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श्री हनुमान चालीसा.

Santosh Kumar

श्री हनुमान चालीसा.. . .
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि बरनउं रघुबर विमल जसु, जो दायकु पल चारि ।। बुद्घिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार बल बुद्घि विघा देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।। .

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुं लोग उजागर ।। रामदूत अतुलित बल धामा अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।। महावीर विक्रम बजरंगी कुमति निवार सुमति के संगी ।। कंचन बरन विराज सुवेसा कानन कुण्डल कुंचित केसा ।। हाथ वज्र ध्वजा विराजै कांधे मूंज जनेऊ साजै ।। शंकर सुवन केसरी नन्दन तेज प्रताप महा जगवन्दन ।। विघावान गुणी अति चातुर राम काज करिबे को आतुर ।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया राम लखन सीता मन बसिया ।। सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा विकट रुप धरि लंक जरावा ।। भीम रुप धरि असुर संहारे रामचन्द्रजी के काज संवारे ।। लाय संजीवन लखन जियाये श्री रघुवीर हरषि उर लाये ।। रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।। सहस बदन तुम्हरो यश गावै अस कहि श्री पति कंठ लगावै ।। सनकादिक ब्रहादि मुनीसा नारद सारद सहित अहीसा ।। यह कुबेर दिकपाल जहां ते कवि कोबिद कहि सके कहां ते ।। तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा राम मिलाय राजपद दीन्हा ।। तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना लंकेश्वर भये सब जग जाना ।। जुग सहस्त्र योजन पर भानू लाल्यो ताहि मधुर फल जानू ।। प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही जलधि लांघि गए अचरज नाहीं ।। दुर्गम काज जगत के जेते सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।। राम दुआरे तुम रखवारे होत आज्ञा बिनु पैसारे ।। सब सुख लहै तुम्हारी सरना तुम रक्षक काहू को डरना ।। आपन तेज सम्हारो आपै तीनों लोक हांक ते कांपै ।। भूत पिशाच निकट नहिं आवै महाबीर जब नाम सुनावै ।। नासै रोग हरै सब पीरा जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।। संकट ते हनुमान छुड़ावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।। सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ।। और मनोरथ जो कोई लावै सोइ अमित जीवन फल पावै ।। चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्घ जगत उजियारा ।। साधु सन्त के तुम रखवारे असुर निकन्दन राम दुलारे ।। अष्ट सिद्घि नवनिधि के दाता अस वर दीन जानकी माता ।। राम रसायन तुम्हरे पासा सदा रहो रघुपति के दासा ।। तुम्हरे भजन राम को पावै जनम जनम के दुख बिसरावै ।। अन्तकाल रघुबर पुर जाई जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।। और देवता चित्त धरई हनुमत सेई सर्व सुख करई ।। संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।। जय जय जय हनुमान गुसांई कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।। जो शत बार पाठ कर सोई छूटहिं बंदि महासुख होई ।। जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा होय सिद्घि साखी गौरीसा ।। तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।। . . ।।
 दोहा ।। .
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।। 

2 अक्टूबर महात्मा गांधी



महात्मा गांधी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी था। मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था जो करमचंद गांधी जी की चौथी पत्नी थीं। मोहनदास अपने पिता की चौथी पत्नी की अंतिम संतान थे।

गांधी जी और परिवार-

गांधी की मां पुतलीबाई अत्यधिक धार्मिक थीं। उनकी दिनचर्या घर और मन्दिर में बंटी हुई थी। वह नियमित रूप से उपवास रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। मोहनदास का लालन-पालन वैष्णव मत में रमे परिवार में हुआ और उन पर कठिन नीतियों वाले जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा।

जिसके मुख्य सिद्धांत, अहिंसा एवं विश्व की सभी वस्तुओं को शाश्वत मानना है। इस प्रकार,उन्होंने स्वाभाविक रूप से अहिंसा, शाकाहार, आत्मशुद्धि के लिए उपवास और विभिन्न पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।

गांधीजी विद्यार्थी के रूप में-
मोहनदास एक औसत विद्यार्थी थे,हालांकि उन्होंने यदा-कदा पुरस्कार और छात्रवृत्तियां भी जीतीं। वह पढ़ाई व खेल,दोनों में ही तेज नहीं थे। बीमार पिता की सेवा करना,घरेलू कामों में मां का हाथ बंटाना और समय मिलने पर दूर तक अकेले सैर पर निकलना, उन्हें पसंद था। उन्हीं के शब्दों में उन्होंने 'बड़ों की आज्ञा का पालन करना सीखा, उनमें मीनमेख निकालना नहीं।'

