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पूजा मंत्र जप करें

नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है। वसंत की शुरुआत और शरद ऋतु की शुरुआत, जलवायु और सूरज के प्रभावों का महत्वपूर्ण संगम माना जाता है। इन दो समय मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र अवसर माने जाते है। त्योहार की तिथियाँ चंद्र कैलेंडर के अनुसार निर्धारित होती हैं। नवरात्रि पर्व, माँ-दुर्गा की अवधारणा भक्ति और परमात्मा की शक्ति (उदात्त, परम, परम रचनात्मक ऊर्जा) की पूजा का सबसे शुभ और अनोखा अवधि माना जाता है। यह पूजा वैदिक युग से पहले, प्रागैतिहासिक काल से है। ऋषि के वैदिक युग के बाद से, नवरात्रि के दौरान की भक्ति प्रथाओं में से मुख्य रूप गायत्री साधना का हैं।
मां जगदंबा दुर्गा देवी जो ममतामयी मां अपने पुत्रों की इच्छा पूर्ण करती है, ऐसी देवी मां का पूजन संक्षिप्त में प्रस्तुत है। 

सबसे पहले आसन पर बैठकर जल से तीन बार शुद्ध जल से आचमन करे- ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: फिर हाथ में जल लेकर हाथ धो लें। हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुरि बांध कर दुर्गा देवी का ध्यान करें। 

आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव।

यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।।

'श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:।' दुर्गादेवी-आवाहयामि! - फूल, चावल चढ़ाएं।

'श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:' आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि।- भगवती को आसन दें।

श्री दुर्गादेव्यै नम: पाद्यम, अर्ध्य, आचमन, स्नानार्थ जलं समर्पयामि। - आचमन ग्रहण करें।

श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि - दूध चढ़ाएं।

श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि - दही चढा़एं।

श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि - घी चढ़ाएं।

श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि - शहद चढा़एं

श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि - शक्कर चढा़एं।

श्री दुर्गा देवी पंचामृत समर्पयामि - पंचामृत चढ़ाएं।

श्री दुर्गा देवी गंधोदक समर्पयामि - गंध चढाएं।

श्री दुर्गा देवी शुद्धोदक स्नानम समर्पयामि - जल चढा़एं।

आचमन के लिए जल लें,

श्री दुर्गा देवी वस्त्रम समर्पयामि - वस्त्र, उपवस्त्र चढ़ाएं।

श्री दुर्गा देवी सौभाग्य सूत्रम् समर्पयामि-सौभाग्य-सूत्र चढाएं।

श्री दुर्गा-देव्यै पुष्पमालाम समर्पयामि-फूल, फूलमाला, बिल्व पत्र, दुर्वा चढ़ाएं।

श्री दुर्गा-देव्यै नैवेद्यम निवेदयामि-इसके बाद हाथ धोकर भगवती को भोग लगाएं।

श्री दुर्गा देव्यै फलम समर्पयामि- फल चढ़ाएं।

तांबुल (सुपारी, लौंग, इलायची) चढ़ाएं- श्री दुर्गा-देव्यै ताम्बूलं समर्पयामि।

मां दुर्गा देवी की आरती करें।

यही देवी पूजा की संक्षिप्त विधि है।
पलंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा और बताए अनुसार चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुँचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी, तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए और प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी ने प्रकट हो, हाथ पकड़कर कहा- राम मैं प्रसन्न हूँ और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'करिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।

इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने एक भैंस रूपी असुर अर्थात महिषासुर का वध किया था। 
पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से बाध्य होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। उसको वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता हुई कि वह अब अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करेगा। और प्रत्याशित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस कृत्य को देख देवता विस्मय की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए हैं और स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के प्रकोप से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ रहा है।
[2] तब महिषासुर के इस दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा के निर्माण में सारे देवताओं का एक समान बल लगाया गया था। महिषासुर का नाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र देवी दुर्गा को दिए थे और कहा जाता है कि इन देवताओं के सम्मिलित प्रयास से देवी दुर्गा और बलवान हो गईं थी। इन नौ दिन देवी-महिषासुर संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर-वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।

