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Navratri 2019 shubh muhurat


Navratri 2019 shubh muhurat timings : 29 सितंबर रविवार से शुरू हो रहे नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि को मुख्‍य नवरात्रि माना जाता है। हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार यह नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन शुक्‍ल पक्ष से शुरू होती हैं और पूरे नौ दिनों तक चलती हैं। मां दुर्गा इस बार सर्वार्थसिद्धि और अमृत सिद्धि योग में हाथी पर सवार होकर रविवार को हमारे घर पधारेंगी। फिर 9 दिन बाद घोड़े पर विदा होंगी। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि रविवार को सर्वार्थसिद्धि व अमृत सिद्धि योग में होगी। पंडित विवेक गैरोला ने बताया कि 29 सितंबर, 2 अक्टूबर और 7 अक्टूबर के दिन दो-दो योग रहेंगे। इन योगों में नवरात्र पूजा काफी शुभ रहेगी। 

कलश स्थापना ( घट स्थापना ) की विधि एवं शुभ मूहुर्त का समय
पंडित विवेक गैरोला ने बताया कि नवरात्रि में कलश स्‍थापना का विशेष महत्‍व है। कलश स्‍थापना को घट स्‍थापना भी कहा जाता है। नवरात्रि की शुरुआत घट स्‍थापना के साथ ही होती है। घट स्‍थापना शक्ति की देवी का आह्वान है। पंडित विवेक गैरोला ने बताया कि सुबह स्नान कर साफ-सुथरे कपड़े पहनें। पूजा का संकल्प लें। मिट्टी की वेदी पर जौ को बोएं, कलश की स्थापना करें, गंगा जल रखें। इस पर कुल देवी की प्रतिमा या फिर लाल कपड़े में लिपटे नारियल को रखें और पूजन करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करें। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि कलश की जगह पर नौ दिन तक अखंड दीप जलता रहे।

शुभ मूहुर्त का समय
शुभ समय - सुबह 6.01 से 7.24 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त- 11.33 से 12.20 तक 


पूरे 9 दिन होगी आराधना
नवरात्र 9 दिनों का होता है और दसवें दिन देवी विसर्जन के साथ नवरात्र का समापन होता है। लेकिन, ऐसा हो पाना दुर्लभ संयोग माना गया है, क्योंकि कई बार तिथियों का क्षय हो जाने से नवरात्र के दिन कम हो जाते हैं। लेकिन, इस बार पूरे 9 दिनों की पूजा होगी और 10वें दिन देवी की विदाई होगी। यानी 29 सितंबर से आरंभ होकर 7 अक्तूबर को नवमी की पूजा होगी और 8 को देवी विसर्जन होगा।


नवरात्र में इन नौ देवियों का पूजन
: पहले दिन- शैलपुत्री
: दूसरे दिन- ब्रह्मचारिणी
: तीसरे दिन- चंद्रघंटा
: चौथे दिन- कुष्मांडा
: पांचवें दिन- स्कंद माता
: छठे दिन- कात्यानी
: सातवें दिन- कालरात्रि
: आठवें दिन- महागौरी
: नवें दिन- सिद्धिदात्री

किस दिन कौनसा योग
: 29 सितंबर- सर्वार्थसिद्धि व अमृत सिद्धि योग
: 1 अक्टूबर- रवि योग
: 2 अक्टूबर- रवि योग व सर्वार्थ सिद्धि योग
: 3 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग
: 4 अक्टूबर- रवि योग
: 6 अक्टूबर- सर्वार्थ सिद्धि योग
: 7 अक्टूबर- सर्वार्थसिद्धि योग व रवि योग
ये सभी योग व्यापार और खरीदारी के लिए शुभ हैं।

कलश स्थापना के दिन शुक्र का उदय होना बेहद शुभ फलदायी 
इस बार कलश स्थापना के दिन ही सुख समृद्धि के कारक ग्रह शुक्र का उदय होना बेहद शुभ फलदायी है। शुक्रवार का संबंध देवी लक्ष्मी से है। नवरात्र के दिनों में देवी के सभी रूपों की पूजा होती है। शुक्र का उदित होना भक्तों के लिए सुख-समृद्धि दायक है। धन की इच्छा रखने वाले भक्त नवरात्र के दिनों में माता की उपासना करके अपनी आर्थिक परेशानी दूर कर सकते हैं। इस दिन बुध का शुक्र के घर तुला में आना भी शुभ फलदायी है।

