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गणेश चतुर्थी 2019


गणेश चतुर्थी
२वाँ
सितम्बर २०१९
(सोमवार)
गणेश चतुर्थी


गणेश चतुर्थी पूजा मुहूर्त

मध्याह्न गणेश पूजा का समय = ११:०५ से १३:३६
अवधि = २ घण्टे ३१ मिनट्स
२nd को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = ०८:५५ से २१:०५
अवधि = १२ घण्टे ९ मिनट्स
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = २/सितम्बर/२०१९ को ०४:५६ बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = ३/सितम्बर/२०१९ को ०१:५३ बजे
गणेश चतुर्थी के दिन का पञ्चाङ्ग
गणेश चतुर्थी के दिन का चौघड़िया मुहूर्त
टिप्पणी - २४ घण्टे की घड़ी नई दिल्ली के स्थानीय समय के साथ और सभी मुहूर्त के समय के लिए डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है)।
२०१९ गणेश चतुर्थी


गणेश चतुर्थी पूजा विधि
भगवान गणेश की गणेश-चतुर्थी के दिन सोलह उपचारों से वैदिक मन्त्रों के जापों के साथ पूजा की जाती है। भगवान की सोलह उपचारों से की जाने वाली पूजा को षोडशोपचार पूजा कहते हैं। गणेश-चतुर्थी की पूजा को विनायक-चतुर्थी पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान गणेश को प्रातःकाल, मध्याह्न और सायाह्न में से किसी भी समय पूजा जा सकता है। परन्तु गणेश-चतुर्थी के दिन मध्याह्न का समय गणेश-पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मध्याह्न के दौरान गणेश-पूजा का समय गणेश-चतुर्थी पूजा मुहूर्त कहलाता है।

गणेश-पूजा के समय किये जाने वाले सम्पूर्ण उपचारों को नीचे सम्मिलित किया गया है। इन उपचारों में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह उपचार भी शामिल हैं। दीप-प्रज्वलन और संकल्प, पूजा प्रारम्भ होने से पूर्व किये जाते हैं। अतः दीप-प्रज्वलन और संकल्प षोडशोपचार पूजा के सोलह उपचारों में सम्मिलित नहीं होते हैं।

यदि भगवान गणपति आपके घर में अथवा पूजा स्थान में पहले से ही प्राण-प्रतिष्ठित हैं तो षोडशोपचार पूजा में सम्मिलित आवाहन और प्रतिष्ठापन के उपचारों को त्याग देना चाहिये। आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा नवीन गणपति मूर्ति (मिट्टी अथवा धातु से निर्मित) की ही की जाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि घर अथवा पूजा स्थान में प्रतिष्ठित मूर्तियों का पूजा के पश्चात विसर्जन के स्थान पर उत्थापन किया जाता है।

