फ़ॉलोअर

ओम नमः शिवाय !!!

विभत्स हूँ…
विभोर हूँ....
मैं समाधी में ही चूर हूँ…



#मैं_शिव_हूँ। #मैं_शिव_हूँ।#मैं_शिव_हूँ।

घनघोर अँधेरा ओढ़ के…

मैं जन जीवन से दूर हूँ…

श्मशान में हूँ नाचता…

मैं मृत्यु का #ग़ुरूर हूँ…

मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।


मैं शिव हूँ।

साम – दाम तुम्हीं रखो…

मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ…

मैं शिव हूँ।



मै शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

चीर आया चरम में…

मार आया “मैं” को मैं…

“मैं” , “मैं” नहीं…

”मैं” भय नहीं…

मैं शिव हूँ।


मैं शिव हूँ।

मैं शिव हूँ। जो सिर्फ तू है सोचता…


केवल वो मैं नहीं…



मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

मैं काल का कपाल हूँ…


मैं मूल की चिंघाड़ हूँ…


मैं मग्न…मैं चिर मग्न हूँ…


मैं एकांत में उजाड़ हूँ…


मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

मैं शिव हूँ।

मैं आग हूँ…


मैं राख हूँ…

मैं पवित्र राष हूँ…


मैं पंख हूँ…


मैं श्वाश हूँ…


मैं ही हाड़ माँस हूँ…


मैं ही आदि अनन्त हूँ…


मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।





मैं शिव हूँ।

मुझमें कोई छल नहीं…


तेरा कोई कल नहीं…


मौत के ही गर्भ में…


ज़िंदगी के पास हूँ…


अंधकार का आकार हूँ…


प्रकाश का मैं प्रकार हूँ…


मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।




मैं शिव हूँ।

मैं कल नहीं मैं काल हूँ…


वैकुण्ठ या पाताल नहीं…


मैं मोक्ष का भी सार हूँ…


मैं पवित्र रोष हूँ…


मैं ही तो अघोर हूँ…



#मैं_शिव_हूँ। #मैं_शिव_हूँ। #मैं_शिव_हूँ।


ॐ नमः शिवाय हर हर महादेव सभी को सावन माह की हार्दिक हार्दिक शुभ कमाने ?????


जय श्री महाँकाल ?????
जय भोलेनाथ शिव की बनी रहे आप पर छाया, पलट दे जो आपकी किस्मत की काया, मिले आपको वो सब अपनी इस ज़िन्दगी में, जो कभी किसी ने भी नहीं पाया!

ओम में ही आस्था ओम में ही विश्वास, ओम में ही शक्ति ओम में ही सारा संसार, ओम से होती है अच्छे दिन की शुरुआत. बोलो ओम नमः शिवाय !!!





गृह प्रवेश


                          गृह प्रवेश


मनुष्य के लिये अपना घर होना किसी सपने से कम नहीं होता। अपना घर यानि की उसकी अपनी एक छोटी सी दुनिया, जिसमें वह तरह-तरह के सपने सजाता है। पहली बार अपने घर में प्रवेश करने की खुशी कितनी होती है इसे सब समझ सकते हैं महसूस कर सकते हैं लेकिन बयां नहीं कर सकते। लेकिन क्या होता है कि कई बार अचानक आपको आपकी ये दुनिया रास नहीं आती, घर में क्लेष रहने लगता है और धीरे-धीरे आपके सपने बिखरने लगते हैं। इसका एक मुख्य कारण हो सकता है कि आपने अपने गृह प्रवेश के दौरान जाने अंजाने वास्तु नियमों का पालन न किया हो। इसलिये यदि आप धार्मिक हैं, शुभ-अशुभ में विश्वास रखते हैं तो गृह प्रवेश से पहले पूजा जरुर करवायें। हम आपको बताते हैं कि गृह प्रवेश के दौरान पूजा कैसे करें। लेकिन उससे पहले बताते हैं गृह प्रवेश कितने प्रकार का होता है।
कितने प्रकार का होता है गृह प्रवेश

शास्त्रों के अनुसार गृह प्रवेश तीन प्रकार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार है।

अपूर्व गृह प्रवेश – जब पहली बार बनाये गये नये घर में प्रवेश किया जाता है तो वह अपूर्व ग्रह प्रवेश कहलाता है।
सपूर्व गृह प्रवेश – जब किसी कारण से व्यक्ति अपने परिवार सहित प्रवास पर होता है और अपने घर को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देते हैं तब दुबारा वहां रहने के लिये जब जाया जाता है तो उसे सपूर्व गृह प्रवेश कहा जाता है।
द्वान्धव गृह प्रवेश – जब किसी परेशानी या किसी आपदा के चलते घर को छोड़ना पड़ता है और कुछ समय पश्चात दोबारा उस घर में प्रवेश किया जाता है तो वह द्वान्धव गृह प्रवेश कहलाता है।

उपरोक्त तीनों ही स्थितियों में गृह प्रवेश पूजा का विधान धर्म ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है।