शक्तिधर शास्त्री (ज्योतिषाचार्य) ने कहा कि शारदीय नवरात्र इस बार कई संयोग लेकर आएं हैं। जिससे भक्तों को शुभ फल की प्राप्ति होगी। वहीं इस बार पूरे नौ दिन मां अंबे की पूजा-अर्चना होगी, जबकि दसवें दिन मां को विधि-विधान के साथ विदाई दी जाएगी। ऐसा दुर्लभ संयोग लंबे समय बाद बना है। 

चार सर्वार्थ सिद्धि योग 
इस साल की नवरात्र इसलिए भी खास है क्योंकि इस बार 4 सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं। ऐसे में साधकों को सिद्धि प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर मिल रहे हैं। 29 सितंबर, 2, 6 और 7 अक्तूबर को भी यह शुभ योग बन रहा है।

संयोग में होगा कलश स्थापना 
रविवार को नवरात्र का प्रारंभ इस बार कलश स्थापना के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और द्विपुष्कर नामक शुभ योग में होगा। ये सभी घटनाएं नवरात्र का शुभारंभ कर रहे हैं। इसी दिन भक्त 10 दिनों तक माता की श्रद्धा भाव से पूजा का संकल्प लेकर घट स्थापना करेंगे।

दो सोमवार होना भी फलदायी
इस बार नवरात्र का आरंभ रविवार को हो रहा है और इसका समापन मंगलवार को होगा। ऐसे में नवरात्र में दो सोमवार और दो रविवार आएंगे। पहले सोमवार को देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी और अंतिम सोमवार को महानवमी के दिन सिद्धिदात्री की पूजा होगी। नवरात्र में दो सोमवार का होना शुभ फलदायी माना गया है।

पहले दिन ऐसे करें मां शैलपुत्री की पूजा
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। 
चौकी पर मां शैलपुत्री की तस्वीर या प्रतिमा को स्थापित करे और इसे बाद कलश कि स्थापना करें। कलश के ऊपर नारियल और पान के पत्ते रख कर स्वास्तिक जरूर बनाएं। इसके बाद कलश के पास अंखड ज्योति जला कर ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:’ मंत्र का जाप करें और फिर सफेद फूल मां को अर्पित करें। इसके बाद मां को सफेद रंग का भोग लगाएं। जैसे खीर या मिठाई आदि। अब माता कि कथा सुने और आरती करें। शाम को मां के समक्ष कपूर जरूर जलाएं।

मंत्र
1. ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
2. वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
3. वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
4. या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मां

विश्वकर्मा पूजा 2019 । Vishwakarma pooja 2019

विश्वकर्मा पूजा 2019 । Vishwakarma pooja 2019

हिंदू संस्कृति के अनुसार सभी सृजनात्मक कार्यों का आधार हैं भगवान विश्वकर्मा। इन्हीं के जन्मदिवस को हम विश्वकर्मा पूजा या विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाते हैं। इस दिन फैक्ट्री, कारखानों, ऑफिस, अस्त्र-शस्त्र, मशीनों और औजारों की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा की पूजा से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा और मन की शान्ति तो मिलती ही है, साथ ही उसके सभी कार्य भी सफलतापूर्वक पूर्ण होते हैं। कारोबार और व्यापार में मुनाफे के लिए भगवान विश्वकर्मा का पूजन अवश्य करना चाहिए। इस दिन घर और कार्यस्थल पर मौजूद सभी मशीनों और औजारों का भी तिलक कर पूजन करना चाहिए ताकि ये सुचारू रूप से कार्य करते रहें।