गणेश चतुर्थी पूजा के दौरान भक्तलोग भगवान गणपति की षोडशोपचार पूजा में एक-विंशति गणेश नाम पूजा और गणेश अङ्ग पूजा को भी सम्मिलित कर लेते हैं।
आवाहन एवं प्रतिष्ठापन (Avahana and Pratishthapan)
आवाहन (Avahana)
सर्वप्रथम, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।
गणेश चतुर्थी पूजा
प्रतिष्ठापन (Pratishthapan)
आवाहन के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ कर भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करें।
आसन समर्पण (Asana Samarpan)
आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
पाद्य समर्पण (Padya Samarpan)
आसन समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
अर्घ्य समर्पण (Arghya Samarpan)
पाद्य समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को गन्धमिश्रित अर्घ्य जल समर्पित करें।
आचमन (Achamana)
अर्घ्य समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए भगवान गणेश को जल समर्पित करें।
स्नान मन्त्र (Snana Mantra)
स्नान (Snana)
आचमन समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को जल से स्नान कराएँ।
पञ्चामृत स्नानम् (Panchamrita Snanam)
जल से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पञ्चामृत से स्नान कराएँ।
पयः/दूध स्नानम् (Payah/Dugdha Snanam)
पञ्चामृत से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पयः (दूध) से स्नान कराएँ।
दधि स्नानम् (Dadhi Snanam)
पयः से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दही से स्नान कराएँ।
घृत स्नानम् (Ghrita Snanam)
दही से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को घी से स्नान कराएँ।
मधु स्नानम् (Madhu Snanam)
घी से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शहद से स्नान कराएँ।
शर्करा स्नानम् (Sharkara Snanam)
शहद से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शर्करा (शक्कर) से स्नान कराएँ।
सुवासित स्नानम् (Suvasita Snanam)
शर्करा से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को सुगन्धित तेल से स्नान कराएँ।
शुद्धोदक स्नानम् (Shuddhodaka Snanam)
सुगन्धित तेल से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
वस्त्र समर्पण वं उत्तरीय समर्पण (Vastra Samarpan and Uttariya Samarpan)
वस्त्र समर्पण (Vastra Samarpan)
शुद्धोदक स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
उत्तरीय समर्पण (Uttariya Samarpan)
वस्त्र समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शरीर के ऊपरी अङ्गो के लिए वस्त्र समर्पित करें।
यज्ञोपवीत समर्पण (Yajnopavita Samarpan)
वस्त्र एवं उत्तरीय समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को यज्ञोपवीत समर्पित करें।
गन्ध (Gandha)
यज्ञोपवीत समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को सुगन्धित द्रव्य समर्पित करें।
अक्षत (Akshata)
गन्ध समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को अक्षत चढ़ायें।
पुष्प माला, शमी पत्र, दुर्वाङ्कुर, सिन्दूर (Pushpa Mala, Shami Patra, Durvankura, Sindoor)
पुष्प माला (Pushpa Mala)
अक्षत समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पुष्प माला चढ़ायें।
शमी पत्र (Shami Patra)
पुष्प माला समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शमी पत्र चढ़ायें।
दुर्वाङ्कुर (Durvankur)
शमी पत्र समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दुर्वाङ्कुर (तीन अथवा पाँच पत्र वाला दूर्वा) चढ़ायें।
सिन्दूर (Sindoor)
दुर्वाङ्कुर समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ायें।
धूप (Dhoop)
सिन्दूर समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को धूप समर्पित करें।
दीप समर्पण (Deep Samarpan)
धूप समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दीप समर्पित करें।
नैवेद्य एवं करोद्वर्तन (Naivedya and Karodvartan)
नैवेद्य निवेदन (Naivedya Nivedan)
दीप समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को नैवेद्य समर्पित करें।
चन्दन करोद्वर्तन (Chandan Karodvartan)
नैवेद्य समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को चन्दन युक्त जल समर्पित करें।
ताम्बूल, नारिकेल एवं दक्षिणा समर्पण (Tambula, Narikela and Dakshina Samarpan)
ताम्बूल समर्पण (Tambula Samarpan)
चन्दन करोद्वर्तन के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।
नारिकेल समर्पण (Narikela Samarpan)
ताम्बूल समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को नारियल समर्पित करें।
दक्षिणा समर्पण (Dakshina Samarpan)
नारिकेल समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दक्षिणा समर्पित करें।
नीराजन एवं विसर्जन (Neerajan and Visarjan)
नीराजन/आरती (Neerajan/Aarti)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ने के पश्चात्, भगवान गणेश की आरतीकरें।
पुष्पाञ्जलि अर्पण (Pushpanjali Arpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पुष्पाञ्जलि समर्पित करें।
प्रदक्षिणा (Pradakshina)
भगवान गणेश की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीगणेश को फूल समर्पित करें।
विसर्जन (Visarjan)
दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर विसर्जन हेतु निम्न-लिखित मन्त्र पढ़े।

