फ़ॉलोअर

*तुलसी कौन थी?*



```तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.
वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा``` -
स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर``` आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प
नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।
फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे

ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

उन्होंने पूँछा - आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे
सती हो गयी।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब
भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से
इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में

बिना तुलसी जी के भोग```
```स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में```

```किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !```

कैसे मनाते हैं धनतेरस 2018



दीपावली के पहले लोग जानना चाहते हैं कि धनतेरस कब है ? अापकी जानकारी के लिए हम बताते हैं कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। जैन आगम में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं। इसी दिन भगवान महावीर तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से जाना जाता है। इस साल धनतेरस 5 नवंबर को है। यह पर्व हिन्दू धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण त्यौहार दिवाली से ठीक दो दिन पहले मनाया जाता है जो पांच दिनों तक चलने वाले पर्व का सबसे पहला दिन होता है। यहां अाप धनतेरस पूजन विधि और मुहूर्त अादि की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

कैसे मनाते हैं धनतेरस
देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परंपरा है। इस दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है। इस दिन यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यमदेव की पूजा करने के बाद पूरी रात घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाना चाहिए। इस दीपक में कुछ पैसा व कौड़ी भी डाली जाती है।

धनतेरस पर गहनें, बर्तन और वाहनों की खरीदारी शुभ
इस दिन नये उपहार, सिक्का, बर्तन वाहन और गहनों की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। लक्ष्मी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढ़ाता है। इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है। इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृद्धि करता है। इस दिन ज्वेलर्स के पास भी काफी भीड़ रहती है और लोग अपनी क्षमता के हिसाब से सामानों की खरीदारी करते हैं। इतना ही नहीं इस दिन वाहनों की भी जमकर खरीदारी होती है। लोग पहले से ही बुकिंग करवाकर रखते हैं और उस दिन वाहन घर ले अाते हैं। इसके लिए पंडित शुभ मुहूर्त भी बताते हैं। 

धनतेरस पूजन मुहूर्त

प्रदोष काल :
सूर्यास्त के बाद के 2 घंटे 24 मिनट के समय को प्रदोषकाल कहा जाता है। यम दीपदान और लक्ष्मी पूजन इसी मुहूर्त में करना चाहिए,

सांय काल में शुभ महूर्त
प्रदोष काल का समय शाम 5।31 से रात 8.04 बजे तक, स्थिर लग्न शाम 6.10 बजे से रात 8.09 बजे और धनतेरस पूजा के लिए समय शाम 6.10 बजे से रात 8.04 बजे तक है। 

चौघाडिया मुहूर्त :
इस दौरान पूजा करने से लाभ होने की मान्यता है। इससे धन, स्वास्थ्य और आयु में बढ़ोतरी होती है।
अमृत काल मुहूर्त शाम 4.30 बजे से शाम 6 बजे तक 
चर 5.56 बजे से शाम 7.30 बजे तक  

धनतेरस पूजन विधि
धन तेरस की पूजा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए। सबसे पहले तेरह दीपक जला कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करना चाहिए। देव कुबेर का ध्यान करते हुए उन्हें फूल चढाएं। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें। इस दिन स्थिर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है।

धनतेरस पर यम पूजा
धनतेरस के दिन यमदेव की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन यमदेव का पूजन करने से यमदेव हमें अकालमृत्यु का भय दूर करते हैं। इसलिए अकालमृत्यु से बचने के लिए धनतेरस को यमदेव की पूजा की जाती है। अब आइये जानते है यम पूजा विधि के बारे में या यम दीपक धनतेरस कैसे मानते है।

यम का दीया कैसे जलाये – यम पूजन विधि
  • पूजा दिन में नहीं बल्क‍ि रात में होती है। यमराज की पूजा सिर्फ एक चौमुखी दीप जलाकर की जाती है।
  • इसके लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार के दाईं ओर रख दिया जाता है। इस दीया को जमदीवा, जम का दीया या यमराज का दीपक भी कहा जाता है।
  • रात को घर की स्त्रियां दीपक में तेल डालकर नई रूई की बत्ती बनाकर, चार बत्तियां जलाती हैं । दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखनी चाहिए।
  • दीपक जलाने से पहले उसकी जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि से पूजा करनी चाहिए। घर में पहले से दीपक जलाकर यम का दीया ना निकालें।
  • धनतेरस का दीपक मृत्यु के नियंत्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, इसलिए दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन करने के साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।

धनतेरस की कथा 
किंवदंतियों के मुताबिक किसी राज्य में एक राजा था, जिसे कई वर्षों तक की प्रतीक्षा के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, जिस दिन भी उसका विवाह होगा, उसके चार दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ। इससे बचने के लिये उसने राजकुमार को एसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो। एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी। राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा और मोहित होकर आपस में विवाह कर लिया।
ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। यमदूत को देख राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी। यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा कि इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताइए। इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात मेरा पूजन कर दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाने की परंपरा है।

सागर मंथन से माता लक्ष्मी से दो दिन पहले उत्पन्न हुए धनवंतरी
शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धनवंतरी सागर मंथन के बाद हाथों में स्वर्ण कलश लेकर उत्पन्न हुए। धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। धनवंतरी के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई, इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य हैं और इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं और संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था।

दीवाली पूजा हेतु पूजन सामग्री


दीवाली पर मां लक्ष्मी, सरस्वती एवं गणेशजी की पूजा की जाती है। इन दिन इन तीनों देवी-देवताओं की विशेष पूजा-अर्चना कर उनसे सुख-समृद्धि, बुद्धि तथा घर में शांति, तरक्की का वरदान मांगा जाता है। दीवाली पर देवी-देवताओं की पूजा में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है जो निम्न प्रकार हैं-