कौन हैं भगवान विश्वकर्मा । who is bhagwan vishwakarma


जब सृष्टि का आरंभ हुआ तो क्षीर सागर में भगवान विष्णु जी उत्पन्न हुए और उनकी नाभि कमल में उत्पन्न हुए ब्रह्मा जी। ब्रह्मा जी के पुत्र हुए धर्म जिनका वस्तु नामक कन्या से विवाह संपन्न हुआ। इन दोनों की सातवीं संतान है वास्तु और इन्हीं के पुत्र हुए विश्वकर्मा जी। वास्तुशास्त्र में इनकी निपुणता देख इनको “वास्तुशास्त्र का जनक” और “देवताओं के शिल्पकार” कहा गया। हम सभी जानते हैं कि इस सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया है लेकिन यह कार्य ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा की सहायता से ही संपन्न किया था।


विश्वकर्मा पूजा का महत्त्व । vishwkarma pooja importance –


निर्माण और सर्जन सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन पर उनकी पूजा-अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार व व्यापार में वृद्धि होती है। हिंदू धर्म में इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि हमारे शास्त्रों और पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर युग की द्वारिका और कलयुग का हस्तिनापुर भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित था। यहां तक कि भगवान विष्णु का चक्र, शंकर जी का त्रिशूल और इंद्र का वज्र आदि देवताओं के अस्त्र भी विश्वकर्मा ने ही बनाया था। इसीलिए इस दिन मशीनों और औजारों की पूजा भी की जाती है। भगवान विश्वकर्मा को “वास्तु शास्त्र के देवता”, “देवताओं के शिल्पकार”, “पौराणिक काल के आर्किटेक्ट”, ‘प्रथम इंजीनियर”, “देवताओं के इंजीनियर”, “मशीनों के देवता” जैसे विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। इसीलिए इस पर्व और पूजा का महत्व कलाकार, शिल्पकार और व्यापारी वर्ग के लिए काफी बढ़ जाता है।


विश्वकर्मा पूजा कब है। विश्वकर्मा पूजा की तारीख और शुभ मुहूर्त। vishwakarma pooja date and muhurat –




विश्वकर्मा पूजा शुभ मुहूर्त 2019 


17/18 को मनाया जाएगा मगलबार+ बुधबार


इस वर्ष कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का आयोजन हो रहा है। यह एक शुभ स्थिति है। संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 2 मिनट से है। इस समय पूजा आरंभ की जा सकती है। 


सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल है और शाम 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा। इन समयों को छोड़कर कभी भी पूजा आरंभ कर सकते हैं।
विश्वकर्मा पूजा विधि। vishwakarma pooja 2019 vidhi –


विश्वकर्मा पूजा करने के लिए व्यक्ति प्रातः स्नानादि कार्यों को पूर्ण करें और जिस स्थल पर पूजा होनी है उसकी सफाई करें। अब गणेश जी, विष्णु जी और भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा एक स्वच्छ वस्त्र बिछाकर विराजित करें। विश्वकर्मा जी का ध्यान करते हुए हाथ में पुष्प और अक्षत (फूल और चावल) लेकर पूरे घर या दफ्तर में छिड़क दें। पूजन स्थल पर कलश भी स्थापित करें। सबसे पहले गणेश जी और विष्णु जी का पूजन करें और फिर कलश को तिलक कर विश्वकर्मा जी का पूजन आरंभ करें। भगवान का तिलक कर उन्हें फल, मिठाई और पुष्प अर्पित करें। इसके बाद यज्ञ की अग्नि को प्रज्वलित करें, धूप और दीप भी जलाकर रखें। अपने पंडित जी के बताए अनुसार यज्ञ में आहुतियां दें और याआरती करें। अंत में पूजा के दौरान हुई किसी भी भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें। विश्वकर्मा पूजा के लिए महत्वपूर्ण मंत्र यह हैं- 


‘ॐ आधार शक्तपे नम: ‘और ‘ॐ कूमयि नम:’, ‘ॐ अनन्तम नम:’, ‘पृथिव्यै नम:’,


रुद्राक्ष की माला से इनका ध्यान करें। हिंदू धर्म में इस पूजा के लिए धूप, दीप, पुष्प, गंध, सुपारी आदि सामग्री का प्रयोग आवश्यक माना जाता है। पूजन समाप्त होने पर सभी भक्तजनों में प्रसाद बांटे और स्वयं भी ग्रहण करें। पूजन के अगले दिन प्रतिमा का किसी नदी या जलाशय में विसर्जन कर देना चाहिए। यह पूजा जोड़े में अर्थात पति-पत्नी साथ में करें तो अधिक फलदाई होती है।