गृह प्रवेश की पूजा विधि


सबसे पहले गृह प्रवेश के लिये दिन, तिथि, वार एवं नक्षत्र को ध्यान मे रखते हुए, गृह प्रवेश की तिथि और समय का निर्धारण किया जाता है। गृह प्रवेश के लिये शुभ मुहूर्त का ध्यान जरुर रखें। इस सब के लिये एक विद्वान ब्राह्मण की सहायता लें, जो विधिपूर्वक मंत्रोच्चारण कर गृह प्रवेश की पूजा को संपूर्ण करता है।

इन बातों का रखें ध्यान
माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ माह को गृह प्रवेश के लिये सबसे सही समय बताया गया है। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, पौष इसके लिहाज से शुभ नहीं माने गए हैं। मंगलवार के दिन भी गृह प्रवेश नहीं किया जाता विशेष परिस्थितियों में रविवार और शनिवार के दिन भी गृह प्रवेश वर्जित माना गाया है। सप्ताह के बाकि दिनों में से किसी भी दिन गृह प्रवेश किया जा सकता है। अमावस्या व पूर्णिमा को छोड़कर शुक्लपक्ष 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, और 13 तिथियां प्रवेश के लिये बहुत शुभ मानी जाती हैं।

पूजन सामग्री- कलश, नारियल, शुद्ध जल, कुमकुम, चावल, अबीर, गुलाल, धूपबत्ती, पांच शुभ मांगलिक वस्तुएं, आम या अशोक के पत्ते, पीली हल्दी, गुड़, चावल, दूध आदि।

कैसे करें गृह प्रवेश

पूजा विधि संपन्न होने के बाद मंगल कलश के साथ सूर्य की रोशनी में नए घर में प्रवेश करना चाहिए।

घर को बंदनवार, रंगोली, फूलों से सजाना चाहिए। मंगल कलश में शुद्ध जल भरकर उसमें आम या अशोक के आठ पत्तों के बीच नारियल रखें। कलश व नारियल पर कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। नए घर में प्रवेश के समय घर के स्वामी और स्वामिनी को पांच मांगलिक वस्तुएं नारियल, पीली हल्दी, गुड़, चावल, दूध अपने साथ लेकर नए घर में प्रवेश करना चाहिए। भगवान गणेश की मूर्ति, दक्षिणावर्ती शंख, श्री यंत्र को गृह प्रवेश वाले दिन घर में ले जाना चाहिए। मंगल गीतों के साथ नए घर में प्रवेश करना चाहिए। पुरुष पहले दाहिना पैर तथा स्त्री बांया पैर बढ़ा कर नए घर में प्रवेश करें। इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करते हुए गणेश जी के मंत्रों के साथ घर के ईशान कोण में या फिर पूजा घर में कलश की स्थापना करें। इसके बाद रसोई घर में भी पूजा करनी चाहिये। चूल्हे, पानी रखने के स्थान और स्टोर आदि में धूप, दीपक के साथ कुमकुम, हल्दी, चावल आदि से पूजन कर स्वास्तिक चिन्ह बनाना चाहिये। रसोई में पहले दिन गुड़ व हरी सब्जियां रखना शुभ माना जाता है। चूल्हे को जलाकर सबसे पहले उस पर दूध उफानना चाहिये, मिष्ठान बनाकर उसका भोग लगाना चाहिये। घर में बने भोजन से सबसे पहले भगवान को भोग लगायें। गौ माता, कौआ, कुत्ता, चींटी आदि के निमित्त भोजन निकाल कर रखें। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करायें या फिर किसी गरीब भूखे आदमी को भोजन करा दें। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख, शांति व समृद्धि आती है व हर प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं।

नवीन गृह प्रवेश वास्तु हवन पूजन सामग्री

1) श्री फल =1


2) सुपारी = 11


3)लौंग = 10 ग्राम


4)इलायची = 10 ग्राम


5) पान के पत्ते = 7


6) रोली =1 पैकेट


7) मोली = 1गोली


8) जनेऊ = 7


9) कच्चा दूध = 100 ग्राम


10) दही = 100 ग्राम


11) देशी घी = 1 किलो ग्राम


12) शहद = 250 ग्राम


13) शक्कर = 250 ग्राम


14) साबुत चावल. = 1 किलो 250 ग्राम


15) पंच मेवा = 250 ग्राम


16) पंच मिठाई = 500 ग्राम


17) ॠतु फल = श्रद्धा अनुसार


18) फूल माला,फूल = 5


19)धूप, अगरबत्ती =1-1पैकेट


20) हवन सामग्री = 1किलो ग्राम


21) जौ = 250 ग्राम


22) काले तिल = 250 ग्राम


23)मिट्टी के बड़ा दीया =1


24) रूई = 1पैकेट


25) पीला कपड़ा =सवा मीटर


26) कपूर = 11 टिक्की


27) दोने = 1 पैकेट


28) आम के पत्ते = 11पत्ते


29) आम की लकडियां = 2 किलो ग्राम

श्री कृष्ण जन्माष्टमी 2018



देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं।


भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

 
कब हुआ श्री कृष्ण का जन्म्

जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।


जन्माष्टमी पर्व तिथि व मुहूर्त 2018

2 सितंबर

निशिथ पूजा– 23:57 से 00:43

पारण– 20:05 (3 सितंबर) के बाद

रोहिणी समाप्त- 20:05

अष्टमी तिथि आरंभ – 20:47 (2 सितंबर)

