनेपर शिष्यका क्रोधित होकर उसे मारनेके लिए दौडना

         एक वर्ष बीत गया । गुरुने अपनी महरीसे कहा, ‘‘आज हमारा शिष्य हमसे मिलने आएगा । तुम अपने झाडूसे उसपर भरपूर धूल छिडको ।’’ महरीने गुरुकी आज्ञाका पालन किया । धूलसे उस शिष्यकी संपूर्ण देह भर गई । शिष्य क्रोधाग्निमें उस महरीको मारनेके लिए दौड पडा परंतु वह भाग गई ।

४. शिष्यका क्रोधित वर्तन देख, गुरुद्वारा वह ‘सांपसमान काट
रहा है’, ऐसा कहकर उसे और एक वर्ष साधना करनेके लिए कहना

         स्नान कर वह शिष्य अपने गुरुकी सेवा करनेके लिए खडा हो गया । गुरुने कहा, ‘‘वत्स, तुम तो अभी भी सांपोंसमान काट रहे हो । इसलिए वही साधना  एक वर्ष और करो ।’’ इस बातपर साधक मन ही मन कुपित हुआ; परंतु आत्मतत्त्व जाननेकी तीव्र जिज्ञासासे वह पुनः साधना करने लगा । (देखते-देखते ही) उसकी साधनाका दूसरा वर्ष भी पूर्ण हो गया ।

५. साधना पूर्ण कर आश्रममें आ रहे अपने शिष्यके शरीरको
झाडूसे स्पर्श करनेकी गुरुद्वारा महरीको आज्ञा होना तथा सेविकाके
ऐसा करनेपर क्रोधित होकर शिष्यने उसके लिए अपशब्दोंका उच्चारण आरंभ कर देना

         एक वर्ष पूर्ण होनेपर गुरुने अपनी महरीसे कहा, ‘‘आज हमारा शिष्य इस मार्गसे आएगा । तुम उसकी देहको झाडूसे स्पर्श करो । महरीने गुरुकी आज्ञासे शिष्यकी देहको झाडू लगाया । इसलिए शिष्य क्रोधित हो गया । उसने महरीके ऊपर अपशब्दोंका उच्चारण किया एवं वह स्नानके लिए निकल पडा ।

६. शिष्यके क्रोधित होनेसे अब वह सांपसमान काटनेकी
अपेक्षा बताकर एक वर्ष और साधना करनेकी आवश्यकता रहेगी, ऐसा कहना

         स्नान कर वह गुरुके सामने खडा हो गया तथा कह पडा, ‘‘गुरुदेव, अब आत्मसाक्षात्कारका मार्ग बताएं ।’’ गुरुदेवने कहा, ‘‘वत्स, अब तुम सांपसमान काटते नहीं हो, परंतु सांपसमान फुफकार अवश्य फुफकार रहे हो ! इसलिए और एक वर्ष साधना करो ।’’ शिष्य तीसरे वर्षकी साधना करनेके लिए निकल पडा ।

७. गुरुद्वारा सेविकाको साधना पूर्ण कर आश्रम आ रहे
अपने शिष्यके सिरपर गंदगीसे भरी टोकरी खाली करनेकी आज्ञा
मिलना तथा शिष्यका बिना क्रोध किए उसे नमस्कार कर ‘स्वयंके दुर्गुण
नष्ट करनेके लिए वह प्रयत्नरत है’, ऐसा कहकर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना

         तीसरा वर्ष भी पूर्ण हो गया । गुरुने महरीसे (सेविकासे) कहा, ‘‘आज हमारा शिष्य आएगा । तुम उसपर गंदगीसे भरी टोकरी पलट दो । उसने गुरुकी आज्ञाका पालन किया । परंतु इस बार शिष्य क्रोधित नहीं हुआ । वह महरीको (सेविकाको) नमस्कार करते हुए बोला, ‘‘माता, आप महान हो । आप विगत तीन वर्षोंसे मेरे दुर्गुण नष्ट करनेके लिए प्रयत्न कर रही हैं । मैं आपके इन उपकारोंको कदापि नहीं भूल सकूंगा । आप सदैव मेरे उद्धारके लिए प्रयत्नरत रहें ।’’ ऐसा कहकर शिष्य स्नान करनेके लिए चल पडा ।

८. शिष्यद्वारा अपनी साधनाके बलपर दुर्गुणोंसे विजय प्राप्त करनेसे उसका
आत्मसाक्षात्कारके लिए पात्र होना तथा गुरुद्वारा उसे योग्य मार्गदर्श

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