चौमासे में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं। क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है। अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय 'विजयकाल' रहता है।[क] यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण नक्षत्रयुक्त सूर्योदयव्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है। दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। क्षत्रिय/राजपूतों इस दिन प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं।[ख] इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।[5] नवरात्रि के दौरान कुछ भक्तों उपवास और प्रार्थना, स्वास्थ्य और समृद्धि के संरक्षण के लिए रखते हैं। भक्त इस व्रत के समय मांस, शराब, अनाज, गेहूं और प्याज नही खाते। नवरात्रि और मौसमी परिवर्तन के काल के दौरान अनाज आम तौर पर परहेज कर दिया जाते है क्योंकि मानते है कि अनाज नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता हैं। नवरात्रि आत्मनिरीक्षण और शुद्धि का अवधि है और पारंपरिक रूप से नए उद्यम शुरू करने के लिए एक शुभ और धार्मिक समय है।

सायरी वो भी लव सायरी (हिन्दी)









जिसे समुझते थे हम अपनी ज़िन्दगी की तरहां
वो आशना भी मिला है अजनबी की तरहां

बोहोत ही टूट के चाहा था ये खियाल न था
की दोस्ती भी करेगा वो अजनबी की तरहां
हमें तू पियर के बदले में गम नसीब होगा
मिली न हम


को ख़ुशी भी कभी ख़ुशी की तरहां
कभी अकेले में बैठों तो गुन गुनाऊ तुझे
के आये मेरे लबों पे तू सायरी की तरहां


एक चिडिया को एक सफ़ेद 
गुलाब से प्यार हो गया , 
उसने गुलाब को प्रपोस किया ,
गुलाब ने जवाब दिया की जिस दिन मै लाल हो जाऊंगा उस दिन मै तुमसे प्यार करूँगा ,





जवाब सुनके चिडिया गुलाब के आस पास काँटों में लोटने लगी और उसके खून से गुलाब लाल हो गया,
ये देखके गुलाब ने भी उससे कहा की वो उससे प्यार करता है पर तब तक चिडिया मर चुकी थी







तु मेरे गलियो मे आया है दिवानो की तरह
मै चला जाऊंगा कही और बहानो की तरह
अईसे ना देख तु हमके हम दिवाना हईँ-2
कहीलेँ खाके किरीया हम परवाना हईँ-2
हम त मर जाईब अब ईहवा लाशो की तरह
तु मेरे गलियो मे आया है दिवानो कि तरह
अईसे ना पलक झुकावऽ
रम के मारे-2
केतना करेलू तु प्यार हमे बता दे-2
हम पर भी बरस जा तु बरसातो की तरह
तु मेरे गलियो मे आया है दिवानो कि तरह
काहे मिलेलू तु हमसे अनजान
बनके-2
आवऽ न पास तु हमरा,हमार जान बनके-2
दिल से हेराईल मुकेश के पहचानोगे किधर
तु मेरे गलियो मे आया है दिवानो कि तर

1. तहार मुस्कान हमार कमजोरी बा
कह ना पावल हमार मजबुरी बा
तु काहे ना समझेलू हमार चुप रहल,
का चुप्प रहला के जुबान दिरुरी बा ।

2.हम के मत कहऽ शेर सुनावे खातिर
आपन दिल चीर के दिखावे खातिर
हम त सायरी करीना
,
खाली आपन दर्द मिटावे खातिर
3.तु करीब ना अईलू त ईजहार का करती
खुद बन गईनी शिकार त शिकार का करती
मर गईनी पर खुलले रहे आँख
,
एकरा से ज्यादा तहार इंतजार का करती
4.हर दिल क एगो राज होला
हर बात क एगो अंदाज होला
जब तक ना लागे बेवफाई के ठोकर
,
हर केहू के अपना पसंद पर नाज होला ।
5.खुशी क एगो संसार लेके आईब
पतझङ मे भी बहार लेके आईब
जब भी बोलईबू प्यार से
,
मौत से भी सांस उधार लेके आईब