भोलेनाथ को मनाने के लिए


हिन्दू धर्म में महादेव, त्रिदेवों में सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं जो भोलेनाथ, महादेव, शिव शंकर, नीलकंठ, महेश, रुद्र, गंगाधार, महाकाल इत्यादि सैकड़ों नामों से जाने जाते हैं। पुरे विश्व में भोले बाबा के लाखों भक्त आज भी मौजूद हैं। ये देवों के भी देव महादेव हैं, जो की कैलाश पर्वत पर अपनी अर्धांगिनी (शक्ति) माता पार्वती और अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिके के साथ निवास करते हैं। भोलेनाथ की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती हैं। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल हैं और साथ ही ये त्रिनेत्रधारी हैं। भगवान् शिव कलयाणकारी तथा स्वभाव से सौम्य हैं वही दूसरी और इनका रूद्र रूप भी बहुत विनाशकारी हैं इसलिए इनके कालो के काल महाकाल के नाम से भी जाना जाता हैं और ऐसा माना जाता हैं की शिव आदि हैं और शिव ही अंत हैं, और एक दिन ये सृष्टि भी शिव में ही विलीन हो जाएगी।

दोस्तों क्या आप जानते हैं की भगवान् भोलेनाथ को भोलेनाथ क्यों कहा जाता हैं..?? जबकि ये शमशान में भी बसते हैं और जिनके शरीर पर भस्म लिपटी रहती हैं और एक क्षण में जो सब कुछ नष्ट करदे, जो की कालो के भी काल हैं, भूत प्रेत के भी ये नाथ हैं फिर भी ये भोलेनाथ हैं… ऐसा क्यों…?? तो इसका जवाब ये हैं की सबसे पहले भोलेनाथ का दार्शनिक मतलब हैं – भोले यानी बच्चे जैसी मासूमियत, नाथ मतलब भगवान या फिर मालिक। त्रिदेवों में भगवान् शिव ही एक ऐसे देव हैं जो भक्त की भक्ति से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और मनचाहा वरदान प्राप्त करते हैं, फिर चाहे वो देवता हो, या राक्षस हो, दानव हो या कोई भी जीव हो, भोलेनाथ सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। भगवान शिव के अंदर ना अहं हैं ना ही चालाकी, उन्हें अपनी शक्ति पर बिल्कुल भी अभिमान नहीं हैं इसीलिए वह भोलेनाथ हैं। भोलेबाबा को कोई राजनीति नहीं आती, और ना ही किसी के आदेशों का पालन करते हैं, और किसी भी प्रकार की कोई भी सांसारिक मोह माया भोलेबाबा को नहीं हैं। वे तो बस सदैव ध्यानमग्न रहते हैं, इसलिए भोलेनाथ कहलाते हैं। भोलेनाथ को मनाने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती हैं बस जो मनुष्य सच्चे मन से अपने कर्म करते हुए शिव की भक्ति करता हैं, निश्चित रूप से वो इंसान भोलेनाथ की कृपा का पात्र होता हैं।

प्राचीन काल से लेकर आज तक भगवान् शिव के विश्वभर में करोड़ो भक्त मौजूद हैं, इसी भक्ति भाव को कायम रखने हेतु हम शिव भक्तों के लिए भोलेनाथ स्टेटस का बेहतरीन कलेक्शन आप सभी से शेयर करने जा रहें हैं जो की शिव भक्तों को भगवान शिव जी के लिए अपनी भक्ति और विश्वास को और मजबूत और दृढ़ शक्ति देगा। आज भी भोलेबाबा के भक्त एक दूसरे को आदर सम्मान के साथ हर हर महादेव, बम बम भोले, जय शिव शंकर, ॐ नमः शिवाये कहकर अपना नमस्कार प्रकट करते हैं। दोस्तों आज हम शिव जी के भक्तों के लिए सभी प्रकार के भोले बाबा

चंद्र ग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा पर 16 जुलाई को


चंद्र ग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा पर 16 जुलाई को चंदग्रहण 1:32 मिनट पर शुरु होकर सुबह 4:30 तक रहेगा। ग्रहण की अवधि दो घंटे अठावन मिनट रहेगी.

