विजयादशमी,के रूप में जाना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार यह उत्सव माता विजया के जीवन से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा कुछ लोग इस त्योहार को आयुध पूजा(शस्त्र पूजा) के रूप में मनाते हैं।
दशहरा मुहूर्त
1. दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस काल की अवधि सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक की होती।
2. यदि दशमी दो दिन हो और केवल दूसरे ही दिन अपराह्नकाल को व्याप्त करे तो विजयादशमी दूसरे दिन मनाई जाएगी।
3. यदि दशमी दो दिन के अपराह्न काल में हो तो दशहरा त्यौहार पहले दिन मनाया जाएगा।
4. यदि दशमी दोनों दिन पड़ रही है, परंतु अपराह्न काल में नहीं, उस समय में भी यह पर्व पहले दिन ही मनाया जाएगा।
श्रवण नक्षत्र भी दशहरा के मुहूर्त को प्रभावित करता है जिसके तथ्य नीचे दिए जा रहे हैं:
1. यदि दशमी तिथि दो दिन पड़ती है (चाहे अपराह्ण काल में हो या ना) लेकिन श्रवण नक्षत्र पहले दिन के अपराह्न काल में पड़े तो विजयदशमी का त्यौहार प्रथम दिन में मनाया जाएगा।
2. यदि दशमी तिथि दो दिन पड़ती है (चाहे अपराह्न काल में हो या ना) लेकिन श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में पड़े तो विजयादशमी का त्यौहार दूसरे दिन मनाया जाएगा।
3. यदि दशमी तिथि दोनों दिन पड़े, लेकिन अपराह्ण काल केवल पहले दिन हो तो उस स्थिति में दूसरे दिन दशमी तिथि पहले तीन मुहूर्त तक विद्यमान रहेगी और श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में व्याप्त होगा तो दशहरा पर्व दूसरे दिन मनाया जाएगा।
4. यदि दशमी तिथि पहले दिन के अपराह्न काल में हो और दूसरे दिन तीन मुहूर्त से कम हो तो उस स्थिति में विजयादशी त्यौहार पहले दिन ही मनाया जाएगा। इसमें फिर श्रवण नक्षत्र की किसी भी परिस्थिति को ख़ारिज कर दिया जाएगा।
दशहरा पूजा एवं महोत्सव
अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है। इस पूजा की विधि नीचे दी जा रही है:
1. घर से पूर्वोत्तर की दिशा में कोई पवित्र और शुभ स्थान को चिन्हित करें। यह स्थान किसी मंदिर, गार्डन आदि के आस-पास भी हो सकता है। अच्छा होगा यदि घर के सभी सदस्य पूजा में शामिल हों, हालाँकि यह पूजा व्यक्तिगत भी हो सकती है।
2. उस स्थान को स्वच्छ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (आठ कमल की पंखुडियाँ) बनाएँ।
3. अब यह संकल्प लें कि देवी अपराजिता की यह पूजा आप अपने या फिर परिवार के ख़ुशहाल जीवन के लिए कर रहे हैं।
4. उसके बाद अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ माँ देवी अपराजिता का आह्वान करें।
5. अब माँ जया को दायीं ओर क्रियाशक्त्यै नमः मंत्र के साथ आह्वान करे।
6. बायीं ओर माँ विजया का उमायै नमः मंत्र के साथ आह्वान करें।
7. इसके उपरांत अपराजिताय नमः, जयायै नमः, और विजयायै नमः मन्त्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें।
8. अब प्रार्थना करें, हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार संपूर्ण की है। कृपया जाने से पूर्व मेरी यह पूजा स्वीकार करें।
9. पूजा संपन्न होने के बाद प्रणाम करें।
10. हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है, हालाँकि इस दिन अन्य पूजाओं का भी प्रावधान है जो नीचे दी जा रही हैं:
1. जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था।
2. दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त))। यह अवधि किसी भी चीज़ की शुरूआत करने के लिए उत्तम है। हालाँकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं।
3. क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं; यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है। वे इस दिन शमी पूजन भी करते हैं। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी।
4. ब्राह्मण इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करते हैं।
5. वैश्य अपने बहीखाते की आराधना करते हैं।
6. कई जगहों पर होने वाली नवरात्रि रामलीला का समापन भी आज के दिन होता है।
7. रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।
8. ऐसा विश्वास है कि माँ भगवती जगदम्बा का अपराजिता स्त्रोत करना बड़ा ही पवित्र माना जाता है।
9. बंगाल में माँ दुर्गा पूजा का त्यौहार भव्य रूप में मनाया जाता है।
दशहरा की कथा
• पौराणिक मान्यता के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान पुरूषोत्तम राम ने दस सिर वाले आतातायी रावण का वध किया था। तभी से दस सिरों वाले रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इस प्रतीक के रूप में जलाया जाता है ताकि हम अपने अंदर के क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करें।
• महाभारत की कथा के अनुसार दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था। शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पा लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता। इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे। एक बार जब उस राजा के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद मांगी तो अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को हराया था।
• एक अन्य कथानुसार जब भगवान श्रीराम ने लंका की चढ़ाई के लिए अपनी यात्रा का श्रीगणेश किया तो शमी वृक्ष ने उनके विजयी होने की घोषणा की थी।
• यदि आप इस त्यौहार का असल में स्वाद चखना चाहते हैं तो मैसूर जाएँ। मैसूर दशहरा पर्व बहुत ही बृहद रूप में मनाया जाता है जो कि बहुत प्रसिद्ध है। दशहरा त्यौहार से लोग दिवाली उत्सव के लिए अपनी तैयारियाँ शुरु कर देते हैं।
• इस जानकारी के साथ हम आशा करते हैं कि आप इस दिन को अपने लिए मंगलकारी बनाने में सफल होंगे।
दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई!
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