श्री संतोष कुमार झा मैथिल ब्राह्मण
मुबाईल नः +918800716745
सरिता विहार न्यू दिल्ली 110076
श्री गणेश नमः
जन्म कुन्डली बनाते हे शादी उपनयन संस्कार पुजा पाठ कथा समप्रक करे
फ़ॉलोअर
नवरात्रि 2018
नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है। मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा व उपवास किया जाता है। दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात उपवास खोला जाता है। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है।
10 अक्टूबर (बुधवार) 2018 : घट स्थापन व मां शैलपुत्री पूजा, मां ब्रह्मचारिणी पूजा 11 अक्टूबर (बृहस्पतिवार ) 2018 : मां चंद्रघंटा पूजा 12 अक्टूबर (शुक्रवार ) 2018 : मां कुष्मांडा पूजा 13 अक्टूबर (शनिवार) 2018 : मां स्कंदमाता पूजा
हवन सामग्री का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से माना जाता है कि यह अनेक प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं और विषाणुओं से हमें बचाती है। बशर्ते इस हवन सामाग्री में मिश्रित जड़ी-बूटियां शुद्ध हों और सही अनुपात में हों। यह बात गुरुवार को राजभवन आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्साधिकारी वैद्य शिव शंकर त्रिपाठी ने बताईं।
प्रभारी चिकित्साधिकारी ने बताया कि हजारों वर्षों से पूजा एवं यज्ञ आदि में हवन सामाग्री का प्रयोग होता आया है। हवन कुण्ड में अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए आम के पेड़ की समिधा (लकड़ी) को अधिकाधिक रूप में प्रयोग में लाया जाता है। नवग्रह की शान्ति के लिये भिन्न-भिन्न समिधा (लकड़ी) का प्रयोग किया जाता है। जैसे-सूर्य ग्रह की शान्ति के लिए मदार, चन्द्रमा के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुद्ध के लिए लटजीरा, बृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दूब, केतु के लिए कुश का प्रयोग किया जाता है। सप्ताह में दो दिन अवश्य करें हवन हवन सामग्री में बालछड़, छड़ीला, कपूरकचरी, नागर मोथा, सुगन्ध बाला, कोकिला, हाउबेर, चम्पावती एवं देवदार आदि काष्ठ औषधियों का मिश्रण होता है, जो वातावरण को शुद्ध और सुगन्धित करता है। हवन सामग्री के साथ गूगल, छोटी कटेरी, बहेड़ा, अडूसा, नीम पत्र, वन तुलसी एवं वाकुची के बीज को मिलाकर यदि हवन प्रतिदिन किया जाय तो वह घर के वातावरण को विसंक्रमित करने में अधिक प्रभावी होगा। जिससे हम अनेक रोगों के संक्रमण से बचे रहेंगे। इस हवन को यदि प्रतिदिन सम्भव न हो तो सप्ताह में दो दिन अवश्य करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
https://santoshpidhauli.blogspot.com/