गोकुल यमुना घाट


“कल रात आखो में एक आँसू आया 
में ने उसे पूछा तू बहार क्यों बहार आया ? 
तो उसने बोला की कोई मेरे आखो पे इतना है समाया की 
में चाह कर भी आपनी जगह बना नही पाया ““कोई कहे मोहब्बत की किरदार से 
प्यार वो साया है जो मिलता नही है हजारो से 
हम तो पहेले ही जले बैठे महोबत में क्यों डरते है 
देहेकते आन्गारू से “ 
“कसीस दिल की हर चीज सिखा देती है
बंद आखो में सपना सज देती है 
सपनों की दुनिया जरूर सजाकर रखना 
क्यों की हकीकत तो एक दिन सब को रुला देती है “ “आपनो ने हमें जेहेरका जम दे दिया 
प्यार को बेवफाई का नाम दे दिया 
जो कहेते थे भूल ना जाना 
उन्हों ने तो भूल जाने का पैगाम दे दिया “ “अपनों से नाता तोड़ देते है

रिश्ता गिरो से जोड़ लेते है 
बहो में रहेकर किसी की वो 
हमसे वफ़ा का इकरार करते है 
ये कैसे चाहत है ये जानकर भी 
pujaसे प्यार करते है “




कहने को कह गए कई ……………..
कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से
न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से
शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से
दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से
माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से
मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता सरकती गई हयात ख़ामोशी से



कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से
न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से
शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से



दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से
माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से
मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता सरकती गई हयात ख़ामोशी से


जय माँ दुर्गा आरती

                        जय माँ दुर्गा आरती

जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥

गुरुकृपा प्राप्त करनेके लिए

गुरुकृपा प्राप्त करनेके लिए
स्वभावदोष-निर्मूलनका अनिवार्य होना !

   गुरुकृपायोगके अनुसार साधनाके मार्गपर अग्रसर होते  समय साधक अष्टांग मार्गसे प्रयत्नरत रहता है । ‘स्वभावदोष-निर्मूलन’ अष्टांगसाधनाका महत्त्वपूर्ण अंग है । इन स्वभावदोषोंके त्यागके बिना साधकके लिए गुरुकृपा तक पहुंचना असंभव है । साधनामें स्वभावदोष-निर्मूलनका महत्त्व निम्नलिखित कथासे ध्यानमें आता है ।

१. एक शिष्यद्वारा अपने गुरुको आत्मसाक्षात्कारका
मार्ग दिखानेकी विनती करना तथा ‘उस मार्गके कठिन होनेसे
उसे  अनेकविध समस्याओंसे जूझना पडता है’, ऐसा गुरुद्वारा बताना

         एक शिष्यने अपने महान गुरुसे विनती की, ‘‘आचार्य, आप मुझे आत्मसाक्षात्कारका पथ दिखाएं !’’ उसपर गुरुने कहा, ‘‘वत्स, आत्मसाक्षात्कारका पथ बडा कठिन होता है । उस पथसे चलनेवाले साधकको अनेकविध समस्याओंसे जूझना पडता है । यदि तुम्हारी उतनी पात्रता है, तो मुझे वह मार्ग बतानेमें कोई आपत्ति नहीं !’’

२. शिष्यद्वारा ‘आत्मासाक्षात्कारके मार्गपर
आनेवाली समस्याओंसे जूझनेकी अपनी पात्रता है’ ऐसा बतानेसे
गुरुद्वारा उसे १ वर्ष एकांतवासमें गायत्रीमंत्रका जाप करनेके लिए कहना

         उसी क्षण उस जिज्ञासु शिष्यने कहा, ‘‘गुरुदेव मार्गमें आई समस्याओंसे लडकर मैं मेरे लक्ष्यकी ओर अग्रसर होऊंगा ।’’ उसपर आचार्य बोले, ‘‘एकांतवासमें जाकर निष्काम भावसे गायत्रीमंत्रका उच्चारण करो । एक वर्ष किसीसे भी बात न करना एवं किसीसे संपर्क न रखना । एक वर्ष पूर्ण होनेपर मुझसे आकर मिलो ।’’ शिष्यने अपने आचार्यकी आज्ञाका पालन किया ।

३.  साधना पूर्ण कर आश्रममें आ रहे अपने शिष्यपर
आचार्यद्वारा एक महरीको झाडूसे धूल छिडकनेके लिए कहना तथा
उसके ऐसा कृत्य करनेपर शिष्यका क्रोधित होकर उसे मारनेके लिए दौडना