गणेश चतुर्थी 2019


गणेश चतुर्थी
२वाँ
सितम्बर २०१९
(सोमवार)
गणेश चतुर्थी


गणेश चतुर्थी पूजा मुहूर्त

मध्याह्न गणेश पूजा का समय = ११:०५ से १३:३६
अवधि = २ घण्टे ३१ मिनट्स
२nd को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = ०८:५५ से २१:०५
अवधि = १२ घण्टे ९ मिनट्स
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = २/सितम्बर/२०१९ को ०४:५६ बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = ३/सितम्बर/२०१९ को ०१:५३ बजे
गणेश चतुर्थी के दिन का पञ्चाङ्ग
गणेश चतुर्थी के दिन का चौघड़िया मुहूर्त
टिप्पणी - २४ घण्टे की घड़ी नई दिल्ली के स्थानीय समय के साथ और सभी मुहूर्त के समय के लिए डी.एस.टी समायोजित (यदि मान्य है)।
२०१९ गणेश चतुर्थी


गणेश चतुर्थी पूजा विधि
भगवान गणेश की गणेश-चतुर्थी के दिन सोलह उपचारों से वैदिक मन्त्रों के जापों के साथ पूजा की जाती है। भगवान की सोलह उपचारों से की जाने वाली पूजा को षोडशोपचार पूजा कहते हैं। गणेश-चतुर्थी की पूजा को विनायक-चतुर्थी पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

भगवान गणेश को प्रातःकाल, मध्याह्न और सायाह्न में से किसी भी समय पूजा जा सकता है। परन्तु गणेश-चतुर्थी के दिन मध्याह्न का समय गणेश-पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। मध्याह्न के दौरान गणेश-पूजा का समय गणेश-चतुर्थी पूजा मुहूर्त कहलाता है।

गणेश-पूजा के समय किये जाने वाले सम्पूर्ण उपचारों को नीचे सम्मिलित किया गया है। इन उपचारों में षोडशोपचार पूजा के सभी सोलह उपचार भी शामिल हैं। दीप-प्रज्वलन और संकल्प, पूजा प्रारम्भ होने से पूर्व किये जाते हैं। अतः दीप-प्रज्वलन और संकल्प षोडशोपचार पूजा के सोलह उपचारों में सम्मिलित नहीं होते हैं।

यदि भगवान गणपति आपके घर में अथवा पूजा स्थान में पहले से ही प्राण-प्रतिष्ठित हैं तो षोडशोपचार पूजा में सम्मिलित आवाहन और प्रतिष्ठापन के उपचारों को त्याग देना चाहिये। आवाहन और प्राण-प्रतिष्ठा नवीन गणपति मूर्ति (मिट्टी अथवा धातु से निर्मित) की ही की जाती है। यह भी उल्लेखनीय है कि घर अथवा पूजा स्थान में प्रतिष्ठित मूर्तियों का पूजा के पश्चात विसर्जन के स्थान पर उत्थापन किया जाता है।