दीवाली पूजा हेतु पूजन सामग्री

दीवाली पूजा के सामान की लगभग सभी चीजें घर में ही मिल जाती हैं। कुछ अतिरिक्त चीजों को बाहर से लाया जा सकता है। ये वस्तुएं हैं- लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, रोली, कुमकुम, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, धूप, कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, रुई, कलावा (मौलि), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेहूँ, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील, बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत (जनेऊ), श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान्न (बिना वर्क का)



ये है दीवाली की पूजा विधि

दीवाली की पूजा में सबसे पहले एक चौकी पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा को विराजमान करें। इसके बाद हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा-सा जल लेकर उसे प्रतिमा के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें। बाद में इसी तरह से स्वयं को तथा अपने पूजा के आसन को भी इसी तरह जल छिड़ककर पवित्र कर लें।

ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।

इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करके निम्न मंत्र बोलें तथा उनसे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर विराजमान हों

पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥ पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

इसके बाद "ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः" कहते हुए गंगाजल का आचमन करें 



ध्यान व संकल्प विधि

इस पूरी प्रक्रिया के बाद मन को शांत कर आंखें बंद करें तथा मां को मन ही मन प्रणाम करें। इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प और जल ले लीजिए। साथ में एक रूपए (या यथासंभव धन) का सिक्का भी ले लें। इन सब को हाथ में लेकर संकल्प करें कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर मां लक्ष्मी, सरस्वती तथा गणेशजी की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। 

इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। तत्पश्चात कलश पूजन करें फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। इन सभी के पूजन के बाद 16 मातृकाओं को गंध, अक्षत व पुष्प प्रदान करते हुए पूजन करें। पूरी प्रक्रिया मौलि लेकर गणपति, माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण कर और स्वयं के हाथ पर भी बंधवा लें। अब सभी देवी-देवताओं के तिलक लगाकर स्वयं को भी तिलक लगवाएं। इसके बाद मां महालक्ष्मी की पूजा आरंभ करें।

मां को रिझाने के लिए करें श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत

का पाठ

सबसे पहले भगवान गणेशजी, लक्ष्मीजी का पूजन करें। उनकी प्रतिमा के आगे 7, 11 अथवा 21 दीपक जलाएं तथा मां को श्रृंगार सामग्री अर्पण करें। मां को भोग लगा कर उनकी आरती करें। श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें। इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।

क्षमा-प्रार्थना करें

पूजा पूर्ण होने के बाद मां से जाने-अनजाने हुए सभी भूलों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। उन्हें कहें-

मां न मैं आह्वान करना जानता हूँ, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मन्त्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो। यथा-सम्भव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे आप भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।


गणेश जी की आरती

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एक दंत दयावंत चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे, मुसे की सवारी।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुवन का भोग लगे, संत करे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा, माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़ियन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
सुर श्याम शरण आये सफल कीजे सेवा।। जय गणेश देवा
जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता 
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा, रमा, ब्रम्हाणी, तुम जग की माता 
सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारूप निरंजन, सुख संपत्ति दाता 
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता 
कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद्गुण आता 
सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता 
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
शुभ गुण मंदिर, सुंदर क्षीरनिधि जाता 
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता 
उर आंनद समाता, पाप उतर जाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
स्थिर चर जगत बचावै, कर्म प्रेर ल्याता 
तेरा भगत मैया जी की शुभ दृष्टि पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता....








दुर्गा अष्टमी का पर्व मनाया 2018

देशभर में दुर्गा अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। 
यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस दिन महागौरी की पूजा की जाती है। साथ ही कन्याओं को भोजन करवाया जाता है। देशभर में दुर्गा पूजा आरंभ हो चुकी है।
पंडालों में माता दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जा चुकी हैं। समस्त वातावरण मां की भक्ति में डूबा हुआ नजर आ रहा है। नवरात्रि के आठवें दिन का खास महत्व है। इसे दुर्गा अष्टमी कहा जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन 12 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन करवाना और उनका पूजन करना शुभ माना जाता है।

कहते हैं कि पृथ्वी पर छोटी कन्याएं मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस दिन 5, 7, 9 और 11 की संख्या में लड़कियों के समूह को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है।

पूजा विधि: कन्या पूजन की विधि इस प्रकार से है।
– दुर्गा अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले जगें और स्नान करके स्वच्छ हो जाएं।


– प्रसाद के लिए खीर, पूरी, और हलवा आदि घर पर तैयार करें।
– कन्याओं और एक बालक को बुलाकर जल से उनका पांव धोएं। और उन्हें बैठने के लिए आसन दें।


– प्रसाद तैयार हो जाने पर माता दुर्गा का भोग लगाएं।
– अब कन्याओं और बालक को खीर, पूरी और हलव प्रसाद स्वरूप खिलाएं।


– भोजन कराने के बाद उन्हें टीका लगाएं और कलाई पर रक्षा बांधें।
– कन्याओं को कुछ उपहार देकर विदा करें। और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लें।

शुभ मुहूर्त: इस साल 17 अक्टूबर, दिन बुधवार को दुर्गा अष्टमी पड़ रही है। कन्या पूजन के लिए शुभ मुहूर्त का पालन किया जाना जरूरी बताया गया है।


– सुबह 6 बजकर 28 मिनट से लेकर 9 बजकर 20 मिनट तक।
– सुबह 10 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक।

SANTOSH PIDHAULI

facebook follow

twitter

linkedin


Protected by Copyscape Online Copyright Protection
Text selection Lock by Hindi Blog Tips
Hindi Blog Tips

मेरी ब्लॉग सूची