         एक वर्ष बीत गया । गुरुने अपनी महरीसे कहा, ‘‘आज हमारा शिष्य हमसे मिलने आएगा । तुम अपने झाडूसे उसपर भरपूर धूल छिडको ।’’ महरीने गुरुकी आज्ञाका पालन किया । धूलसे उस शिष्यकी संपूर्ण देह भर गई । शिष्य क्रोधाग्निमें उस महरीको मारनेके लिए दौड पडा परंतु वह भाग गई ।

४. शिष्यका क्रोधित वर्तन देख, गुरुद्वारा वह ‘सांपसमान काट
रहा है’, ऐसा कहकर उसे और एक वर्ष साधना करनेके लिए कहना

         स्नान कर वह शिष्य अपने गुरुकी सेवा करनेके लिए खडा हो गया । गुरुने कहा, ‘‘वत्स, तुम तो अभी भी सांपोंसमान काट रहे हो । इसलिए वही साधना  एक वर्ष और करो ।’’ इस बातपर साधक मन ही मन कुपित हुआ; परंतु आत्मतत्त्व जाननेकी तीव्र जिज्ञासासे वह पुनः साधना करने लगा । (देखते-देखते ही) उसकी साधनाका दूसरा वर्ष भी पूर्ण हो गया ।

५. साधना पूर्ण कर आश्रममें आ रहे अपने शिष्यके शरीरको
झाडूसे स्पर्श करनेकी गुरुद्वारा महरीको आज्ञा होना तथा सेविकाके
ऐसा करनेपर क्रोधित होकर शिष्यने उसके लिए अपशब्दोंका उच्चारण आरंभ कर देना

         एक वर्ष पूर्ण होनेपर गुरुने अपनी महरीसे कहा, ‘‘आज हमारा शिष्य इस मार्गसे आएगा । तुम उसकी देहको झाडूसे स्पर्श करो । महरीने गुरुकी आज्ञासे शिष्यकी देहको झाडू लगाया । इसलिए शिष्य क्रोधित हो गया । उसने महरीके ऊपर अपशब्दोंका उच्चारण किया एवं वह स्नानके लिए निकल पडा ।

६. शिष्यके क्रोधित होनेसे अब वह सांपसमान काटनेकी
अपेक्षा बताकर एक वर्ष और साधना करनेकी आवश्यकता रहेगी, ऐसा कहना

         स्नान कर वह गुरुके सामने खडा हो गया तथा कह पडा, ‘‘गुरुदेव, अब आत्मसाक्षात्कारका मार्ग बताएं ।’’ गुरुदेवने कहा, ‘‘वत्स, अब तुम सांपसमान काटते नहीं हो, परंतु सांपसमान फुफकार अवश्य फुफकार रहे हो ! इसलिए और एक वर्ष साधना करो ।’’ शिष्य तीसरे वर्षकी साधना करनेके लिए निकल पडा ।

७. गुरुद्वारा सेविकाको साधना पूर्ण कर आश्रम आ रहे
अपने शिष्यके सिरपर गंदगीसे भरी टोकरी खाली करनेकी आज्ञा
मिलना तथा शिष्यका बिना क्रोध किए उसे नमस्कार कर ‘स्वयंके दुर्गुण
नष्ट करनेके लिए वह प्रयत्नरत है’, ऐसा कहकर उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना

         तीसरा वर्ष भी पूर्ण हो गया । गुरुने महरीसे (सेविकासे) कहा, ‘‘आज हमारा शिष्य आएगा । तुम उसपर गंदगीसे भरी टोकरी पलट दो । उसने गुरुकी आज्ञाका पालन किया । परंतु इस बार शिष्य क्रोधित नहीं हुआ । वह महरीको (सेविकाको) नमस्कार करते हुए बोला, ‘‘माता, आप महान हो । आप विगत तीन वर्षोंसे मेरे दुर्गुण नष्ट करनेके लिए प्रयत्न कर रही हैं । मैं आपके इन उपकारोंको कदापि नहीं भूल सकूंगा । आप सदैव मेरे उद्धारके लिए प्रयत्नरत रहें ।’’ ऐसा कहकर शिष्य स्नान करनेके लिए चल पडा ।

८. शिष्यद्वारा अपनी साधनाके बलपर दुर्गुणोंसे विजय प्राप्त करनेसे उसका
आत्मसाक्षात्कारके लिए पात्र होना तथा गुरुद्वारा उसे योग्य मार्गदर्श

चित्र/मूर्तियां विसर्जित कर

देवताओंके अवांछित चित्र/मूर्तियां विसर्जित करें !