नई दिल्ली: साल 2019 का आखिरी चंद्रग्रहण आज (16 जुलाई) को लग रहा है. इस बार गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण का संयोग है, ये संयोग 149 साल के बाद बन रहा है. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रग्रहण का असर देखने को मिलेगा, जो गुरु पूजन में बाधक रहेगा. इसलिए इस चंद्रग्रहण को दुर्लभ और ऐतिहासिक कहा जा रहा है.

कब से शुरू होगा सूतक

चंद्र ग्रहण का टाइम क्या होगा, सूतक कब लगेगा इस बारे में हम आपको बताते हैं. शास्त्रों के मुताबिक, चंद्रग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले लग जाता है. इसलिए आज शाम 4 बजकर 25 मिनट से सूतक शुरू होगा, जो 17 जुलाई सुबह 4:40 मिनट पर खत्म होगा.


क्या होगी ग्रहण की अवधि

चंद्र ग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा पर 16 जुलाई को चंदग्रहण 1:32 मिनट पर शुरु होकर सुबह 4:30 तक रहेगा। ग्रहण की अवधि दो घंटे अठावन मिनट रहेगा


दोपहर तीन बजे होगा गंगा आरती

चंद्र ग्रहण के सूतक के कारण रोजाना शाम को होने वाली गंगा आरती आज दोपहर बाद तीन बजे होगी. उसके बाद 4 बजे हरिद्वार के सभी मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाएंगे. ग्रहण समाप्त होने के बाद कल सुबह मन्दिरों के कपाट खुलेंगे.

चारों धाम के कपाट रहेंगे बंद

बद्रीनाथ धाम के कपाट मंगलवार को चंद्रग्रहण के सूतककाल के चलते शाम 4 बजकर 25 मिनट पर बंद हो जाएंगे. मंगलवार रात को होने वाली विशेष पूजा सहित भगवान् बद्रीनाथ की शयन आरती दोपहर में ही 3 बजे से ही शुरू हो जाएंगी और 4 बजकर 25 मिनट पर भगवान् विष्णु के सर्वश्रेठ धाम के कपाट बंद कर दिए जाएंगे.17 जुलाई को सुबह 4 बजकर 40 मिनट पर कपाट पुनः खोले जाएंगे, लेकिन सुबह के समय शुरू होने वाला भगवान् का महाअभिषेक 17 जुलाई को सुबह 6 बजे से शुरू होगा.

वहीं, केदारनाथ धाम के कपाट चंद्रग्रहण के कारण आज शाम 4 बजकर 25 मिनट पर कपाट बंद कर दिए जाएंगे. फिर दूसरे दिन अपने नित नियम के अनुसार कपाट खोले जाएंगे. गंगोत्री धाम और यमुनोत्री धाम के कपाट चंद्र ग्रहण के सूतक के चलते मंगलवार शाम 4 बजकर 25 मिनट से 17 जुलाई सुबह 5 बजकर 30 मिनट तक बंद रहेंगे. 17 जुलाई सुबह 5:45 बजे गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे

श्रावण मास 2019


सावन सोमवार व्रत की दिनांक राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब एवं बिहार के लिए
बुधवार, 17 जुलाई श्रावण मास का पहला दिन
सोमवार, 22 जुलाई सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 29 जुलाई सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 05 अगस्त सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 12 अगस्त सावन सोमवार व्रत
गुरुवार, 15 अगस्त श्रावण मास का अंतिम दिन


सावन सोमवार की दिनांक पंश्चिम एवं दक्षिण भारत के लिए
शुक्रवार, 02 अगस्त श्रावण मास का पहला दिन
सोमवार, 05 अगस्त सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 12 अगस्त सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 19 अगस्त सावन सोमवार व्रत
सोमवार, 26 अगस्त सावन सोमवार व्रत
शुक्रवार, 30 अगस्त श्रावण मास का अंतिम दिन


