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जिउतीया व्रत कथा

जिउतीया व्रत कथा --
एह व्रत मे एगो चिल्हो सियारो के प्रचलित कथा सुनल जाला जवन ए तरह से बा ..
एगो बन मे सेमर के गाछ पर एगो चिल्हो (चील)राहत रहनी और ओकारे पास झाडी मे एगो सियारिन रहत रहे ..दुनु मे खुब पटत रहे ..चिल्हो जवन कुछ खाए के लेआवे ओमे से सियारिन के भी हिस्सा देवे और सियारिन भी चिल्हो के खुब खयाल राखत रहे ए तरह दुनु के जीवन निक से कटत रहे ,
एक् बार बन के पास गांव मे मेहरारू लोग जिउतीया के पूजा के तैयारी करत रहे लोग उ सब चिल्हो बडा ध्यान से देख्ली और उनका अपना पिछला जनम के कुल इयाद पड गईल तब सियारो और चिल्हो दुनु जाना जिउतिया भुखे के विचार कईलस लोग ,बडा निष्ठा और लगन से दुनु जाना दिनभर भुखे पियासे मंगल कामना करत भूखल रहे लोग .मगर रात होते सियारिन के भूख पियास लागे लागल और जब बर्दास्त ना भईल त जंगल मे जाके मांस और हड्डी खाए लागल चिल्हो के हड्डी खाय के कड कड आवाज आवे लागल तू उ पुछ्ली की "बहिन "तू का करतारू त सियारिन कहलि की बहिन भूख के मारे पेट कड़कडा रहल बा.. मगर चिल्हो के पता लाग गईल तब सियारिन के खुब लताडली की जब तोसे ब्रत ना निबाहे के रहल त पहिलाही कह देतू..सियारीन लजा गईली .चिल्हो रात भर भुखे पियासे ब्रत पूरा कईली ..


एकर परिणाम ई भईल की चील्हो के कुल सन्तान दीर्घायु सुखी और सम्पान भईलन और सियारिन के एक् एक् कर के कुल संतान खतम हो गईल .......
एसे कुल माइ लोग ईहे कामना करेला की सब चील्हो के तरह होखो सियारिन के जैसन ना ....
ई पर्व के व्रतविश्वास से जब पुत्र के प्राप्ति होला त लोककथा में दिहल गईल संकेत के अनुसार ओकर नाव "जीउत"रखाला
पुराण में जीवत्पुत्रिका व्रत की कथा के साथ जो जीमूत वाहन की कथा के भी जिक्र होला वह क पौराणिक जीमूतवाहन नाग कुल के रक्षा खातिर आपन देह के त्याग कईले रहलन ,

कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर माता पार्वती के कथा सुनावत कहेलन कि आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रख के जे माता सायं प्रदोषकालमें जीमूतवाहन के पूजा करेनी और कथा सुने के बाद आचार्य के दक्षिणा देनी ऊ पुत्र-पौत्र के पूर्ण सुख प्राप्त करेनी व्रत के पारण दोसरका दिने अष्टमी तिथि के समाप्ति के पश्चात कईल जाला ई व्रत अपने नाम के अनुरूप फल देवे वाला व्रत हवे ...... भगवान सबके मंगल कामना पूर्ण करस ...

हिन्दुओ का एक पर्व है जिसे "जितिया" अथवा "जियुतिया" भी कहते है , ज़रूरी नहीं की आपको इसके बारे में पता हो क्यूकी ये पर्व कुछ क्षेत्रो में ही मनाया जाता है . पर मै आपको इसके बारे में कुछ जानकारी देना चाहूँगा . ये पर्व एक माँ अपनी संतान की लम्बी उम्र के लिए करती है . इस दिन माएं अन्न अथवा जल की एक बूँद भी अपने मुख में नहीं जाने देती अर्थात निर्जला व्रत करती हैं . इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में कई कथाये प्रचलित है जिनमे से एक के बारे में मै कुछ बताना चाहूँगा .

"एक बार पार्वती जी ने एक स्त्री को रोते हुए देखा , इससे व्यथित होकर उन्होंने भगवान शिव शंकर जी से पूछा की ये महिला क्यों विलाप कर रही है ?