देवताओंकी अवांछित मूर्तियां/चित्र मंदिरोंमें/वृक्षके नीचे अस्त-व्यस्त रखनेसे वे जीर्ण हो जाते हैं, जिससे देवताओंका निरादर होता है । अतएव धर्मशास्त्र (संदर्भग्रंथ : धर्मसिन्धु) के अनुसार देवताओंके ऐसे चित्र अग्निमें समर्पित करें एवं मूर्ति जलमें प्रवाहित करें ।
हिंदुओ, इस विषयमें अन्योंका भी प्रबोधन कर धर्मकर्तव्य निभाएं !

सायरी

"आँखों से दूर दिल के करीब था,
में उस का वो मेरा नसीब था.
न कभी मिला न जुदा हुआ,
रिश्ता हम दोनों का कितना अजीब था."

आज हम मिलने दिल से गया था पर

"मां दुर्गा,

"मां दुर्गा,
मां अम्बे,
मां जगदम्बा,
मां भवानी,
मां शीतला,
मां वैष्णों,
मां चंडी,
माता रानी आपकी सभी मनोकामनायें पूरी करे,
जय माता दी."

"मां कि ज्योति से प्रेम मिलता है,
सबके दिलों को मरहम मिलता है,
जो भी जाता है मां के द्वार,
कुछ ना कुछ जरूर मिलता है,
शुभ नवरात्री."

"प्यार का तराना उपहार हो,
खुशियों का नजराना बेशुमार हो, ना रहे कोई गम का एहसास,
ऐसा नवरात्री उत्सव का साल हो, शुभ नवरात्री."

"बाजरे की रोटी,आम का अचार,
सूरज की किरणें,
खुशियों की बहार
चंदा की चांदनी,
आपनों का प्यार
मुबारक हो आपको नवरात्री का त्यौहार."

"लक्ष्मी का हाथ हो
सरस्वती का साथ हो
गणेश का निवास हो
और मां दुर्गा के आशीर्वाद से
आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो…
’शुभ नवरात्र ’"

श्री हनुमान चालीसा.

Santosh Kumar

श्री हनुमान चालीसा.. . .
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।। बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।। .

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।। रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।। महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी ।। कंचन बरन विराज सुवेसा कानन कुण्डल कुंचित केसा ।। हाथ वज्र ध्वजा विराजै कांधे मूंज जनेऊ साजै ।। शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जगवन्दन ।। विघावान गुणी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर ।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया ।। सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा विकट रुप धरि लंक जरावा ।। भीम रुप धरि असुर संहारे रामचन्द्रजी के काज संवारे ।। लाय संजीवन लखन जियाये श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।। रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।। सहस बदन तुम्हरो यश गावै अस कहि श्री पति कंठ लगावै ।। सनकादिक ब्रहादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ।। यह कुबेर दिकपाल जहां ते कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राजपद दीन्हा ।। तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना ।। जुग सहस्त्र योजन पर भानू लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ।। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।। दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।। राम दुआरे तुम रखवारे होत आज्ञा बिनु पैसारे ।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ।। आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हांक ते कांपै ।। भूत पिशाच निकट नहिं आवै महाबीर जब नाम सुनावै ।। नासै रोग हरै सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।। संकट ते हनुमान छुड़ावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।। सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ।। और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ।। चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्घ जगत उजियारा ।। साधु सन्त के तुम रखवारे असुर निकन्दन राम दुलारे ।। अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता अस वर दीन जानकी माता ।। राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ।। तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै ।। अन्तकाल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।। और देवता चित्त धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई ।। संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।। जय जय जय हनुमान गुसांई कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।। जो शत बार पाठ कर सोई छूटहिं बंदि महासुख होई ।। जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्घि साखी गौरीसा ।। तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।। . . ।।
 दोहा ।। .
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।। 

SANTOSH PIDHAULI

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