फ़ॉलोअर

जगजीत सिंह की गजलें


नजर मुझ सेँ मिलाती हो तुम सरमा सी जाती हो इसिको प्यार कहते है इसिको प्यार कहते है इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे

नजर मुझ सेँ मिलाती हो तुम सरमा सी जाती हो इसिको प्यार कहते है इसिको प्यार कहते है इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे

जबा खामोस है लेकिन निगाहे बात करती है जबा खामोस है लेकिन निगाहे बात करती है
आदाऐ लाख दिल को आदाऐ बात करती है नजर निची किऐ दाँतो में अगुली को दबाती हो इसिको प्यार कहते है इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते है इसिको प्यार कहते हे

छुपाले सें मेरी जानम कही प्यार क्या छुपता है छुपाले सें मेरी जानम कही प्यार क्या छुपता है
ये ऐसा मुकस है खुशबु हमेसा देता रहता है तुम तो सब जानती हो फिर भी मुझ सताती हो
इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे

तुमहारी प्यार का ऐसे हमे इजहार मिलता है तुमहारी प्यार का ऐसे हमे इजहार मिलता है हमारी नाम सुनते हि तुमहार रंग खिलता है ओर फिर साजे दिल पर तुम हमहारे गीत गाते हो इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे

तुमहार धर मे जब आऊ छुप जाती हो परदे मे तुमहार धर मे जब आऊ छुप जाती हो परदे मे मुझ देख ना पाओ  तो घबराती परदे मे खुद चिलमन उठा कर फिर इशारे खुद बुलाते हो इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे

नजर मुझ सेँ मिलाती हो तुम सरमा सी जाती हो इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे
नजर मुझ सेँ मिलाती हो तुम सरमा सी जाती हो इसिको प्यार कहते हे इसिको प्यार कहते हे

आ----------- आ--------------- आ--------------- आ---------------- आ ----------आ---------- आ------आ------- आ-----------  आ---------------


जगजीत सिंह की गजलें

हैप्पी वेलेंटाइन दिवस


बिन बात के ही रूठने की आदत है,
किसी अपने का साथ पाने की चाहत है, 
आप खुश रहें, 
मेरा क्या है, 
मैं तो आइना हूँ,
 मुझे तो टूटने की आदत है

कोई चाँद से मोहब्बत करता है,
कोई सूरज से मोहब्बत करता है,
 हम उनसे मोहब्बत करते हैं,
जो हमसे मोहब्बत करते हैं


चुपके से आकर इस दिल में उतर जाते हो, 
सांसों में मेरी खुशबु बन के बिखर जाते हो,
कुछ यूँ चला है तेरे

 'इश्क' का जादू,
 सोते-जागते तुम ही तुम नज़र आते हो


इश्क है वही जो हो एक तरफा,
इजहार है इश्क तो ख्वाईश बन जाती है,

 है अगर इश्क तो आँखों में दिखाओ, 
जुबां खोलने से ये नुमाइश बन जाती है

दीवाने तेरे हैं, इस बात से इनकार नहीं, 
कैसे कहें कि हमें आपसे प्यार नहीं,
 कुछ तो कसूर है आपकी निगाहों का, 
हम अकेले तो गुनेहगार नहीं

दोस्ती


रेत की जरूरत रेगिस्तान को होती है,
सितारों की जरूरत आसमान को होती है,
आप हमें भूल न जाना, क्योंकी 
दोस्त की जरूरत हर इंसान को होती है.......



कोई अच्छी सी सज़ा दो मुझको,
चलो ऐसा करो भूला दो मुझको,

तुमसे बिछडु तो मौत आ जाये
दिल की गहराई से ऐसी दुआ दो मुझको.

न मिले किसी का साथ तो हमें याद करना,
तन्हाई महसूस हो तो हमें याद करना....,



खुशियाँ बाटने के लियें दोस्त हजारो रखना,
जब ग़म बांटना हो तो हमें याद करना .....

कोई दोस्त कभी पुराना नहीं होता,
कुछ दिन बात न करने से बेगाना नहीं होता,

दोस्ती में दुरी तो आती रहती हैं,
पर दुरी का मतलब भुलाना नहीं होता.


