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मैथिल ब्राह्मण

मैथिल ब्राह्मणों का नाम मिथिला के नाम पर पड़ा है। मिथिला के ब्राह्मणो को मैथिल ब्राह्मण कहा जाता है |
 मिथिला भारत का प्राचीन प्रदेश है |
जिसमे बिहार का तिरहुत, सारन तथा पूर्णिया के आधुनिक ज़िलों का एक बड़ा भाग और नेपाल से सटे प्रदेशों के भाग भी शामिल हैं। जनकपुर , दरभंगा और मधुबनी मैथिल ब्राह्मणो का प्रमुख सांस्कृत केंन्द्र है |
मैथिल ब्राह्मण बिहार , नेपाल , ब्रज उत्तर प्रदेश व झारखण्ड के देवघर मे अधिक है |
 पंच गौड़ ब्राह्मणो के अंतर्गत मैथिल ब्राह्मण , कान्यकुब्ज_ब्राह्मण, सारस्वत ब्राह्मण , गौड़ ब्राह्मण , उत्कल ब्राह्मण है |

ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण
ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण वे ब्राह्मण हैं जो गयासुद्दीन तुग़लक़ से लेकर अकबर के शासन काल तक तिरहुत (मिथिला) से तत्कलीन भारत की राजधानी आगरा मे बसे तथा समयोपरान्त केन्द्रीय ब्रज के तीन जिलो मे औरङ्जेब के कुशासन से प्रताडित होकर बस गये। ब्रज मे पाये जाने वाले मैथिल ब्राह्मण उसी समय से ब्रज मे प्रवास कर रहे है। जो कि मिथिला के गणमान्य विद्वानो द्वारा शोधोपरान्त ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मणो के नाम से ज्ञात हुए। ये ब्राह्मण ब्रज के आगरा, अलीगद, मथुरा और हाथरस मे प्रमुख रूप से रहते है। यहा से भी प्रवासित होकर यह दिल्ली, अजमेर्, जयपुर, जोधपुर्, बीकानेर्, बडौदरा, दाहौद्, लख्ननऊ, कानपुर आदि स्थानो पर रह रहे है। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने मिथिला सहित सम्पूर्ण भारत पर अपने शासन काल में अत्याचार किया इसके अत्याचार से पीड़ित होकर बहुत से मिथिलावासी ब्राह्मण मिथिला से पलायन कर अन्य प्रदेशों में बस गए ब्रिज प्रदेश में रहने वाले मैथिलों व मिथिलावासी मैथिलों का आवागमन भी बंद हो गया ऐसा १६५८ ई० से लेकर १८५७ की क्रान्ति तक चलता रहा . १८५७ ई० के बाद भारतीय समाज सुधारकों ने एक आजाद भारत का सपना देखा था मिथिला के ब्राह्मण समाज भी आजाद भारत का सपना देखने लगे 'स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती ने ठीक इसी समय जाती उत्थान की आवाज को बुलंद किया उन्होंने जाती उत्थान के लिए सम्पूर्ण भारत में बसे मिथिला वासियों से संपर्क किया जिसका परिणाम यह हुआ की औरंगज़ेब के समय में मिथिलावासी और प्रवासी मैथिल ब्राह्मणों के जो सम्बन्ध टूट गए थे वह फिर से चालु हो गए उन्ही के प्रयासों से अलीगढ के मैथिल ब्राह्मणों का मिथिला जाना और मिथिलावासियों का अलीगढ आना संभव हुआ इसी समय स्वामी जी ने मिथिला से लौटकर अलीगढ में मैथिल सिद्धांत सभा का आयोजन किया सिद्धांत सभा के कार्यकर्ताओं और मिथिलावासी रुना झा द्वारा १८८२ से १८८६ के बीच पत्र व्यवहार आरम्भ हुआ
पंजी व्यवस्था
मैथिल ब्राह्मणो मे पंजी व्यवस्था है जो मैथिल ब्राह्मणो और मैथिल कायस्थो कि वंशावली लिखित रूप से रखती है आज कल यह प्रथा समाप्त हो रही है |
मैथिल ब्राह्मणो के उपनाम व वयवस्था
झा , मिश्र , पाठक ,औझा , शर्मा , चौधरी , ठाकुर , राँय , परिहस्त , कुंवर है | जिसमे से कुंवर , चौधरी , ठाकुर मिथिला देश मे ब्राह्मणो ( मैथिल और भूमिहार ) के अलावा कोई अन्य नही प्रयुक्त करता है | ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण शर्मा उपनाम प्रयोग करते है | झा और मिश्र (अथवा मिश्रा) मैथिल ब्राह्मणो के सबसे अधिक प्रयोग मे लाये जाने वाले उपनाम हैं | झा सिर्फ मैथिल ब्राह्मणो का उपनाम है |

सभी मैथिल ब्राह्मण चार वर्ग मे बटे है १- श्रोत्रिय , २- योग्य , ३- पंजी , ४- जयवार ईसम उपर वाला वर्ग नीचे वाले वर्ग की कन्या से विवाह करता है एैसा ईसलिये क्योकि मिथिला के राजा ने प्राचीनकाल मे गायत्री संध्या वंदन मे ब्राह्मणो को बुलाया दिन के चार प्रमुख पहरो मे ब्राह्मण पहुंचे तभी से एैसी व्यवस्था चली आरही है | पंजी व्यवस्था मिथिला के राजा के आदेश पर शुरू हुयी | यह दोनो ही प्रथाये आजकल समाप्त हो रही है |
मैथिल ब्राह्मणो के साथ साथ अन्य प्रमुख ब्राह्मण समुदाय कान्यकुब्ज ब्राह्मण , भूमिहार ब्राह्मण भी मिथिला मे है मैथिल ब्राह्मण जनकपुर मिथिला देश मे है |
सन्दर्भ

मैथिल ब्राह्मणो की पंजी व्यवस्था लेखक पं गजेन्द्र ठाकुर

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