सावन के महीने का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। क्योंकि श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा-आराधना का विशेष विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह महीना वर्ष का पांचवां माह है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना जुलाई-अगस्त में आता है। इस दौरान सावन सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व बताया जाता है। दरअसल श्रावस मास भगवान भोलेनाथ को सबसे प्रिय है। इस माह में सोमवार का व्रत और सावन स्नान की परंपरा है। श्रावण मास में बेल पत्र से भगवान भोलेनाथ की पूजा करना और उन्हें जल चढ़ाना अति फलदायी माना गया है। शिव पुराण के अनुसार जो कोई व्यक्ति इस माह में सोमवार का व्रत करता है भगवान शिव उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु ज्योर्तिलिंग के दर्शन के लिए हरिद्वार, देवघर, उज्जैन, नासिक समेत भारत के कई धार्मिक स्थलों पर जाते हैं।

सावन के महीने का प्रकृति से भी गहरा संबंध है क्योंकि इस माह में वर्षा ऋतु होने से संपूर्ण धरती बारिश से हरी-भरी हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस माह में बारिश होने से मानव समुदाय को बड़ी राहत मिलती है। इसके अलावा श्रावण मास में कई त्यौहार भी मनाये जाते हैं।

भारत के पश्चिम तटीय राज्यों (महाराष्ट्र, गोवा एवं गुजरात) में श्रावण मास के अंतिम दिन नराली पूर्णिमा मनायी जाती है।
काँवर यात्रा

श्रावण के पावन मास में शिव भक्तों के द्वारा काँवर यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस दौरान लाखों शिव भक्त देवभूमि उत्तराखंड में स्थित शिवनगरी हरिद्वार और गंगोत्री धाम की यात्रा करते हैं। वे इन तीर्थ स्थलों से गंगा जल से भरी काँवड़ को अपने कंधों रखकर पैदल लाते हैं और बाद में वह गंगा जल शिव को चढ़ाया जाता है। सालाना होने वाली इस यात्रा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं को काँवरिया अथवा काँवड़िया कहा जाता है।
काँवर पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था तब उस मंथन से 14 रत्न निकले। उन चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी था, जिससे सृष्टि नष्ट होने का भय था। तब सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस विष को पी लिया और उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया। विष के प्रभाव से महादेव का कंठ नीला पड़ गया और इसी कारण उनका नाम नीलकंठ पड़ा। कहते हैं रावण शिव का सच्चा भक्त था। वह काँवर में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया और तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली।
सावन के व्रत

सावन के इस पवित्र महीने में भक्तों के द्वारा तीन प्रकार के व्रत रखे जाते हैं:

● सावन सोमवार व्रत : श्रावण मास में सोमवार के दिन जो व्रत रखा जाता है उसे सावन सोमवार व्रत कहा जाता है। सोमवार का दिन भी भगवान शिव को समर्पित है।
● सोलह सोमवार व्रत : सावन को पवित्र माह माना जाता है। इसलिए सोलह सोमवार के व्रत प्रारंभ करने के लिए यह बेहद ही शुभ समय माना जाता है।
● प्रदोष व्रत : सावन में भगवान शिव एवं माँ पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए प्रदोष व्रत प्रदोष काल तक रखा जाता है।
व्रत और पूजा विधि


● प्रातः सूर्योदय से पहले जागें और शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान करें
● पूजा स्थल को स्वच्छ कर वेदी स्थापित करें
● शिव मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग को दूध चढ़ाएँ
● फिर पूरी श्रद्धा के साथ महादेव के व्रत का संकल्प लें
● दिन में दो बार (सुबह और सायं) भगवान शिव की प्रार्थना करें
● पूजा के लिए तिल के तैल का दीया जलाएँ और भगवान शिव को पुष्प अर्पण करें
● मंत्रोच्चार सहित शिव को सुपारी, पंच अमृत, नारियल एवं बेल की पत्तियाँ चढ़ाएँ
● व्रत के दौरान सावन व्रत कथा का पाठ अवश्य करें
● पूजा समाप्त होते ही प्रसाद का वितरण करें
● संध्याकाल में पूजा समाप्ति के बाद व्रत खोलें और सामान्य भोजन करें

