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भूमिका



मैं रोया परदेश में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
या  बहनें चिड़िया धूप की, दूर गगन में आएँ
हर आँगन मेहमान-सी, पकड़ो तो उड़ जाएँ।

मेरे खाबों के झरोखों को सजाने वाली
तेरे खाबों में कहीं मेरा गुजर है के नहीं
पूछकर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुकद्दर में सहर है के नहीं

चार दिन की ये रफाकत जो रफाकत भी नहीं
उम्र भर के लिए आजार हुई जाती है
ज़िंदगी यूं तो हमेशा से परेशान सी थी
अब तो हर साँस गिरां बार हुई जाती है

मेरी उजड़ी हुई नींदों के शबिस्तानों में
तू किसी खाब के पैकर की तरह आई है
कभी अपनी सी , कभी गैर नज़र आती है
कभी इख्लास की मूरत कभी हरजाई है

प्यार पर बस तो नहीं है मेरा, लेकिन फ़िर भी
तू बता दे के तुझे प्यार करूं या ना करूं

तुने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें
उन तमन्नाओं का इजहार करूं या करूं

तू किसी और के दामन की कली है लेकिन

मेरी रातें तेरी खुशबू से बसी रहती हैंतू कहीं भी हो तिरे फूल से आरिज़ कि कसमतेरी पलकें मिरी आंखों पे झुकी रहती हैं

दोस्तों की कमी को पहचानते हैं  
हम दुनिया के गमो को भी जानते हैं
हम आप जैसे दोस्तों का सहारा है 
तभी तो आज भी हँसकर जीना जानते हैं हम
आज हम हैं कल हमारी यादें होंगी






जब हम ना होंगे तब हमारी बातें होंगी 




कभी पलटोगे जिंदगी के ये पन्ने
तब शायद आपकी आंखों से भी बरसातें होंगी |

कोई दौलत पर नाज़ करते हैं 
कोई शोहरत पर नाज़ करते हैं
जिसके साथ आप जैसा दोस्त होवो 
अपनी किस्मत पर नाज़ करते हैं |



हर खुशी दिल के करीब नहीं होती ज़िंदगी ग़मों से दूर नहीं होती
इस दोस्ती को संभाल कर रखना


फूलों से हसीं मुस्कान हो आपकी
चाँद सितारों से ज्यादा शान हो 
आपकी ज़िंदगी का सिर्फ़ एक मकसद हो 
आपका कि आंसमा से ऊँची उड़ान हो आपकी 

वक्त के पन्ने पलटकरफ़िर वो हसीं लम्हे जीने को दिल चाहता है
कभी मुशाकराते थे सभी दोस्त मिलकरअब उन्हें साथ देखने को दिल तरस जाता है

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SANTOSH PIDHAULI

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