गणेश चतुर्थी पूजा के दौरान भक्तलोग भगवान गणपति की षोडशोपचार पूजा में एक-विंशति गणेश नाम पूजा और गणेश अङ्ग पूजा को भी सम्मिलित कर लेते हैं।
आवाहन एवं प्रतिष्ठापन (Avahana and Pratishthapan)
आवाहन (Avahana)
सर्वप्रथम, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।
गणेश चतुर्थी पूजा
प्रतिष्ठापन (Pratishthapan)
आवाहन के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ कर भगवान गणेश की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा करें।
आसन समर्पण (Asana Samarpan)
आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।
पाद्य समर्पण (Padya Samarpan)
आसन समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।
अर्घ्य समर्पण (Arghya Samarpan)
पाद्य समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को गन्धमिश्रित अर्घ्य जल समर्पित करें।
आचमन (Achamana)
अर्घ्य समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए भगवान गणेश को जल समर्पित करें।
स्नान मन्त्र (Snana Mantra)
स्नान (Snana)
आचमन समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को जल से स्नान कराएँ।
पञ्चामृत स्नानम् (Panchamrita Snanam)
जल से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पञ्चामृत से स्नान कराएँ।
पयः/दूध स्नानम् (Payah/Dugdha Snanam)
पञ्चामृत से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पयः (दूध) से स्नान कराएँ।
दधि स्नानम् (Dadhi Snanam)
पयः से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दही से स्नान कराएँ।
घृत स्नानम् (Ghrita Snanam)
दही से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को घी से स्नान कराएँ।
मधु स्नानम् (Madhu Snanam)
घी से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शहद से स्नान कराएँ।
शर्करा स्नानम् (Sharkara Snanam)
शहद से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शर्करा (शक्कर) से स्नान कराएँ।
सुवासित स्नानम् (Suvasita Snanam)
शर्करा से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को सुगन्धित तेल से स्नान कराएँ।
शुद्धोदक स्नानम् (Shuddhodaka Snanam)
सुगन्धित तेल से स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
वस्त्र समर्पण वं उत्तरीय समर्पण (Vastra Samarpan and Uttariya Samarpan)
वस्त्र समर्पण (Vastra Samarpan)
शुद्धोदक स्नान के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।
उत्तरीय समर्पण (Uttariya Samarpan)
वस्त्र समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शरीर के ऊपरी अङ्गो के लिए वस्त्र समर्पित करें।
यज्ञोपवीत समर्पण (Yajnopavita Samarpan)
वस्त्र एवं उत्तरीय समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को यज्ञोपवीत समर्पित करें।
गन्ध (Gandha)
यज्ञोपवीत समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को सुगन्धित द्रव्य समर्पित करें।
अक्षत (Akshata)
गन्ध समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को अक्षत चढ़ायें।
पुष्प माला, शमी पत्र, दुर्वाङ्कुर, सिन्दूर (Pushpa Mala, Shami Patra, Durvankura, Sindoor)
पुष्प माला (Pushpa Mala)
अक्षत समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पुष्प माला चढ़ायें।
शमी पत्र (Shami Patra)
पुष्प माला समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को शमी पत्र चढ़ायें।
दुर्वाङ्कुर (Durvankur)
शमी पत्र समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दुर्वाङ्कुर (तीन अथवा पाँच पत्र वाला दूर्वा) चढ़ायें।
सिन्दूर (Sindoor)
दुर्वाङ्कुर समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को तिलक के लिये सिन्दूर चढ़ायें।
धूप (Dhoop)
सिन्दूर समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को धूप समर्पित करें।
दीप समर्पण (Deep Samarpan)
धूप समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दीप समर्पित करें।
नैवेद्य एवं करोद्वर्तन (Naivedya and Karodvartan)
नैवेद्य निवेदन (Naivedya Nivedan)
दीप समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को नैवेद्य समर्पित करें।
चन्दन करोद्वर्तन (Chandan Karodvartan)
नैवेद्य समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को चन्दन युक्त जल समर्पित करें।
ताम्बूल, नारिकेल एवं दक्षिणा समर्पण (Tambula, Narikela and Dakshina Samarpan)
ताम्बूल समर्पण (Tambula Samarpan)
चन्दन करोद्वर्तन के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।
नारिकेल समर्पण (Narikela Samarpan)
ताम्बूल समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को नारियल समर्पित करें।
दक्षिणा समर्पण (Dakshina Samarpan)
नारिकेल समर्पण के पश्चात्, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को दक्षिणा समर्पित करें।
नीराजन एवं विसर्जन (Neerajan and Visarjan)
नीराजन/आरती (Neerajan/Aarti)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ने के पश्चात्, भगवान गणेश की आरतीकरें।
पुष्पाञ्जलि अर्पण (Pushpanjali Arpan)
निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवान गणेश को पुष्पाञ्जलि समर्पित करें।
प्रदक्षिणा (Pradakshina)
भगवान गणेश की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीगणेश को फूल समर्पित करें।
विसर्जन (Visarjan)
दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प लेकर विसर्जन हेतु निम्न-लिखित मन्त्र पढ़े।

