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दुर्गा अष्टमी का पर्व मनाया 2018

देशभर में दुर्गा अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। 
यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस दिन महागौरी की पूजा की जाती है। साथ ही कन्याओं को भोजन करवाया जाता है। देशभर में दुर्गा पूजा आरंभ हो चुकी है।
पंडालों में माता दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जा चुकी हैं। समस्त वातावरण मां की भक्ति में डूबा हुआ नजर आ रहा है। नवरात्रि के आठवें दिन का खास महत्व है। इसे दुर्गा अष्टमी कहा जाता है। दुर्गा अष्टमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन 12 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन करवाना और उनका पूजन करना शुभ माना जाता है।

कहते हैं कि पृथ्वी पर छोटी कन्याएं मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस दिन 5, 7, 9 और 11 की संख्या में लड़कियों के समूह को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है।

पूजा विधि: कन्या पूजन की विधि इस प्रकार से है।
– दुर्गा अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले जगें और स्नान करके स्वच्छ हो जाएं।


– प्रसाद के लिए खीर, पूरी, और हलवा आदि घर पर तैयार करें।
– कन्याओं और एक बालक को बुलाकर जल से उनका पांव धोएं। और उन्हें बैठने के लिए आसन दें।


– प्रसाद तैयार हो जाने पर माता दुर्गा का भोग लगाएं।
– अब कन्याओं और बालक को खीर, पूरी और हलव प्रसाद स्वरूप खिलाएं।


– भोजन कराने के बाद उन्हें टीका लगाएं और कलाई पर रक्षा बांधें।
– कन्याओं को कुछ उपहार देकर विदा करें। और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लें।

शुभ मुहूर्त: इस साल 17 अक्टूबर, दिन बुधवार को दुर्गा अष्टमी पड़ रही है। कन्या पूजन के लिए शुभ मुहूर्त का पालन किया जाना जरूरी बताया गया है।


– सुबह 6 बजकर 28 मिनट से लेकर 9 बजकर 20 मिनट तक।
– सुबह 10 बजकर 46 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक।

दशहरा पर्व 2018


विजयादशमी,के रूप में जाना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार यह उत्सव माता विजया के जीवन से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा कुछ लोग इस त्योहार को आयुध पूजा(शस्त्र पूजा) के रूप में मनाते हैं।
दशहरा मुहूर्त



1. दशहरा पर्व अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है। इस काल की अवधि सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से लेकर बारहवें मुहूर्त तक की होती।

2. यदि दशमी दो दिन हो और केवल दूसरे ही दिन अपराह्नकाल को व्याप्त करे तो विजयादशमी दूसरे दिन मनाई जाएगी।

3. यदि दशमी दो दिन के अपराह्न काल में हो तो दशहरा त्यौहार पहले दिन मनाया जाएगा।



4. यदि दशमी दोनों दिन पड़ रही है, परंतु अपराह्न काल में नहीं, उस समय में भी यह पर्व पहले दिन ही मनाया जाएगा।


श्रवण नक्षत्र भी दशहरा के मुहूर्त को प्रभावित करता है जिसके तथ्य नीचे दिए जा रहे हैं:



1. यदि दशमी तिथि दो दिन पड़ती है (चाहे अपराह्ण काल में हो या ना) लेकिन श्रवण नक्षत्र पहले दिन के अपराह्न काल में पड़े तो विजयदशमी का त्यौहार प्रथम दिन में मनाया जाएगा।

2. यदि दशमी तिथि दो दिन पड़ती है (चाहे अपराह्न काल में हो या ना) लेकिन श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में पड़े तो विजयादशमी का त्यौहार दूसरे दिन मनाया जाएगा।

3. यदि दशमी तिथि दोनों दिन पड़े, लेकिन अपराह्ण काल केवल पहले दिन हो तो उस स्थिति में दूसरे दिन दशमी तिथि पहले तीन मुहूर्त तक विद्यमान रहेगी और श्रवण नक्षत्र दूसरे दिन के अपराह्न काल में व्याप्त होगा तो दशहरा पर्व दूसरे दिन मनाया जाएगा।