अष्टमी तिथि समाप्त – 19:19 (3 सितंबर

🚩श्री गणेशाय नम:

जन्‍माष्‍टमी की पूजा के लिए जो सामग्री चाहिए उनमें शामिल हैं-
तिल 100
हल्दी 1
एक खीरा 1
कपूर 1
चौकी, 1
लाल वस्‍त्र, 2
बाल गोपाल की मूर्ति, 1
गंगाजल, 1
मिट्टी का दीपक 7
 कलश  1 चार मुक्ती दीप1 ढक्कन 1
, घी, 500 ग्रांम
 रूई की बत्ती,  2
धूप, 200 ग्रांम
चंदन, रोली,  1
अक्षत, 100 ग्रांम
तुलसी , पता
जो 100 ग्रांम
कच्चा चावल आधा किलो
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण)
 मक्खन, मिश्री, 250 ग्रांम
 मिष्ठान/ 1 किलो
नैवैद्य, फल, पांच फल
बाल गोपाल के लिए वस्‍त्र, श्रृंगार की सामग्री 
(मुकुट, मोतियों की माला, 
बांसुरी 1
 मोर पंख) 1
, इत्र, 
फूलमाला, फूल 5+ 500 ग्रांम गुलाब पंख
पालना. 1
पान 11
केला 24
आम पता 1 
केला का पत्ता 1
सुपारी 12
अगरबत्ती 5
 रक्षा सूत्र
हवन सामग्री 1 किलो 
एक गोला
 हवन लकड़ी 2 किलो 
एक पान 
घी 500 ग्राम
हवन कुंड एक

सामाग्री- प्रसाद 
100 ग्राम धनिया पाउडर
3 चम्मच देसी घी
1/2 कप मखाना
1/2 कप चीनी
10 से 12 काजू
10 से 12 बादाम
1 चम्मच चिरौंजी
बनाने की विधि-
धनिए की पंजीरी बनाने के लिए सबसे पहले एक कढ़ाई में घी गर्म करें। इसके बाद कढ़ाई में धनिया पाउडर मिलाकर अच्छी तरह से भून लें। धनिया पाउडर भूनने के बाद इसमें बारिक टुकड़ों में मखानों को काटकर भूनें। इसके बाद उन्हें दरदरा पीस लें। इसके बाद सभी मेवों को इसमें मिला दें। आपकी पंजीरी तैयार है।

रक्षा बंधन 2018


येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबलः तेनत्वाम प्रति बद्धनामि रक्षे, माचल-माचलः'


अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिये हर बहन रक्षा बंधन के दिन का इंतजार करती है। श्रावण मास की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने के पिछे कहानियां हैं। यदि इसकी शुरुआत के बारे में देखें तो यह भाई-बहन का त्यौहार नहीं बल्कि विजय प्राप्ति के किया गया रक्षा बंधन है। भविष्य पुराण के अनुसार जो कथा मिलती है वह इस प्रकार है।


बहुत समय पहले की बाद है देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा हुआ था लगातार 12 साल तक युद्ध चलता रहा और अंतत: असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया। इसके बाद इंद्र देवताओं के गुरु, ग्रह बृहस्पति के पास के गये और सलाह मांगी। बृहस्पति ने इन्हें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन गुरू बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया। इस रक्षा विधान के दौरान मंत्रोच्चारण से रक्षा पोटली को मजबूत किया गया। पूजा के बाद इस पोटली को देवराज इंद्र की पत्नी शचि जिन्हें इंद्राणी भी कहा जाता है ने इस रक्षा पोटली के देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा। इसकी ताकत से ही देवराज इंद्र असुरों को हराने और अपना खोया राज्य वापस पाने में कामयाब हुए।



वर्तमान में यह त्यौहार बहन-भाई के प्यार का पर्याय बन चुका है, कहा जा सकता है कि यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला पर्व है। एक ओर जहां भाई-बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती है। इस दिन भाई की कलाई पर जो राखी बहन बांधती है वह सिर्फ रेशम की डोर या धागा मात्र नहीं होती बल्कि वह बहन-भाई के अटूट और पवित्र प्रेम का बंधन और रक्षा पोटली जैसी शक्ति भी उस साधारण से नजर आने वाले धागे में निहित होती है।



रक्षा बंधन 2018


26 अगस्त


रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय- 05:59 से 17:25


अपराह्न मुहूर्त- 13:39 से 16:12


पूर्णिमा तिथि आरंभ – 15:16 (25 अगस्त)


पूर्णिमा तिथि समाप्त- 17:25 (26 अगस्त)


भद्रा समाप्त: सूर्योदय से पहले

SANTOSH PIDHAULI

facebook follow

twitter

linkedin


Protected by Copyscape Online Copyright Protection
Text selection Lock by Hindi Blog Tips
Hindi Blog Tips

मेरी ब्लॉग सूची