उलझन कोई आए तो मुझसे न छुपाना,
साथ न दे जुवा तो आँखों से जताना,
हर कदम पे साथ हैं हम आपके,
अगर अपना समझते हो तो..
एक बार नहीं दस बार आज़माना.

दिल में इंतजार की लकीर छोर जायेगे॥
आँखों में यादो की नमी छोर जायेगे,
ढूंढ़ते फिरोगे हमें एक दिन ........



जिन्दगी में एक दोस्त की कमी छोर जायेगे.

हर कोई साथ हो ये जरुरी नहीं होता,
जगह तो दिल में बनायीं जाती हैं,
पास होकर भी दोस्ती इतनी अटूट नहीं होती,
जितनी की दूर रह कर निभाई जाती हैं.

प्रथम चरित्र दुर्गा कथा


प्रथम चरित्र दुर्गा कथा


दूसरे मुन के राज्यकाल में सुरथ नामक एक बहुत प्रतापी राजा हुए थे
उनका राज मन्त्रियों के दुष्टाचरण के कारण उनके हाथ से निकल गया |

वह राजा व्यथित ह्रदय होकर जंगल में चला गया |

वहाँ उसकी भेंट मेधा नामक मुनि से हुई |

मुनि ने राजा को बहुत आव्क्षस्त किया,
फिर भी राजा का मोह दूर न हुआ |

इन्हीं ऋषि के आश्रम में समधि नामक एक वैश्य से राजा का परिचय हुआ |

राजा की भाँति वैश्य भी अपने परिवार के व्दारा निर्वासित था |

इतना होने पर भी वह वैश्य अपने परिवार के लिए व्याकुल रहा करता था |

इन दोनों मोहग्रस्त व्यक्तियोँ ने मुनि से अपने अज्ञान दूर न होने का कारण पूछा |

तब मुनि ने उतर में कहा कि,महामाया भगवती ही जीवों के चित को अपनी ओर अनायास आकृष्ट कर लेती हैं ओर वही अन्त में कृपापूर्वक भक्तों को वर देकर उनका उध्दार भी करती हैं |

तब राजा सुरथ ने ऋषि से पुछा कि वह महामाया देवी कौन हैं,उनकी उत्पति कैसे हुई ओर उनका प्रभाव क्या हैं ?

राजा से मुनि ने कहा –

“नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततम् |

अर्थात् उनकी मूर्ति नित्यस्वरुपा हैं तथा उन्हीं के व्दार सम्पूर्ण जगत् व्याप्त हैं |

परन्तु देवों की अभीष्ट सिध्दि के निमित उनके प्रादुर्भाव का कारण बतलाया हैं |

जब भगवान् विष्णु प्रलयकाल के उपरान्त शेषशय्या पर योगनिद्रा मेंनिमग्न हुए तभी उनके कानों की मैल से मधु ओर कैटभ नामक दो महादैत्य उत्पत्र हुए |

वे दोनों दैत्य भगवान् के नाभि-कमल में स्थित ब्रह्मा जी को मारने के लिए उघत हुए |

तब ब्रह्मा जी ने योगनिद्रा का स्तवन करके प्रसत्र कर उनसे तीन याचनाएँ कीं :
१॰भगवान् विष्णु का जागृत होना, २॰असुरों के संहार के लिए तत्पर होना ओर ३॰असुर को मुग्ध करके नाश कराना |

भगवती की कृपा से भगवान निद्रा त्याग कर उन दैत्यों सें युध्दरत हुए |

तत्पश्चात् उन असुरोंने मोहग्रस्त होकर भगवान् से वर माँगने को कहा ओर अन्त में अपने दिए हुए वरदान के व्दारा ही वे मार डाले गये |

तदनन्तर राजा सुरथ ओर समाधि नामक वैश्य के लिए मेधा मुनि भगवती की उपसना तथा ज्ञानयोग के भेदों का वर्णन करने लगे |

SANTOSH PIDHAULI

facebook follow

twitter

linkedin


Protected by Copyscape Online Copyright Protection
Text selection Lock by Hindi Blog Tips
Hindi Blog Tips

मेरी ब्लॉग सूची