4. यदि दशमी तिथि पहले दिन के अपराह्न काल में हो और दूसरे दिन तीन मुहूर्त से कम हो तो उस स्थिति में विजयादशी त्यौहार पहले दिन ही मनाया जाएगा। इसमें फिर श्रवण नक्षत्र की किसी भी परिस्थिति को ख़ारिज कर दिया जाएगा।


दशहरा पूजा एवं महोत्सव


अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है। इस पूजा की विधि नीचे दी जा रही है:


1. घर से पूर्वोत्तर की दिशा में कोई पवित्र और शुभ स्थान को चिन्हित करें। यह स्थान किसी मंदिर, गार्डन आदि के आस-पास भी हो सकता है। अच्छा होगा यदि घर के सभी सदस्य पूजा में शामिल हों, हालाँकि यह पूजा व्यक्तिगत भी हो सकती है।

2. उस स्थान को स्वच्छ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (आठ कमल की पंखुडियाँ) बनाएँ। 


3. अब यह संकल्प लें कि देवी अपराजिता की यह पूजा आप अपने या फिर परिवार के ख़ुशहाल जीवन के लिए कर रहे हैं।

4. उसके बाद अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ माँ देवी अपराजिता का आह्वान करें।

5. अब माँ जया को दायीं ओर क्रियाशक्त्यै नमः मंत्र के साथ आह्वान करे।

6. बायीं ओर माँ विजया का उमायै नमः मंत्र के साथ आह्वान करें।


7. इसके उपरांत अपराजिताय नमः, जयायै नमः, और विजयायै नमः मन्त्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें।

8. अब प्रार्थना करें, हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार संपूर्ण की है। कृपया जाने से पूर्व मेरी यह पूजा स्वीकार करें।



9. पूजा संपन्न होने के बाद प्रणाम करें।

10. हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।


अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है, हालाँकि इस दिन अन्य पूजाओं का भी प्रावधान है जो नीचे दी जा रही हैं:


1. जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था।


2. दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त))। यह अवधि किसी भी चीज़ की शुरूआत करने के लिए उत्तम है। हालाँकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं।

3. क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं; यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है। वे इस दिन शमी पूजन भी करते हैं। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी।

4. ब्राह्मण इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करते हैं।

5. वैश्य अपने बहीखाते की आराधना करते हैं।

6. कई जगहों पर होने वाली नवरात्रि रामलीला का समापन भी आज के दिन होता है।

7. रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है।

8. ऐसा विश्वास है कि माँ भगवती जगदम्बा का अपराजिता स्त्रोत करना बड़ा ही पवित्र माना जाता है।

9. बंगाल में माँ दुर्गा पूजा का त्यौहार भव्य रूप में मनाया जाता है।


दशहरा की कथा


• पौराणिक मान्यता के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान पुरूषोत्तम राम ने दस सिर वाले आतातायी रावण का वध किया था। तभी से दस सिरों वाले रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इस प्रतीक के रूप में जलाया जाता है ताकि हम अपने अंदर के क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करें।


• महाभारत की कथा के अनुसार दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था। शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पा लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता। इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे। एक बार जब उस राजा के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद मांगी तो अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को हराया था।


• एक अन्य कथानुसार जब भगवान श्रीराम ने लंका की चढ़ाई के लिए अपनी यात्रा का श्रीगणेश किया तो शमी वृक्ष ने उनके विजयी होने की घोषणा की थी।


• यदि आप इस त्यौहार का असल में स्वाद चखना चाहते हैं तो मैसूर जाएँ। मैसूर दशहरा पर्व बहुत ही बृहद रूप में मनाया जाता है जो कि बहुत प्रसिद्ध है। दशहरा त्यौहार से लोग दिवाली उत्सव के लिए अपनी तैयारियाँ शुरु कर देते हैं।


• इस जानकारी के साथ हम आशा करते हैं कि आप इस दिन को अपने लिए मंगलकारी बनाने में सफल होंगे।


दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई!

