जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई। शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी। वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये। वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है, वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
करवा चौथ 2017 पूजा
इस बार करवाचौथ 8 अक्टूबर को है. इस दिन के महिलाएं अपने पति के लिए व्रत करेंगी. देश में कहीं कहीं शादी से पहले भी व्रत करने की प्रथा होती है. कहा जाता है कुंवारी लड़की अच्छे लड़के मिलने के लिए व्रत करती हैं. इस बार महिलाओं के पास पूजा करने के लिए 8 अक्टूबर को 1 घंटे और 14 मिनट का समय है.
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करवा चौथ मूर्हूत
करवा चौथ पूजा का समय शाम 5:54 pm पर शुरू होगा.
शाम 7:09 pm पर करवा चौथ पूजा करने का समय खत्म होगा.
करवा चौथ 2017 चंद्रोदय का समय
करवाचौथ पर महिलाएं चंद्रमा की पूजा करती हैं. इस दिन महिलाएं बिना चंद्रमा के पूजा संपन्न कर अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं. कहा जाता है कि चाँद देखे बिना व्रत अधूरा रहता है. जबतक चांद की पूजा के कोई महिला न कुछ भी खा सकती हैं और न पानी पी सकती हैं.
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चंद्रमा की पूजा के दौरान महिलाओं को एक घेरा बनाकर बैठती हैं और फिर एक महिला 7 बार फेरी लगाकर एक-दूसरे से थाली बदलती हैं. इस फेरी के दौरान गीत गाएं जाते हैं. महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु की कामना करती जाती हैं और थाली को 7 बार फेरती जाती हैं.
इस दिन चंद्रोदय का समय शाम 08:11 pm होगा.
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