भोलेनाथ को मनाने के लिए


हिन्दू धर्म में महादेव, त्रिदेवों में सबसे महत्वपूर्ण देवता हैं जो भोलेनाथ, महादेव, शिव शंकर, नीलकंठ, महेश, रुद्र, गंगाधार, महाकाल इत्यादि सैकड़ों नामों से जाने जाते हैं। पुरे विश्व में भोले बाबा के लाखों भक्त आज भी मौजूद हैं। ये देवों के भी देव महादेव हैं, जो की कैलाश पर्वत पर अपनी अर्धांगिनी (शक्ति) माता पार्वती और अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिके के साथ निवास करते हैं। भोलेनाथ की पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती हैं। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल हैं और साथ ही ये त्रिनेत्रधारी हैं। भगवान् शिव कलयाणकारी तथा स्वभाव से सौम्य हैं वही दूसरी और इनका रूद्र रूप भी बहुत विनाशकारी हैं इसलिए इनके कालो के काल महाकाल के नाम से भी जाना जाता हैं और ऐसा माना जाता हैं की शिव आदि हैं और शिव ही अंत हैं, और एक दिन ये सृष्टि भी शिव में ही विलीन हो जाएगी।

दोस्तों क्या आप जानते हैं की भगवान् भोलेनाथ को भोलेनाथ क्यों कहा जाता हैं..?? जबकि ये शमशान में भी बसते हैं और जिनके शरीर पर भस्म लिपटी रहती हैं और एक क्षण में जो सब कुछ नष्ट करदे, जो की कालो के भी काल हैं, भूत प्रेत के भी ये नाथ हैं फिर भी ये भोलेनाथ हैं… ऐसा क्यों…?? तो इसका जवाब ये हैं की सबसे पहले भोलेनाथ का दार्शनिक मतलब हैं – भोले यानी बच्चे जैसी मासूमियत, नाथ मतलब भगवान या फिर मालिक। त्रिदेवों में भगवान् शिव ही एक ऐसे देव हैं जो भक्त की भक्ति से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और मनचाहा वरदान प्राप्त करते हैं, फिर चाहे वो देवता हो, या राक्षस हो, दानव हो या कोई भी जीव हो, भोलेनाथ सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। भगवान शिव के अंदर ना अहं हैं ना ही चालाकी, उन्हें अपनी शक्ति पर बिल्कुल भी अभिमान नहीं हैं इसीलिए वह भोलेनाथ हैं। भोलेबाबा को कोई राजनीति नहीं आती, और ना ही किसी के आदेशों का पालन करते हैं, और किसी भी प्रकार की कोई भी सांसारिक मोह माया भोलेबाबा को नहीं हैं। वे तो बस सदैव ध्यानमग्न रहते हैं, इसलिए भोलेनाथ कहलाते हैं। भोलेनाथ को मनाने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती हैं बस जो मनुष्य सच्चे मन से अपने कर्म करते हुए शिव की भक्ति करता हैं, निश्चित रूप से वो इंसान भोलेनाथ की कृपा का पात्र होता हैं।

प्राचीन काल से लेकर आज तक भगवान् शिव के विश्वभर में करोड़ो भक्त मौजूद हैं, इसी भक्ति भाव को कायम रखने हेतु हम शिव भक्तों के लिए भोलेनाथ स्टेटस का बेहतरीन कलेक्शन आप सभी से शेयर करने जा रहें हैं जो की शिव भक्तों को भगवान शिव जी के लिए अपनी भक्ति और विश्वास को और मजबूत और दृढ़ शक्ति देगा। आज भी भोलेबाबा के भक्त एक दूसरे को आदर सम्मान के साथ हर हर महादेव, बम बम भोले, जय शिव शंकर, ॐ नमः शिवाये कहकर अपना नमस्कार प्रकट करते हैं। दोस्तों आज हम शिव जी के भक्तों के लिए सभी प्रकार के भोले बाबा

SANTOSH PIDHAULI

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