यह सुनकर भगवन शंकर ने बताया की उस स्त्री का पुत्र कम आयु में ही चल बसा था. यह सुनकर माँ पार्वती ने भोलेनाथ से पूछा की "हे स्वामी एक माँ द्वारा अपने पुत्र की मृत्यु देखना सबसे कष्टकर स्थिति है. आप कृपा कर कोई ऐसा तरीका बताये जिससे माँ अपने पुत्रो की लम्बी आयु देख सके. यह सुनकर भगवान् शिव शंकर ने बताया की जो माँ जितिया का व्रत करेगी उसका पुत्र दीर्घायु होगा . इस प्रकार सभी माएं जितिया का व्रत करने लगी " 

ऐसा नहीं की ये एकमात्र कथा है . इसके अलावा "चूली सियार" , "भगवान् जियुत" आदि की कथाये भी है . हिन्दुओ के पर्वो की यह भी एक विशेषता है की किसी पर्व का इतिहास खोजने जाओ तो कई कहानियां मिलेंगी , आप स्वतंत्र होकर किसी एक को मान सकते है या फिर निर्बोध भाव से बस उस पर्व त्यौहार का मज़ा ले सकते है . 

खैर मै बात कर रहा था जितिया पर्व के बारे में . मुझे यह देख एक मिश्रित अनुभव होता है जिसमे एक तरफ तो एक माँ द्वारा अपनी संतानों के लिए दिन भर निर्जल व्रत करने की बात पर मुझे आश्चर्य होता है तो दूसरी तरफ यह देख मन हर माँ के लिए आदर से भर उठता है. बात यह नहीं की आप दिनभर कुछ खाते पीते नहीं इसलिए बल्कि इसके पीछे के छुपे ममता भरे भाव देख मन भाव विभोर हो उठता है .

और यह बात सिर्फ किसी एक धर्म से जुडी नहीं बल्कि मेरी नज़र जहां तक जाती है हर धर्म में माँ को इश्वर तुल्य स्थान दिया गया है . कहते भी है की भगवान् सब जगह नहीं हो सकते थे इसीलिए उन्होंने माँ बनायीं. माँ वो है जो निः स्वार्थ प्रेम की सरिता है , माँ वो है जो हमे भगवान् के हर रूप से मिला सकती है . अगर हमारी गलतियों पर हमे डाटती है तो उसके पीछे भी यही भाव होता है की हम सही पथ से भटके नहीं और गलत राह जाकर दुःख के भागी ना बने. हमे वो इस दुनिया का पहला परिचय देती है. डांट कर या प्यार से हमे सदा सही राह दिखाती है. हमारे दुःख के क्षणों में भागी और सुख के क्षणों में सहभागी बनकर हर कदम हमारा साथ निभाती है. वो हमसे हमारे लिए ही लड़ती भी है .

"सचमुच माँ ,माँ होतीहै " 

और यही देख मुझे "नीदा फाजली" का एक बड़ा मशहूर शेर याद आता है जिसके साथ मै आज की बाते ख़त्म करना चाहूंगा जो माँ और बेटे के बीच के अनूठे बंधन को दर्शाता है: 

"मै रोया परदेस में , भीगा माँ का प्यार

दिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिन तार"
Vikas Mishra जी लिखे हे 

श्री हनुमान चालीसा.

Santosh Kumar

श्री हनुमान चालीसा.. . .
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।। बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।। .

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।। रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।। महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी ।। कंचन बरन विराज सुवेसा कानन कुण्डल कुंचित केसा ।। हाथ वज्र ध्वजा विराजै कांधे मूंज जनेऊ साजै ।। शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जगवन्दन ।। विघावान गुणी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर ।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया ।। सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा विकट रुप धरि लंक जरावा ।। भीम रुप धरि असुर संहारे रामचन्द्रजी के काज संवारे ।। लाय संजीवन लखन जियाये श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।। रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।। सहस बदन तुम्हरो यश गावै अस कहि श्री पति कंठ लगावै ।। सनकादिक ब्रहादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ।। यह कुबेर दिकपाल जहां ते कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राजपद दीन्हा ।। तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना ।। जुग सहस्त्र योजन पर भानू लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ।। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।। दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।। राम दुआरे तुम रखवारे होत आज्ञा बिनु पैसारे ।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ।। आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हांक ते कांपै ।। भूत पिशाच निकट नहिं आवै महाबीर जब नाम सुनावै ।। नासै रोग हरै सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।। संकट ते हनुमान छुड़ावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।। सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ।। और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ।। चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्घ जगत उजियारा ।। साधु सन्त के तुम रखवारे असुर निकन्दन राम दुलारे ।। अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता अस वर दीन जानकी माता ।। राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ।। तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै ।। अन्तकाल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।। और देवता चित्त धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई ।। संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।। जय जय जय हनुमान गुसांई कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।। जो शत बार पाठ कर सोई छूटहिं बंदि महासुख होई ।। जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्घि साखी गौरीसा ।। तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।। . . ।।
 दोहा ।। .
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।। 

SANTOSH PIDHAULI

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