मंत्र

सावन के दौरान ओम् नमः शिवाय का जाप करें।

सावन मास शिवजी को समर्पित है। कहते हैं यदि कोई भक्त सावन महीने में सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ महादेव का व्रत धारण करता है, उसे शिव का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है। विवाहित महिलाएँ अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने और अविवाहित महिलाएँ अच्छे वर के लिए भी सावन में शिव जी का व्रत रखती हैं।
सावन कथा

प्राचीन काल में एक धनी व्यक्ति था, जिसके पास सभी प्रकार की धन-दौलत एवं शौहरत थी, लेकिन दुर्भाग्य यह था कि उस व्यक्ति की कोई संतान न थी। इस बात का दुःख उसे हमेशा सताता था, लेकिन वह और उसकी पत्नी दोनों शिव भक्त थे। दोनों ही भगवान शिव की आराधना में सोमवार को व्रत रखने लगे। उनकी सच्ची भक्ति को देखकर माँ पार्वती ने शिव भगवान से उन दोनों दंपति की सूनी गोद को भरने का आग्रह किया। परिणाम स्वरूप शिव के आशीर्वाद से उनके घर में पुत्र ने जन्म लिया, लेकिन बालक के जन्म के साथ ही एक आकाशवाणी हुई, यह बालक अल्पायु का होगा। 12 साल की आयु में इस बालक की मृत्यु हो जाएगी। इस भविष्यकथन के साथ उस व्यक्ति को पुत्र प्राप्ति की अधिक ख़ुशी न थी। उसने अपने बालक का नाम अमर रखा।

जैसे-जैसे अमर थोड़ा बड़ा हुआ, उस धनी व्यक्ति ने उसको शिक्षा के लिए काशी भेजना उचित समझा। उसने अपने साले को अमर के साथ काशी भेजने का निश्चय किया। अमर अपने मामा जी के साथ काशी की ओर चल दिए। रास्ते में उन्होंने जहाँ-जहाँ विश्राम किया वहाँ-वहाँ उन्होंने ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी। चलते-चलते वे एक नगर में पहुँच गए। जहाँ पर एक राजकुमारी के विवाह का समारोह हो रहा था। उस राजकुमारी का दूल्हा एक आँख से काना था, यह बात दूल्हे के परिवार वालों ने राज परिवार से छिपाकर रखी थी। उन्हें इस बात का डर था कि यह बात अगर राजा को पता चल गई तो यह शादी नहीं होगी। इसलिए दूल्हे के घर वालों ने अमर से झूठमूठ का दूल्हा बनने का आग्रह किया और वह उनके आग्रह को मना न कर सका। इस प्रकार उस राजकुमारी के साथ अमर की शादी हो गई, लेकिन वह उस राजकुमारी को धोखे में नहीं रखना चाहता था। इसलिए उसने राजकुमारी की चुनरी में इस घटनाक्रम की पूरी सच्चाई लिख दी। राजकुमारी ने जब अमर के उस संदेश को पढ़ा, तब उसने अमर को ही अपना पति माना और काशी से वापस लौटने तक उसका इंतज़ार करने को कहा। अमर और उसके मामा वहाँ से काशी की ओर चल दिए।

समय का पहिया आगे बढ़ता रहा। उधर, अमर हमेशा धार्मिक कार्यों में लगा रहता था। जब अमर ठीक 12 साल का हुआ, तब वह शिव मंदिर में भोले बाबा को बेल पत्तियाँ चढ़ा रहा था। उसी समय वहाँ यमराज उसके प्राण लेने पधार गए, लेकिन इससे पहले भगवान शिव ने अमर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु का वरदान दे दिया था। परिणाम स्वरूप यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा। बाद में अमर काशी से शिक्षा प्राप्त करके अपनी पत्नी (राजकुमारी) के साथ घर लौटा।
सावन का ज्योतिष महत्व

ज्योतिष के अनुसार, श्रावण मास के प्रारंभ में सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है। सूर्य का यह गोचर सभी 12 राशियों को प्रभावित करता है।

SANTOSH PIDHAULI

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