नवरात्रि 2018


नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है। इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं। बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है।

मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा व उपवास किया जाता है। दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात उपवास खोला जाता है।

आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं। तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है।

10 अक्टूबर (बुधवार) 2018 : घट स्थापन व मां शैलपुत्री पूजा, मां ब्रह्मचारिणी पूजा
11 अक्टूबर (बृहस्पतिवार ) 2018 : मां चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर (शुक्रवार ) 2018 : मां कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर (शनिवार) 2018 : मां स्कंदमाता पूजा

14 अक्टूबरर (रविवार ) 2018 : पंचमी तिथि सरस्वती आह्वाहन

15 अक्टूबर (सोमवार) 2018 : मां कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर (मंगलवार ) 2018 : मां कालरात्रि पूजा

17 अक्टूबर (बुधवार) 2018 : मां महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी, महानवमी
18 अक्टूबर (बृहस्पतिवार) 2018 : नवरात्री पारण
19 सितम्बर (शुक्रवार ) 2018 : दुर्गा विसर्जन, विजय दशमी


हवन सामग्री का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करता है। चिकित्सकीय दृष्टिकोण से माना जाता है कि यह अनेक प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं और विषाणुओं से हमें बचाती है। बशर्ते इस हवन सामाग्री में मिश्रित जड़ी-बूटियां शुद्ध हों और सही अनुपात में हों। यह बात गुरुवार को राजभवन आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्साधिकारी वैद्य शिव शंकर त्रिपाठी ने बताईं।

प्रभारी चिकित्साधिकारी ने बताया कि हजारों वर्षों से पूजा एवं यज्ञ आदि में हवन सामाग्री का प्रयोग होता आया है। हवन कुण्ड में अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए आम के पेड़ की समिधा (लकड़ी) को अधिकाधिक रूप में प्रयोग में लाया जाता है। नवग्रह की शान्ति के लिये भिन्न-भिन्न समिधा (लकड़ी) का प्रयोग किया जाता है। जैसे-सूर्य ग्रह की शान्ति के लिए मदार, चन्द्रमा के लिए ढाक, मंगल के लिए खैर, बुद्ध के लिए लटजीरा, बृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दूब, केतु के लिए कुश का प्रयोग किया जाता है।

सप्ताह में दो दिन अवश्य करें हवन
हवन सामग्री में बालछड़, छड़ीला, कपूरकचरी, नागर मोथा, सुगन्ध बाला, कोकिला, हाउबेर, चम्पावती एवं देवदार आदि काष्ठ औषधियों का मिश्रण होता है, जो वातावरण को शुद्ध और सुगन्धित करता है। हवन सामग्री के साथ गूगल, छोटी कटेरी, बहेड़ा, अडूसा, नीम पत्र, वन तुलसी एवं वाकुची के बीज को मिलाकर यदि हवन प्रतिदिन किया जाय तो वह घर के वातावरण को विसंक्रमित करने में अधिक प्रभावी होगा। जिससे हम अनेक रोगों के संक्रमण से बचे रहेंगे। इस हवन को यदि प्रतिदिन सम्भव न हो तो सप्ताह में दो दिन अवश्य करें।

जिउतिया पर्व 2018



जीवित्पुत्रिका या जिउतिया पर्व को हिन्दू धर्म में महिलाएं पूरी श्रद्धा और भाव से मनाती है। संतान की लंबी आयु और मंगलकामना के लिए आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक पूजा की जाती है। जिसमें अष्टमी तिथि के निर्जला व्रत का सबसे ज्यादा महत्व है, जो कि कल यानि 2 अक्टूबर को किया जाएगा। जानें इस व्रत का शुभ मुहूर्त और पूरी कथा...

शुभ मुहूर्तः
अष्टमी तिथि शुरू: 2 अक्टूबर 2018 सुबह 4 बजकर 9 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त: 3 अक्टूबर 2018 सुबह 2 बजकर 17 मिनट तक


जिउतिया व्रत की पौराणिक कथाः
गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।

जिउतिया व्रत रखने की विधिः

इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया-पिया जाता है। सूर्योदय के बाद आपको कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है।

इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता।

जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता। इसलिए यह निर्जला व्रत होता है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है जिसके बाद आप कैसा भी भोजन कर सकते है।

SANTOSH PIDHAULI

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