उनकी किशोरावस्था उनकी आयु-वर्ग के अधिकांश बच्चों से अधिक हलचल भरी नहीं थी। हर ऐसी नादानी के बाद वह स्वयं वादा करते 'फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा' और अपने वादे पर अटल रहते। उनमें आत्मसुधार की लौ जलती रहती थी, जिसके कारण उन्होंने सच्चाई और बलिदान के प्रतीक प्रह्लाद और हरिश्चंद्र जैसे पौराणिक हिन्दू नायकों को सजीव आदर्श के रूप में अपनाया।

गांधी जी जब केवल तेरह वर्ष के थे और स्कूल में पढ़ते थे उसी वक्त पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा से उनका विवाह कर दिया गया।
गांधीजी विद्यार्थी के रूप में-


मोहनदास एक औसत विद्यार्थी थे,हालांकि उन्होंने यदा-कदा पुरस्कार और छात्रवृत्तियां भी जीतीं। वह पढ़ाई व खेल,दोनों में ही तेज नहीं थे। बीमार पिता की सेवा करना,घरेलू कामों में मां का हाथ बंटाना और समय मिलने पर दूर तक अकेले सैर पर निकलना, उन्हें पसंद था। उन्हीं के शब्दों में उन्होंने 'बड़ों की आज्ञा का पालन करना सीखा, उनमें मीनमेख निकालना नहीं।'

उनकी किशोरावस्था उनकी आयु-वर्ग के अधिकांश बच्चों से अधिक हलचल भरी नहीं थी। हर ऐसी नादानी के बाद वह स्वयं वादा करते 'फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा' और अपने वादे पर अटल रहते। उनमें आत्मसुधार की लौ जलती रहती थी, जिसके कारण उन्होंने सच्चाई और बलिदान के प्रतीक प्रह्लाद और हरिश्चंद्र जैसे पौराणिक हिन्दू नायकों को सजीव आदर्श के रूप में अपनाया।

गांधी जी जब केवल तेरह वर्ष के थे और स्कूल में पढ़ते थे उसी वक्त पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा से उनका विवाह कर दिया गया।
गांधी जब भारत लौट आए-

सन् 1914 में गांधी जी भारत लौट आए। देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया। उन्होंने अगले चार वर्ष भारतीय स्थिति का अध्ययन करने तथा उन लोगों को तैयार करने में बिताये जो सत्याग्रह के द्वारा भारत में प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों को हटाने में उनका साथ दे सकें।

फरवरी 1919 में अंग्रेजों के बनाए रॉलेट एक्ट कानून पर,जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए जेल भेजने का प्रावधान था,उन्होंने अंग्रेजों का विरोध किया।


फिर गांधी जी ने सत्याग्रह आन्दोलन की घोषणा कर दी। इसके परिणामस्वरूप एक ऐसा राजनीतिक भूचाल आया,जिसने 1919 के बसंत में समूचे उपमहाद्वीप को झकझोर दिया।

इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्‍मा गांधी ने भारतीय स्‍वतंत्रता के लिए किए जाने वाले अन्‍य अभियानों में सत्‍याग्रह और अहिंसा के विरोध जारी रखे, जैसे कि 'असहयोग आंदोलन', 'नागरिक अवज्ञा आंदोलन', 'दांडी यात्रा' तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन'। गांधी जी के इन सारे प्रयासों से भारत को 15 अगस्‍त 1947 को स्‍वतंत्रता मिल गई।


उपसंहार -

मोहनदास करमचंद गांधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अहिंसक विरोध के सिद्धांत के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। विश्व पटल पर महात्मा गांधी सिर्फ एक नाम नहीं अपितु शान्ति और अहिंसा का प्रतीक हैं।


महात्मा गांधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की के बारे में लोग जानते थे, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह, शांति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गांधी जयंती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाए जाने की घोषणा की है।

गांधी जी के बारे में प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि -'हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इंसान भी धरती पर कभी आया था।

SANTOSH PIDHAULI

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